मधु ऐसे मत रो , देखो पहले ही तुम्हारी तबियत ख़राब है और उस पर से अगर तुम ऐसे रोई तो तबियत और बिगड़ जाएगी। अपनी पत्नी मधु को समझाते हुए अशोक ने उसे चुप करने की कोशिश की लेकिन मधु आज जबसे हॉस्पिटल से आई वो लगातार रोये जा रही थी।
आज उसके चेकअप करने के बाद डॉ ने उसे बताया कि वो कभी माँ नहीं बन सकती , ये सुनकर अशोक और मधु का दिल टूट गया था लेकिन अशोक खुद को किसी तरह नार्मल दिखाने की कोशिश करता रहा , पर मधु इस सच्चाई को स्वीकार नहीं कर पा रही थी और ज़ार ज़ार रोए जा रही थी।
अशोक, मैं माँजी को क्या जवाब दूंगी , उन्हें तो पोता चाहिए यहाँ तो मैं माँ ही नहीं बन सकती , क्या होगा अशोक , क्या अब माँजी और तुम मुझे घर से निकाल दोगे, दूसरी शादी कर लोगे , मैं मातृत्व सुख के लिए तरसती रहूंगी। ऐसे कई सवाल मधु ने अशोक से कर डाले।
नहीं मधु ऐसा कुछ नहीं होगा , और अभी हम माँ को कुछ नहीं बताएँगे , माँ मंदिर गई है उनके आने से पहले पहले तुम हाथ मुंह धोकर अपना हुलिया सुधार लो। मैं कुछ सोचता हूँ।
क्या रहा , डॉ ने क्या कहा , कब खुशबखबरी सुनने को मिलेगी मुझे, माँ ने मंदिर से आते ही अशोक और मधु से पूछा , मधु कुछ कहने को ही थी कि अशोक ने कहा “बहुत जल्दी माँ” .
सारे रिपोर्ट्स परसों आ जायेंगे। इतना कहकर अशोक ने माँ को संतुष्ट तो कर दिया लेकिन दोनों पति पत्नी माँ से इतना बड़ा झूट बोलकर दुखी थे।
विमला देवी यूँ तो एक अच्छी सास थी लेकिन पोते की प्रबल इच्छा थी उन्हें , इसलिए वो बार बार मधु से वंश बढ़ाने के लिए कहती रहती थी , लाख कोशिश के बाद भी जब मधु कोई खुशखबरी नहीं सुना पाई तो आज हॉस्पिटल जाकर चेक कराने की सोची और नतीजा सामने था।
रात में अशोक ने मधु का हाथ पकड़ते हुए कहा कि मधु हम माँ को सच बता देते हैं , हम इस झूठ को ज़्यादा देर छुपा नहीं पाएंगे और एक बच्चा गोद ले लेते हैं।
नहीं अशोक माँजी इसके लिए कभी राज़ी नहीं होगी।
वो तुम्हारे बच्चे का इंतज़ार कर रही हैं और मैं भी तुम्हारे अंश को ही इस आंगन में खेलते बड़े होते देखना चाहती हूँ।
लेकिन ये कैसे मुमकिन है मधु ???
मुमकिन है अशोक , मुझे पता है क्या करना है ??? अब इस बारे में कल बात करेंगे ???
मधु ने कुछ सोचते हुए कहा।
अगले दिन मधु ने अपनी योजना अशोक के आगे रखी तो अशोक खड़ा का खड़ा रह गया।
“मधु ऐसा कभी नहीं होगा , मैं सिर्फ एक बच्चे के लिए दूसरी औरत का सहारा कभी नहीं लूंगा , मेरा प्यार मेरा सब कुछ सिर्फ तुम्हारा है ”
अशोक ने मधु को समझाने की लाख कोशिश की लेकिन मधु ने अपनी कसम देकर उसे रोक दिया।
लेकिन माँ के सामने सच कैसे छुपाओगे और उस औरत के बारे में माँ से क्या कहेंगे , अशोक ने चिंतित स्वर में पूछा।
वो सब भी मैंने सोच लिया। अभी कुछ महीने तो माँ मुझे ही गर्भवती समझेगी।। जब दिन बढ़ने शुरू होंगे मैं अपने मायके चली जाउंगी, जो औरत हमारे बच्चे को जन्म देगी उसे भी अपने साथ वही रखूंगी। तब तक उस औरत को हम यहां नहीं कही और घर लेकर वहाँ रखेंगे।
मायके में सिर्फ मेरी माँ है , उसे सब सच बताकर कुछ महीनों बाद उस बच्चे को लेकर घर आ जाउंगी।
मधु की ज़िद और आंसुओं के आगे आख़िरकार अशोक को झुकना पड़ा।
कुछ दिनों बाद स्वाति नाम की एक औरत मिली जो पैसों की ख़ातिर अशोक के बच्चे की माँ बनने को तैयार हो गई।
इधर मधु और अशोक ने माँ से कह दिया की मधु माँ बनने वाली है , जिसे सुनकर माँ ख़ुशी से फूली न समां रही थी।
ऐसे ही कुछ महीने बीत जाने पर अशोक ने माँ से कहा कि माँ अगर आप कहें तो मधु को उसके मायके भेज दें , वहां उसकी माँ उसकी और बच्चे की अच्छे से देखभाल कर लेगी।
हाँ हाँ , भेज दे बेटा।
वैसे भी पहला बच्चा मायके में ही होता है। माँ की स्वीकृति मिलने के बाद अशोक मधु को उसके मायके छोड़ आया।
अपनी माँ से सब सच बताकर मधु ने स्वाति को भी वही बुला लिया।
मधु बेटा ये तू सही नहीं कर रही , ख़ुद को भी धोखा दे रही है और अपनी सास को भी। साथ ही किसी और औरत को अपने पति पर ह्क़ दे कर अच्छा नहीं किया तूने। मधु की माँ ने उसे समझाते हुए कहा।
नहीं माँ , ये कोई धोखा नहीं है , बस मुझे अशोक का अंश उस घर में चाहिए , और स्वाति तो बच्चे को जन्म देकर हमें सौंपकर चली जाएगी। उसके बाद उसका कोई हक़ नहीं होगा। उससे लिखित में लेंगे सब कुछ। उसे पैसे की ज़रूरत है और हमें बच्चे की।
मधु ने माँ को भी अपने तर्क से चुप करा दिया।
मधु ने दिन रात स्वाति का ध्यान रखा, कुछ महीने बाद स्वाति ने एक स्वस्थ बेटे को जन्म दिया , मधु की ख़ुशी का तो ठिकाना ही न रहा।
अशोक भी मधु के पास आ गया और दोनों मिलकर स्वाति और बच्चे को अस्पताल से मधु के घर ले आये।
अशोक की माँ अपने पोते का मुंह देखने को बेकरार थी लेकिन अशोक ने ये कहकर उन्हें जाने से रोक दिया कि माँ , एक हफ्ते तक मधु को ही घर ले आएंगे। तुमसे इतना लम्बा सफ़र नहीं होगा।
कुछ दिन बीत गए तब मधु ने अशोक को फ़ोन करके सारी कागज़ी कार्यवाही करने और उसे और बच्चे को घर ले जाने की बात कही।
अशोक अगले दिन मधु के मायके आया , स्वाति भी वहां मौजूद थी।
मधु जो बच्चे को सीने से लगाकर बैठी थी , अशोक को देखकर ख़ुश हो गई।
आते ही अशोक ने कहा कि हमारे बच्चे को लो और घर चलो।
मधु ने अशोक से कागज़ी कार्यवाही की बात कही तो तो अशोक ने मधु के आगे कुछ पेपर्स रख दिए। मधु को लगा ये पेपर्स बच्चे की कस्टडी के हैं।
अशोक ने एक बार फिर कहा कि बच्चे को लेकर घर चलो।
रुकिए , तो पहले मैं स्वाति से इन पेपर्स पर दस्तखत तो करवा लूँ।
मधु, इन पेपर्स पर स्वाति के नहीं तुम्हारे दस्तखत चाहिए।
हमें देर हो रही है , जल्दी करो दस्तखत कर दो।
अशोक पर भरोसा करके मधु ने ये सोचकर बिना पढ़े ही दस्तख़त कर दिए कि स्वाति का बच्चे पर कोई हक़ नहीं होगा , ये वो पेपर्स हैं।
मधु ने दस्तख़त करके पेपर्स अशोक को पकड़ा दिए और ससुराल जाने के लिए तैयार होने लगी।
मधु , घर तुम नहीं स्वाति जा रही है और अब तुम नहीं स्वाति मेरी पत्नी मेरे बच्चे की माँ है।
मधु पर तो जैसे हज़ारों बिजलियाँ गिर पड़ी , वो कुछ बोलने की स्तिथि में ही नहीं रही।
ये आप क्या कह रहे हैं दामाद जी, आखिर मेरी मधु ही आपकी पत्नी है और रहेगी। मधु की माँ मधु को सम्भालते हुए बोली।
जी नहीं , अब मैं इनकी पत्नी हूँ इनके बच्चे की माँ हूँ और मधु से अब इनका तलाक़ हो चूका है , और ये पेपर्स इसके गवाह है जिस पर अभी अभी आपकी बेटी ने दस्तखत किये हैं।, अशोक का हाथ पकड़ते हुए स्वाति ने मधु और उसकी माँ से कहा।
मधु तो अपने होश खो चुकी थी लेकिन फिर भी खुद को संभालते हुए उसने अशोक से कहा कि “क्यों, अशोक , ऐसे क्यों किया तुमने , तुम तो मेरी ख़ातिर कुछ भी करने को तैयार रहते थे , दूसरी शादी को भी ना करते थे, तुम्हारे वंश को आगे बढ़ाने के लिए मैंने अपना हक़ इस औरत से बांटा और आज तुम मुझे ही ऐसे धोखा देकर जा रहे हो ” .
देखो , मधु मैं तुम्हे हर महीने ख़र्च दे दिया करूँगा लेकिन अब स्वाति ही मेरी पत्नी है, तुम कभी माँ नहीं बन सकती। , कल को अगर हमें दूसरा बच्चा भी चाहिए होगा तो क्या फिर यही सब करना होगा , इससे बेहतर है मैं उस औरत के साथ रहूं जो अपने बलबूते मुझे और मेरे घर को खुशियां दे सके , दूसरी औलाद भी दे सके।
मैंने तुम्हारे लिए क्या कुछ नहीं किया तुमने मुझे ये सिला दिया। मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि “तुम मेरे साथ ऐसा व्यवहार करोगे” ??? मधु चीखते हुए अशोक से बोली।
उसने स्वाति की तरफ देखा और ग़ुस्से और दुःख से बोली कि छोटी बहन समझा था तुम्हें , तुम्हारी इतनी सेवा की और तुमने मेरा ही घर तोड़ दिया।
मैंने आपका घर नहीं तोड़ा , अशोक को मुझसे प्यार हुआ है और इसलिए अब वो मेरे साथ रहना चाहते हैं और मुझे पत्नी का दर्जा दे चुके हैं।
स्वाति की बात सुनकर मधु ने अशोक से पूछा कि लेकिन माँ जी से क्या कहोगे, तुम्हारे पास उनके सवालों का कोई जवाब है ???
मधु वो मेरी माँ है , मैं उसे समझा सकता हूँ।
नहीं बेटा, तु मुझे नहीं समझा सकता, आज भी मेरी बहु मधु ही है और रहेगी, वो घर मेरा है और अबसे मधु का।।।
दरवाजे से अंदर आती हुई मधु की सास ने सबको चौंका दिया
माँ, आप यहाँ,,, कैसे???
हाँ अशोक मैं यहां , कल रात मैंने स्वाति और तुम्हारी फ़ोन पर चल रही बातें कुछ कुछ सुन ली थी , इतना तो पता लग गया था कि मधु ने कितना बड़ा त्याग किया है लेकिन ये नहीं समझ पाई थी कि तुम इस बाहरवाली के बहकावे में आकर अपनी पत्नी मेरी बहु के साथ ऐसा व्यवहार करोगे “.
मुझे सारा माजरा जानना था इसलिए ख़ुद यहां चली आई।
मधु, बेटा तू मेरा वंश बढ़ाने के लिए इतनी क़ुर्बानिया दे रही थी और मैं अनजान थी लेकिन एक बार तू मुझसे बात तो करती , मैं कभी भी तेरी जगह किसी और को न लेने देती। पोते पोतियों की इच्छा हर दादा दादी को होती है लेकिन मैं इतनी संगदिल भी नहीं कि अपने वंश को बढ़ाने के लिए तुझे बलि चढ़ा दूँ।
माँ , ये कहकर मधु विमला जी के गले लग कर रोने लगी।
चल मधु तेरा घर तेरा इंतज़ार कर रहा है , विमला जी ने मधु से कहा।
लेकिन माँ , अशोक ने तो तलाक़ के पेपर्स पर मेरे दस्तखत ले लिए हैं और स्वाति को अपना चुके हैं अब वो घर मेरा कहाँ रहा।
नहीं मधु, वो घर आज भी तेरा है , अगर वहां से कोई जाएगा तो अशोक और उसकी ये नयी बीवी, माँ ने अशोक की तरफ़ देखते हुए ग़ुस्से से कहा।
लेकिन माँ , उस घर पर मेरा हक़ है , आप मुझे वहां आने से नहीं या रहने से नहीं रोक सकती।
विमला जी ने एक ज़ोरदार थप्पड़ अशोक के मारा और बोली कि मेरे वंश को आगे बढ़ाने के लिए ख़ुद की खुशियों को क़ुर्बान करने वाली मधु ही अब मेरी बेटी है , तेरे जैसे बेटे की मुझे ज़रूरत नहीं है।
और जिस घर में तू और तेरी ये नयी बीवी खड़ी है वो भी मेरी मधु का ही है , निकल यहां से। इतना कहकर विमला जी ने अशोक और स्वाति को मधु के मायके के दरवाज़े से भी बाहर निकाल दिया और मधु की माँ से इजाज़त लेकर मधु को लेकर घर चली गई। घर जाते ही उन्होंने अपने वकील को बुलाकर अशोक को अपनी जायदाद से बेदखल की वसीयत बना दी और मधु को अपना वारिस घोषित कर दिया।
अशोक ये सब जानकर ठगा सा रह गया और अब उसके पास पछताने के सिवा कुछ भी न रहा।
मधु धीरे धीरे अपनी माँ रूपी सास के प्रयासों से ज़िंदगी की पटरी पर फिर से चलने लगी थी , दिल लगाने और वक़्त गुज़ारने के लिए दोनों सास बहु घर से ही टिफ़िन सर्विस शुरू कर चुकी थी।
लेकिन जब भी मधु अकेले होती तो उसके दिल में ख्याल आ ही जाता था और वो दिल ही दिल में अशोक को याद करके सवाल करती कि “मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि तुम मेरे साथ ऐसा व्यवहार करोगे” ।
शनाया अहम