मम्मी जी आपने मेरा कमरा भइया भाभी को क्यों दे दिया, अरे शिल्पी कैसी बात कर रही हो कौन सा तुम्हारा कमरा हमेशा के लिए दे दिया भइया भाभी को बस रात को सोने के लिए ही तो दिया है ।
शिल्पी बोली फिर भी मैं बहू हूं इस घर की अब मैं कहां इधर उधर गद्दा चादर लेकर फिरती रहूंगी।एक तो इस घर में मेरे को कोई आजादी नहीं अपने मर्जी के कपड़े नहीं पहन सकती ऊपर से अब कमरा भी दे दिया।
क्या आजादी नहीं है तुम्हें इस घर में संध्या नै कहा बस यही तो कहा था कि यहां पर जींस मत पहनना अपने वहां दिल्ली में पहनना यहां हम लोग समाज के बीच में रहते हैं तो थोड़ा अच्छा नहीं लगता ।
और कौन सी तुम्हारी आजादी में खलल डाल दिया।बस इतनी सी बात पर तुम्हारी आजादी खत्म हो गई। कमरे वाली बात सुनकर संध्या का पारा चढ़ गया था कि देखो कैसे बोल रही है बहुएं होती है घर की इज्जत बचाने वाली कि इज्जत का ज़नाजा निकालने वाली ।
दरअसल संध्या के ससुर कि स्वर्गवास हो गया था।तो संध्या के बहू बेटे आए थे एक हफ्ते को ,। स्वर्गवास के तीन दिन बाद संध्या के घर पर शोक सभा थी तो उसमें शामिल होने के लिए संध्या के जिठानी के बेटे बहू घर आए थे ,सभी लोग शोक सभा समाप्त होने पर चले गए थे लेकिन जेठ के बेटा बहू भोपाल से आए थे तो वो लोग एक रात रूक गए थे दूसरे दिन उन्हें निकलना था उन्हीं को शिल्पी भइया भाभी बोली रही थी ।
संध्या की बहू भी नौकरी करती थी और उसका काम रात को नौ बजे से सुबह पांच बजे तक चलता था। संध्या का ऊपर नीचे का घर था ऊपर के हिस्से में एक किराएदार रहते थे और एक कमरा बेटे बहू के लिए संध्या ने रख रखा था । जबकि नीचे चार कमरे है और घर में सिर्फ संध्या और उनके पति रमेश जी रहते हैं ।
नीचे चार छै लोगों को सोने की व्यवस्था है । वैसे तो जेठ के बेटा बहू कभी घर पर रूकते नहीं थे क्योंकि यहां पर बहू के एक रिश्तेदार हैं वो लोग वही पर रूकते हैं ,आज पहली बार वो लोग घर पर रूक रहे थे ,वो भी इस लिए कि घर में किसी के देहान्त पर आओ तो कहीं और नहीं रूका जाता ।इस लिए रात को रूक गये थे कल तो चले ही जाना था ।और थोड़ी देर तक सोते हैं तो संध्या ने ऊपर का कमरा दे दिया था ।
संध्या ने शिल्पी से कहा नीचे बैठकर आफिस का काम कर रही हो रात भर तो तुम्हें वैसे भी नहीं सोना है और जब सुबह आफिस का काम खत्म होगा तो सोओगी नीचे इतनी जगह ख़ाली पड़ी है सो जाना कहीं भी
।
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फिर भी घर की इज्जत तो बहू बेटी के हाथ में होती है न।और घर में जगह न हो तो लोग अपना कैसे भी काम चला लेते हैं और अपना कमरा दे देते हैं और खुद समझौता कर लेते हैं ।और फिर संध्या के घर में तो नीचे काफी अच्छी जगह भी थी । पता नहीं कैसे संस्कार दिए जा रहे हैं बेटियों को कि घर की इज्जत खाक में मिलाएं है ।हक जमाना है तो बहू हो गई घर की और जब जिम्मेदारी आए तो मुकर जाना है ।
संध्या का खून खौल गया शिल्पी के मुंह से ऐसी बात सुनकर। किसी बात पर शिल्पी की मम्मी भी संध्या सै शिकायत कर रही थी कि आपने शिल्पी का कमरा अपने जेठ के लड़के बहू को दे दिया आखिर मेरी बेटी उस घर की बहू है अब बताइए सारी बातें मम्मी तक पहुंच गई। कितना काम करती है मेरी बेटी आपके घर में नौकरानी बना दिया है प्यार से रखिए बेटी बनाकर अब बेटी होती तो ऐसा करती जैसा शिल्पी जी कर रहीं थीं ।
संध्या को बहुत गुस्सा आया तो बहू की मम्मी से बोला आपकी बेटी रहती कब है हमारे पास वो तो दिल्ली में रहती है कभी कभार तीन चार दिन को आ जाती है तो कौन सा दिनभर काम करती है कुछ पता भी है उन्हें घर के कामों का सारा काम तो मैं ही करती हूं आप अपनी बेटी से पूछ लेना कौन सा काम करती है घर में ।
कभी कभी बहुएं कुछ ग़लत सलत भी अपनी मम्मी को बताती है ।और हां आपके घर कोई मेहमान आ जाए तो उनको आप अपना कमरा मत देना बाहर बरामदे में सुला देना। क्यों कि जब मुझे बताया जा रहा है कि आपने बेटी का कमरा दे दिया तो आपके यहां ऐसा ही होता होगा।हद हो गई कैसे लोगों से पाला पड़ा है।
कुछ लोगों की बातें सुनकर खून खौल जाता है। लेकिन क्या करें इस तरह के रिश्ते बन जाते हैं कि कभी-कभी निभाना बड़ा मुश्किल हो जाता है।कब तक नज़रंदाज़ करते रहेंगे आप।जिसका कोई हल नजर नहीं आता है। आजकल लड़कियां कुछ बोलने से पहले सोचती नहीं है कि हम क्या बोल रहे हैं।घर की इज्जत सबकी इज्जत है ।
मुझे तो लगता है कि आजकल संस्कारों की बहुत कमी होती जा रही है बच्चों में।ये गौर करने की बात है।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश