तकरार – डॉ संगीता अग्रवाल  : Moral stories in hindi

पापा!पापा!मेरा शू लेस बांध दीजिए प्लीज!नन्हें बिट्टू ने अमन से कहा तो वो मोबाइल में आंखें गड़ाए बैठा रहा…जाओ बेटू!मम्मी सर करा लो।

मम्मी तैयार हो रही हैं जाने के लिए,उन्होंने आपके पास भेजा है,वो गुस्से से बोला।

शालिनी!अमन चिल्लाया,देखो बिट्टू को,वो  क्या कह रहा है…?

आप नहीं देख सकते? मै ब्रेकफास्ट भी बनाऊं,बच्चे को रेडी भी करूं,खुद भी जॉब पर जाऊं और आप यहां बैठकर वीडियो गेम खेलें और ऑर्डर चलाएं बस।

हाऊ मीन !!जरा दो महीने घर क्या बैठा,तुमने तो मुझे निठ्ठला ही समझ लिया…सारा घर खर्च मेरे ही दम से चलता था अभी तक,एक तुम लेडिज दो पैसे क्या कमाती हो,रोब बहुत मारने लगती हो।

देखो!बात को गलत दिशा मत दो अमन!शालिनी गुस्से से बोली,तुम जानते हो,मेरा मतलब वो बिल्कुल नहीं था।

तो क्या था? जरा समझा ही दो आज…अमन भी तेज आवाज में बोला।

लड़ने के लिए तुम पर हरवक्त खूब टाइम निकल आता है,अभी दो मिनट पहले बिट्टू के लेसेस बांधने का तुम पर वक्त नहीं था और अब देखो…

तुम आ कर डिसाइड कर ही लो आज,कौन कितना काम करता है?अमन चीखा।

तभी वैन  के हॉर्न की आवाज आई और शालिनी बिट्टू का हाथ पकड़,उसे घर से बाहर ले जाने लगी,वो बड़बड़ाती जा रही थी,आज शाम को बात कर ही लूंगी इस अमन से…रोज की किच किच मुझे बर्दाश्त नहीं,इन आदमियों का मन बड़ी जल्दी ऊबता है अपनी बीबी बच्चो से…तलाक चाहता है तो दे दूंगी मैं भी।

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उधर अमन भी कम गुस्से में नहीं था,समझती क्या है खुद को?जब तक कमाता था,सुबह से शाम तक कोल्हू का बैल बना रहा,बड़ा लाड़ टपकाती थी मुझ पर…लाओ जी तुम्हारे सिर मालिश कर दूं,पैर दबा दूं,कभी कोई डिश बनाकर खिलाती,कभी सज संवर के मुझे रिझाती और अब जरा बेरोजगार क्या हुआ,इसने तो सुर ही बदल लिए।

आज नहीं तो कल,दूसरी नौकरी मिल जाएगी,इसमें मुसीबत क्या है फिर मेरी अच्छी खासी सेविंग्स हैं,उससे खर्च करो,किसने कहा है झांसी की रानी बनकर नौकरी करने को,बच्चे को संभालो,खुद राज करो घर पर।

उस दिन,शाम को दोनो गुस्से से भरे बैठे थे। सामान्यत दोनो लड़ झगड़ के कुछ अंतराल में शांत हो जाते थे पर अब दिनो दिन उनकी तल्खियां बढ़ती जा रही थीं।

चाय पीकर बैठी ही थी शालिनी कि अमन ने जिक्र छेड़ दिया जैसे ही बिट्टू खेलने बाहर गया।

क्या कह रही थीं सुबह तुम?मुझसे तंग आ गई हो?छुटकारा चाहिए मुझसे?

मैंने ये कब कहा?वो अचानक हुए हमले से घबरा गई।

मतलब तो वही था तुम्हारा,भले ही शब्द कुछ और हों..वो गुस्से में बोला।

थकी हुई थी शालिनी,बात को खत्म करने के इरादे से बोली,आखिर तुम चाहते क्या हो मुझसे?खुल कर बताओ,क्यों बात घुमा फिरा के बोलना।

शौक नहीं मुझे बात घुमाने का,तुम मुझसे अलग होना चाहती हो?सीधे कहो।अमन बोला।

शालिनी पल भर को स्तब्ध रह गई पर उसने जाहिर नहीं होने दिया…हां! चाहती हूं अलग होना,रोज रोज की लड़ाई तो खत्म होगी,तुम्हारा भी दिल कहीं और लग गया है अब…ले लो तलाक मुझसे।

ठीक है मैडम!हफ्ते भर में कागज़ तैयार करवा लूंगा मैं।

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मैं भी झट साइन कर दूंगी…समझे!गुस्से से पैर पटकती शालिनी कमरे में गई और भड़ाक से दरवाजा बंद किया।

तोड़ दो दरवाजा!अब तुम्हारा क्या है यहां, मैं भाड़ में जाऊं…चीखा था अमन,अभी फोन करता हूं अपने वकील दोस्त मिस्टर नय्यर को।इसका किस्सा ही खत्म करता हूं।

अगले हफ्ते ही दोनो ने तलाक के पेपर साइन कर दिए थे।लेकिन अलग होने  से पहले अभी छह महीने साथ रहना था उन्हें।

दोनो ही एकदम अजनबी बन गए थे एक दूसरे के लिए।बिट्टू के ही बहाने कभी बात होती नहीं तो बिलकुल चुप।अब कोई लड़ाई भी नहीं होती थी दोनो में।समय काट रहे थे शायद दोनो कि कब अलग हों।

अमन को उसकी नई बॉस ईशा पसंद आ गई थी,वो भी अमन के डैशिंग व्यक्तित्व से प्रभावित थी और अमन से शादी तक करने को तैयार थी।

डार्लिंग!कब फ्री हो जाओगे तुम अपनी बीबी से?अब इंतजार नहीं होता और मुझसे।वो कहती।

बस कुछ दिन और…फिर हम तुम हमेशा के लिए एक हो जायेंगे।अमन उसे अपनी बाहों में भर लेता और ईशा सिगरेट के छल्ले से उसका मुंह भर देती।

रहता तो अभी अमन,शालिनी के ही साथ था अभी।कैलेंडर में दिन मार्क करता,उल्टी गिनती शुरू हो चुकी थी,बस पंद्रह दिन और फिर छुट्टी इस नखरीली,गुस्सैल औरत से।

उस दिन,सुबह उठा तो रसोई में बड़ी तेज आवाज हुई,दौड़कर गया तो देखा,शालिनी स्टूल से नीचे गिर गई थी,वो कराह रही थी।

सहारा देकर उठाना चाहा था अमन ने उसे,वो उठी पर फिर गिर गई,मोच आ गई थी उसके पैर में,अमन ने उसे अपनी बाहों में उठा लिया।

दोनो इतने नजदीक कई महीनो बाद आए थे,शालिनी के शरीर की चिर परिचित खुशबू से अमन बहुत समय बाद रूबरू हुआ,आखिर थे तो अभी भी पति पत्नी ही,दोनो की आंखें मिली और भावनाओं का स्रोत बह निकला।मन का मैल शरीर की नजदीकियों से धुल गया और चोर निगाहों से दोनो एक दूसरे को  प्यार से देखने लगे जैसे शिकायत कर रहे हों,मेरी याद नहीं आई तुम्हें?

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उस दिन,अमन ने पहले ब्रेक फास्ट,फिर लंच बनाकर खुद अपने हाथों से खिलाया  शालिनी को और उसे अपनी शादी के शुरू के दिन याद आ गए।कितने नखरे उठाता था अमन उसके।एक दिन रात को बारह बजे,उसका चोको मोको चॉकलेट खाने का दिल हुआ था और अमन सारे शहर में ढूंढ के उसके लिए वो लाया था।

क्या हो गया था उन दोनो के प्यार को?किसकी नजर लग गई थी? शालिनी ने सोचा। “क्या हुआ जो कुछ दिन उसकी नौकरी छूट गई,जिंदगी में उतार चढाव तो लगे रहते हैं, मैं भी बिन बात इससे इतना लड़ती थी लेकिन अब क्या हो सकता है?ये तो शादी कर रहा है अपनी बॉस से।”

अगले दिन,शालिनी कैब बुक कर रही थी डॉक्टर के पास जाने के लिए ,तभी अमन बोला, मै चलूंगा डॉक्टर के पास,तुम्हें दिखाने।

आप क्यों फॉर्मेलिटी करेंगे…छोड़िए! बुझे मन से वो बोली।

अभी कागजों में, मैं ही तुम्हारा हसबैंड हूं, समझी!!वो अधिकार से बोला।

जब इतना अधिकार रखते हो तो अलग ही क्यों हो रहे हो?शालिनी डबडबाई आंखों से बोली।

क्या??अलग तुम होना चाहती थीं मुझसे,मैंने तो बस तुम्हारी इच्छा पूरी की है,वो उसके पास आते बोला।

अच्छा!मेरी इच्छा होगी तुम उस चुड़ैल(ईशा) के पास न जाओ तो नहीं जाओगे?अपनी बड़ी आंखें फैला कर मासूमियत से शालिनी बोली।

एक बार कह कर तो देखो…रोमांटिक होते हुए अमन ने शालिनी को अपने बाहों के घेरे में कसते हुए कहा।

तुम सिर्फ मेरे हो अमन…मैं सब वैसा ही करूंगी जैसा तुम कहोगे बस अपना घर छोड़ कर कहीं मत जाना।वो उससे लिपटते हुए बोली।

कौन कमबख्त अपनी हीरे जैसे दिल वाली खूबसूरत पत्नी को छोड़कर लोहे और पीतल को अपनाएगा?अमन ने कहा तो वो दोनो खिलखिला कर हंस पड़े।

डॉक्टर संगीता अग्रवाल

वैशाली,गाजियाबाद

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