मां की ममता – वीणा सिंह  : Moral stories in hindi

आईसीयू के बाहर बैठे मनोहर बाबू उदास और चिंतित से महादेव का स्मरण कर रहे थे आंखों से आंसुओं की बरसात हो रही थी..

                        इंसान जब हर तरह से निराश हताश हो जाता है तभी अपने ईष्ट देव को याद करता है.. ये मानव स्वभाव की प्रकृति होती है..

बेटी मान्या और बेटा मयंक को फोन पर रुंधे गले से सुभद्रा के दिल के दौरे के विषय में बताया… सोचा था सुनते हीं बच्चे दौड़े चले आयेंगे पर…

                     मान्या का ऑडिट चल रहा था और मयंक को टिस्को कंपनी पंद्रह दिन के लिए विदेश भेज रही थी… बच्चे कितने ब्यव्हारिक हो गए हैं आज कल! मयंक के विदेश जाने का पहला मौका था , मां की ममता और जिंदगी पर भारी पड़ रहा था…

              दोनों बच्चों ने अच्छे हॉस्पिटल में पैसे की चिंता किए बगैर इलाज कराने की सलाह दी… वो डॉक्टर तो हैं नहीं..

                      डॉक्टर का कहना था बारह घंटे काफी क्रिटिकल है, दुआ कीजिए और इंतजार कीजिए हम पूरी कोशिश कर रहे हैं..

              सुभद्रा अक्सर बच्चों के लिए मुझसे मुंह फूला लेती… मैं बच्चों को डांटता और सुभद्रा का अबोला शीत युद्ध शुरू…

             मान्या जब सीए करने दिल्ली जा रही थी सुभद्रा बेटी के दूर जाने से जितनी दुखी थी उतनी खुश थी अच्छे संस्थान में सिलेक्ट हो जाने पर… कितने उत्साह से उसके जाने की तैयारी की.. मान्या के जाते हीं अब तक रोका हुआ आंसुओं का बांध टूट गया.. कितने दिनों तक रोती रही… बेटी को सुबह शाम फोन कर कुशल मंगल पूछती…

            छः महीने बाद बेटा भी एमबीए करने चला गया.. सुभद्रा उदास हो गई…

                 अब बच्चों की छुट्टियों का इंतजार रहता..

               घर और बच्चों से बंधी सुभद्रा बच्चों के जाने से अक्सर उदास हो जाती… मान्या का कमरा ठीक करने जाती आंखें भीग जाती… मैं कितना समझता बच्चे और पछी दोनो पर निकलते हीं उड़ जाते हैं पर..

      मान्या और मयंक छुट्टियों में आते  तो सुभद्रा खुश हो जाती .. घुटने का दर्द अपनी पुरानी माइग्रेन का दर्द भूल जी जान से उनकी हर फरमाइशें पूरी करती.. अपनी सहेलियों के साथ, बाहर के खाने से ऊबी हुई मान्या अक्सर घर में हीं पार्टी करती मेरे लाख मना करने के बाद भी सुभद्रा मुझे कसम देकर चुप करा देती और तरह तरह के व्यंजन बनाती खिलाती…

                रात में बिस्तर पर आते हीं थकावट और दर्द से कराह उठती.. मैं अक्सर उसके हाथ पैर दबा देता नानुकुर करती पर उसे अच्छी नींद आ जाती..

               कहते हैं बेटियां मां के बहुत करीब होती है उनके दुःख दर्द को महसूस करती है पर मान्या…

                ऐसे हीं एक बार मान्या छुट्टियों में आई तो सुभद्रा से कहा मम्मा मुझे आपकी साड़ियों में से एथनिक डे के दिन पहनने के लिए लेना है.. मैने कहा नई ले लो पर उसे सुभद्रा की हीं साड़ी लेनी थी..

               अलमारी में करीने से ड्राई वाश कर रखी हुई साड़ियों को बेदर्दी से खोल के बिखरा के चली गई.. साथ हीं सुभद्रा की साड़ियों को पुराने और देहाती होने का टैग लगा कर चली गई…

                        सुभद्रा कितना इंतजार करती मान्या और मयंक के आने का.. और जब आते तो दोस्तों और बाकी बचे समय मोबाईल पर बिता कर वापस चले जाते.. सुभद्रा सोचती थोड़ा समय बच्चे मेरे साथ बिताए कुछ सुने कुछ सुनाए पर…

                     मान्या और मयंक की इसी बेरुखी ने सुभद्रा को अंदर से तोड़ डाला.. भोली भाली सेंटीमैंटल स्वभाव की सुभद्रा अपने हीं बच्चों के व्यवहार से बहुत आहत थी.. मैने कितना समझाया एक दिन बहुत अफसोस करोगी पर सुभद्रा की ममता मेरी बात कहां सुनने वाली थी… अपने अंदर का दुःख मुझसे भी नही कहती..

                      पांच साल हो गए मान्या के नौकरी करते… और तीन साल से मयंक भी नौकरी कर रहा है.. बेटी और बेटा के ब्याह के सपने संजोए सुभद्रा उनकी नौकरी लगने का इंतजार कर रही थी…

          नौकरी लगते हीं सुभद्रा के सपनों पर बच्चों ने तुषार पात कर दिया…

         मान्या ने साफ कह दिया अभी तो शादी के लिए सोचा हीं नहीं है हमारी अपनी जिंदगी है अपने हिसाब से जीने दो अपना जन्म देने का कर्तव्य आपने  पूरा कर दिया… चैन से रहिए और हमे भी जीने दीजिए..

     और मयंक को भी अपना कैरियर बनाना है .. कंपनी में अपना पोजिशन हासिल करना है… शादी ब्याह का क्या… जब इच्छा होगी तो देखा जायेगा .

          कहां जा रही है ये पीढ़ी! ना कोई अंकुश ना लगाम मां बाप की इच्छा और खुशियों का कहीं कोई जगह नही.. एक दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ कहां ले जा रही है इन्हे..

           पारिवारिक जीवन का सुख इनके नसीब में कहां…

               मान्या और मयंक के निर्णय ने सुभद्रा को आज इस मुकाम तक ले आया है.. ऐसी हीं संतान की आशा की थी हमने.. इनका होना नही होना इस वक्त कोई मायने नहीं रखता.. निः संतान होते तो ये दर्द तो नहीं होता…

                        डॉक्टर ने मनोहर बाबू के कंधे पर हाथ रखा सुभद्रा जी होश में आ गई हैं आइए.. ये नौजवान डॉक्टर ये भी तो इसी पीढ़ी का है, कितने प्यार से बात करता है, कितनी बार मुझे सुभद्रा के ठीक हो जाने का आश्वासन दिया है मुझे हिम्मत दी है.. नही सभी बच्चे ऐसे नही है… कितने खुशनसीब होंगे इनके मां बाप!!

            अब सुभद्रा को दुनिया की कठोर हकीकत को समझना होगा और उसी के साथ जीना होगा..

             हमे एक दूसरे में सहारा ढूढना होगा! हम जीवन साथी हैं .. जवानी में बच्चों की परवरिश नौकरी की व्यस्तता में जो वक्त हमने खोया है शायद उसी की भरपाई के लिए सुभद्रा को भगवान ने नवजीवन प्रदान किया है..

               🙏❤️✍️

           Veena singh..

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