सविता ओ सविता …..लो बहू ….सबको बांट दो ….कैलाश जी ने कागज का ठोंगा पकड़ाते हुए कहां….! काग़ज़ के एक थैले में कैलाश जी मसूरपाग लाए थे… जिसे घर के सभी सदस्यों में बांटने को कहा….।
पास में ही बेटी निधि बैठी थी.. जो दो दिन पहले ही मायके आई हुई थी …..उसे पापा का यह व्यवहार थोड़ा अटपटा लगा…. अरे ये ठोंगा मुझे भी तो पकड़ा सकते थे ना… मैं ही बांट देती सबको….। ये पापा भी ना….. हर छोटे-मोटे कामों.. सलाह मशवरा के लिए भाभियों से पूछते हैं मुझसे भी तो बोल सकते थे ना ….कुछ नाराजगी सा मुंह बनाते हुए निधि सोचने लगी….
मां भी तो ऐसी ही थी …जब तक जीवित थी बहू बेटों …पोते पोतियो में ही जान बसती थी उनकी….मां पुराने ख्यालों की थी…. ज्यादा पढ़ी-लिखी भी नहीं थी… शायद इसीलिए बेटी के लिए… दूसरे घर की है …वाले विचार रखती थी ….!
भाभियों से छोटे-मोटे विषयों में तर्क वितर्क हो जाए तो भी हमें ही समझाने की कोशिश करती थीं… वो हमेशा कहती थी हमें दूसरों के घर जाना है… हर परिस्थिति को झेलना व सहना सीखो ….मर्यादा में रहो …. ! कभी-कभी मैं नाराज भी हो जाती थी…. निधि पुरानी बातें और मां को याद कर भावुक हो गई….।
लीजिए निधि मसूरपाग बड़ा स्वादिष्ट बनता है बाबूजी के ऑफिस के कैंटीन में….सविता ने ननद निधि से कहा….
अरे नहीं भाभी मेरा मन नहीं है कहकर निधि ने अनिच्छा जाहिर की..
देखिए ननद रानी यह मसूरपाग तो आपको खाना ही पड़ेगा ….माना आप हेल्थ काॅनसेस हैं… पर बाबूजी भी बड़े प्यार से आपके लिए ही तो खासतौर से लाए हैं …..यहां रख दिया है मैंने ….थोड़ी देर से खा लीजिएगा…! कहकर सविता घर के कामों में व्यस्त हो गई…..।
प्रतिदिन ऑफिस से आने के बाद कैलाश जी सामने बगान में बैठकर चाय पीते थे… कैलाश जी ने निधि से कहा आओ बेटा बगान में बैठ कर बातें करेंगे….! कैलाश जी को कहीं ना कहीं निधि का मूड देखकर आभास हो गया था कि किसी बात को लेकर निधि अपसेट है….।
और घर में सभी कैसे हैं….?? नीरज (दामाद) कब आएंगे यहां…? वगैरह-वगैरह….! बातों का सिलसिला जारी रखते हुए कैलाश जी… बस उस पल का इंतजार कर रहे थे जिस समय वह अपनी प्यारी बिटिया को कुछ बातें समझा सकें….।
बातों ही बातों में निधि ने भी पूछ ही लिया…. पापा मां के जाने के बाद आपको किसी चीज की कमी तो नहीं है ना…..?? आप खुश तो है ना पापा….?? प्यार से मुस्कुराते हुए कैलाश जी सिर्फ इतना ही तो कह पाए …..बस तेरी मम्मी के पद चिन्हों पर चलने की कोशिश कर रहा हूं बेटा…। घर में संतुलन बनाने के लिए किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए ये तेरी मम्मी से बेहतर कोई नहीं जान सकता…..।
मतलब पापा….? निधि ने विस्मय भरी नजरों से कैलाश जी की ओर देखते हुए पूछा…!
हां बेटा हर चीज जोर-जबर्दस्ती से एहसास कराया जाए ये आवश्यक नहीं है…. बहुत सी बातों को प्यार से उस पर अमल करके भी सिखाया जा सकता है ……कुछ बातें ठीक….मात्र कह देने से नहीं …..करने से होता है बेटा….!
अब देख ना रोज ऑफिस से लौटते हुए जो कुछ भी लाता हूं बड़ी बहू को आवाज लगा कर देता हूं ….आज भी मैंने वही किया…. मैं चाहता तो तुझे भी बोल सकता था पर मैंने रोज वाली दिनचर्या ही उचित समझा…।
अब बहुओं को भी लगता है कि बाबूजी हम लोगों को बेटी की तरह ही मानते हैं ….और मेरा भी चेहरा देखकर बहुएं भाँप जाती है कि बाबूजी आज थके हैं …या खुश है… या अपसेट है …..! मतलब बेटा कुछ पाने के लिए कुछ कोशिश भी करनी पड़ती है….।
इस तरह मैं तेरी मां के जाने के बाद भी खुद को अकेला ना कर बहू बेटों के साथ अपने को जोड़ कर रखने की पूरी कोशिश की है…. और तेरी मां हमेशा कहती थी …यदि सब अपने अपने कर्तव्यों को देखें तो समस्याएं कम होंगी ….
और यह बात रिश्तों के दोनों पहलू की ओर होनी चाहिए….!
सिर्फ बहू बेटों या नए जेनरेशन को दोष देने से कुछ नहीं होने वाला…. दो जनरेशन के बीच तालमेल बैठाने की कोशिश करना भी हमारा ही कर्तव्य है….।
अब देख ना तू अभी आई है… मैं सिर्फ बेटी बेटी ही करूंगा …तो हो सकता है कुछ बातों में बहुएं अपने को उपेक्षित महसूस करें ….फिर तेरे जाने के बाद तो उन्हीं को पुकारना है तो क्यों ना संतुलन बना रहे इसका ध्यान दिया जाए….।
हम बड़े हैं , सर्वोपरि है ,हमारा मान सम्मान इज्जत हमेशा होना चाहिए… हमसे किसी प्रकार की अपेक्षा नहीं होना चाहिए …इस “गुरुर ” में ना बेटा कभी-कभी रिश्ते हाथ से रेत की तरह फिसल जाते हैं और सब कुछ खत्म हो जाता है फिर यही गुरुर हमें अकेला और बिल्कुल अकेला कर देता है..।
कैलाश जी और निधि आपस में बातें कर ही रहे थे… तब तक सविता चाय लेकर आ गई…. रख दो बहू…. कैलाश जी ने कहा …और ट्रे से चाय उठाते हुए निधि ने कहा…. भाभी मेरा मसूरपाग कहां रखा है….? सच में पापा बड़े प्यार से मेरे लिए लाए हैं….।
मेरे स्मार्ट पापा…..निधि ने मुस्कुराते हुए कहा…!
सच में साथियों , रिश्तों की मजबूती और प्रगाढ़ता के लिए हम सभी को चाहे…. बहू बेटी हो या सास ससुर…छोटी मोटी बातों को ध्यान में रखते हुए प्रमुखता भी देनी चाहिए …और कुछ छोटी मोटी बातों को लेट गो, छोड़ो जाने भी दो, हो गया जैसी चीजें भी करनी चाहिए तभी रिश्तो की खूबसूरती बरकरार रहेगी….।
सिर्फ जेनरेशन गैप का नाम देकर विचारों में मतभेद को जटिल न बनाकर ….सरल व सहज बनाने की कोशिश दोनों पक्षों द्वारा करनी चाहिए…!!
(स्वरचित मौलिक और अप्रकाशित सर्वाधिकार सुरक्षित रचना )
साप्ताहिक विषय # गुरुर
✍🏻संध्या त्रिपाठी