” ये क्या भाभी…आप कैसी साड़ी लेकर आईं हैं?बड़े घर में लेन-देन कैसे करना चाहिये…इसका सलीका आपको बिल्कुल भी नहीं है।आखिर मिडिल क्लास की जो ठहरीं…।” कहते हुए चारु ने गुस्से-में अर्चना भाभी द्वारा लाई हुई साड़ी को पलंग से उठाकर नीचे फेंक दिया।उसकी भाभी रोती हुई चली गई।तब उसकी सास उसे समझाते हुए बोली,” चारु…एक साड़ी के लिये इतना क्रोध! बेटी…जानती हो ना…दो पल के गुस्से से प्यार भरा रिश्ता बिखर जाता है।”
चारु एक अध्यापक की बेटी थी।वह देखने में जितनी सुंदर थी..स्वभाव की उतनी ही सरल और पढ़ाई में होशियार थी।पिता की अचानक मृत्यु हो जाने के बाद उसके बड़े भाई अखिल ने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और एक प्रोविज़नल स्टोर में काम करने लगे।कुछ महीनों बाद उन्होंने अपना स्टोर खोल लिया और घर की ज़िम्मेदारी के साथ-साथ अपनी बहन चारु की पढ़ाई का जिम्मा भी अपने कंधों पर उठा लिया।वह दिन-रात मेहनत करते ताकि उनकी बहन की पढ़ाई में कोई अड़चन न आये।
कुछ समय बाद अखिल की माताजी ने अपने पति के मित्र की बेटी अर्चना के साथ बेटे का विवाह करा दिया।अर्चना ने आकर न सिर्फ़ अपना घर संभाला बल्कि अपनी ननद को भी बहन बना लिया।
अर्चना एक बेटे की माँ बन गई।चारु का बीए का फ़ाइनल ईयर था।कॉलेज़ के वार्षिकोत्सव में उसने एक नृत्य किया जिसे सभी लोगों ने बहुत सराहा।शहर के उद्योगपति श्री जानकीदास उस फ़ंक्शन के मुख्य अतिथि थे।उन्हें चारु बहुत पसंद आई और दो दिनों के बाद काॅलेज़ से उसके घर का पता लेकर वो पत्नी के साथ उसके घर पहुँच गये।अपना परिचय देकर उन्होंने अपने बेटे आशीष जो अपने पिता के व्यवसाय को संभाल रहा था, के लिये चारु का हाथ माँग लिया।
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सुनकर चारु की माताजी तो दंग रह गईं।उन्होंने कहा कि भाईसाहब..ये कैसे संभव हो सकता है।आप लोग तो इतने संपन्न हैं और हम लोग ठहरे मिडिल क्लास। फिर चारु ने अभी अपना ग्रेजुएशन भी तो पूरा नहीं किया है।तब साथ आईं श्रीमती जानकीदास मुस्कुराते हुए बोलीं,” हमारे लिये अमीर-गरीब में कोई फ़र्क नहीं है…सब बराबर हैं।चारु ही हमारे घर की बहू बनेगी।पढ़ाई की चिंता आप न करें…उसके इम्तिहान हो जाने के बाद ही विवाह होगा।”
शुभ मुहूर्त में चारु का विवाह आशीष के साथ हो गया और वह एक उद्योगपति परिवार की बहू बन गई।ससुराल की शानो-शौकत देखकर चारु की आँखें चुँधिया गई।काम करने के लिये नौकर-चाकर और बाहर घूमने के लिये गाड़ियाँ…उसकी अलमारी कपड़े-गहनों से भरी हुई थी। उसे यह सब एक सपना-सा लगता था।सास-ससुर की लाडली थी और बड़ी ननद स्नेहा की प्यारी भाभी।
धीरे-धीरे चारु को अपने पर घमंड होने लगा…वह अपने मायके वालों को छोटा समझने लगी।फ़ोन पर भी
माँ से बात करती तो उसके स्वर अहंकार से भरे होते थे।जब कभी मायके जाती तो वहाँ की कमियाँ निकालती। उसके बदले हुए स्वभाव को उसकी सास ने नोटिस किया और आशीष ने भी।उन्होंने सोचा कि चारु को समझ आ जायेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
शादी के बाद पहली राखी पर अखिल बहन से राखी बँधवाने आया था।अर्चना अपनी ननद के लिये साड़ी और मिठाई लाई थी जिसे देखकर चारु ने अपने नाक-भौं सिकोड़ लिये और अपनी भाभी की बेइज्ज़ती की।घर की बहू घर आये मेहमान का अपमान करे…ये बात चारु की सास को अच्छी नहीं लगी।उन्होंने चारु को समझाते हुए कहा,” एक साड़ी के लिये अपनी भाभी पर गुस्सा करना कहाँ की समझदारी है।”
” मम्मी जी…वो…मैं तो…।” चारु की आवाज़ लड़खड़ा गई।तब उसकी सास बोली,” चारु..तुमने ही तो कहा था कि तुम्हारी पढ़ाई की फ़ीस भरने के लिये तुम्हारी भाभी ने कभी अपने लिये नयी साड़ी नहीं खरीदी।उन्होंने हमेशा तुम्हारी पसंद-नापसंद का ख्याल रखा लेकिन तुमने उनके साथ क्या किया …ज़रा सोचो..जिस साड़ी की तुमने तौहीन की, उसे खरीदने के लिये तुम्हारे भाभी न जाने कब से बचत कर रहीं होंगी।
चारु..रिश्ते अनमोल होते हैं।उसकी कद्र करनी चाहिए।उपहार देने वाले का दिल देखना चाहिए..कीमत नहीं।जानती हो ना कि दूध में दो बूँद खटास पड़ जाए तो वह फट जाता है…आज तुम्हारे दो पल के गुस्से से ननद-भाभी का प्यार भरे रिश्ता बिखर गया।बरसों पहले मुझसे भी ऐसी ही भूल हो गई थी।मेरे ज़रा-से क्रोध के कारण मेरी प्यारी सहेली हमेशा के लिये मुझसे बिछड़ गई थी।कहीं तुम्हारी भाभी भी…।” कहते हुए उनकी आवाज़ भर्रा गई।
” आई एम साॅरी मम्मी..मैं अभी…।” कहते हुए चारु ने अपनी भाभी को फ़ोन लगाया।उनके हैलो कहते ही वह रोने लगी।उसका रोना सुनकर भाभी घबरा गईं,” क्या हुआ चारु…तेरी सास ने कुछ कहा क्या…साड़ी के लिये टेंशन मत ले…मैं कुछ दिनों में तेरी पसंद की….।”
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” नहीं भाभी…मुझे कुछ नहीं चाहिए।मैंने गुस्से में आपकी..अपने पिता समान भाई की इंसल्ट की है भाभी…मुझे माफ़ कर दीजिये…।” कहते हुए वह फूट-फूटकर रोने लगी।
चारु की सास ने फ़ोन ले लिया और उसकी भाभी से कहा कि आप चिंता न करें…अब चारु ठीक है।फिर चारु के सिर पर प्यार-से हाथ फेरते हुए बोली,” भाभी से मिलने जाना है…।”
तभी स्नेहा आशीष को राखी बाँधने आ गई।चारु स्नेहा को उपहार देने लगी तो स्नेहा गुस्से-से बोली,” भाभी..ये क्या!” चारु चौंक गई और तब स्नेहा और आशीष हा-हा करके हँसने लगे।चारु स्नेहा के बनावटी गुस्से को समझ गई।फिर तो वह भी हँसने लगी और उसकी सास…ननद-भाभी के प्यार को देखकर मंद-मंद मुस्कुरा रहीं थीं।
विभा गुप्ता
स्वरचित
( सर्वाधिकार सुरक्षित )
# दो पल के गुस्से से प्यार भरा रिश्ता बिखर जाता है..