फर्ज – आर कान्ता नागी: Moral stories in hindi

मनोरमा देवी घर की मुखिया थी।वह जो कहती सबको मानना ही पड़ता था।उनके पति अमरनाथ जी नामी वकील होने के साथ साथ रहमदिल इंसान भी थे।आज तक उन्होंने कोई भी केस हारा नही था। अमरनाथ जी अमीरों से दुगुनी फीस लेते थे और गरीबों का केस फीस लिए बिना लड़ते थे।इस प्रकार उन्होंने कितने घरों को अपनी काबिलियत से बचाया था।

उनके दो बच्चे थे।राघव और रिया।राघव अपने पिता की तरह वकील बनना चाहता था।जबकि रिया ग्रेजुएशन कर रही थी। राघव की परीक्षा का अन्तिम साल था।अगले साल वह भी अपने पिता की तरह वकील बन जाएगा।

एक दिन अमरनाथ जी एक केस पर जिरह कर रहे थे कि चक्कर आने से नीचे गिर गये।जब उन्हें अस्पताल लेकर जाया गया तो पता चला सैरिब्रल अटैक आया है,इसके कारण उनका दाहिना हाथ और पैर लकवाग्रस्त हो गया था।अब उन्हें अपना जीवन व्हील चेयर पर बैठकर ही काटना था। इसलिए घर की बागडोर मनोरमा देवी के हाथ आ गई।

मनोरमा जी राघव का विवाह अपनी सहेली की बेटी सिया से करना चाहती थी पर राघव ने कहा वह कोमल से ही विवाह करेगा जिसे उसने एक केस के सिलसिले मे अपने क्लाइंट के घर देखा था।

हारकर मनोरमा जी ने राघव का विवाह कोमल से करवा दिया। विवाह के तीन दिनों बाद ही उन्होंने रसोई का सारा काम सौंपते हुए कहा -यह तो बहुओं का फर्ज है।कोमल भी चुपचाप अपना फर्ज निभा रही थी।

एक दिन थकी होने के कारण कोमल सो गई थी।उस दिन

मौसम खराब हो जाने के कारण कपड़े भीग गये थे।घर मे रिया थी लेकिन उसे मनोरमा जी ने नही भेजा सारे कपड़े भीग गये।अचानक बादली की गरज से कोमल जाग गई और भीगते हुए कपड़े लेकर आई।

जैसे ही रिया की परीक्षा खत्म हुई उसके लिए एक रिश्ता आया।लड़के का नाम रोहित और वह साफ्टवेयर इंजीनियर था।रिया की सगाई हो गई और एक सप्ताह बाद शादी का मुहूर्त निकला।जब रिया को गहने देने की बात आई तो मनोरमा जी ने कहा कोमल अपने सारे गहने दे देगी।उसका तो फर्क बनता है ननद को गहने देने का और रिया का विवाह धूमधाम से हो गया।

इसी बीच पता चला कि राघव पापा बनने वाला है।वह बहुत खुश हो गया पर मनोरमा जी के स्वभाव मे कोई बदलाव ना आया।कोमल ने बेटी को जन्मदिया।अब उसका ध्यान अपनी बेटी पर अधिक लगने लगा।कोमल के प्रति मां का व्यवहार देखकर रोहित और रिया और साथ मे रोहित की मां सरला देवी भी मिल गई।

एक दिन मनोरमा जी और राघव को रोहित ने दावत पर बुलाया।जब मनोरमा जी आई तो उसे पानी देने रिया आई और उसकी सास सरला देवी सोफे मे बैठकर दूरदर्शन पर फिल्म देख रही थी।जब मनोरमा जी नै रिया को थोड़ी देर अपने पास बैठने को कहा तो वह बोली -मेरे पास समय नही है।मै तो कोमल भाभी की तरह अपना फर्ज निभा रही हू।जब रोहित और राघव आ गए तो रोहित ने रिया की खाना परोसने मे सहायता की।राघव ने रिया के बने ख़ान की खूब तारीफ करते हुए कहा, मुझे भाभी ने सब सिखाया है और

जब भी भाभी की सहायता करने जाता थी तो मां रोक लेती थी।

अब दोनों ने मिलकर मनोरमा जी को दूसरा झटका देने की योजना बनाई।एक दिन रिया रोते हुए आई और बोली रोहित नया काम शुरू करना चाहता है पर हमारे पास पूंजी नही है।यदि आप सहमत कर दें तो रोहित नया काम शुरु कर लेगा।

मनोरमा जी ने कोमल को बुलाया और कहा, तुम्हारे पास जो चन्द्र हार है रोहित को काम शुरू करने के लिए दे दो।

जमाई की सहायता करना तुम्हारा फर्ज है।कोमल ने कहा -जब से ससुराल मे आई हूं अपना फर्ज ही तो निभा रही हूं?

बस मांजी बहुत हो गया, पहले मै अकेली थी अब मेरी बेटी है और एक मां का पहला फर्ज उसका जीवन संवारना है।

कोमल की बात सुनकर अमरनाथ जी ने कहा -बहू ठीक कह रही है।रिया और रोहित ने कहा -हम आपको अपने फर्ज के बारे मे बताना चाहते थे।आपका पहला फर्ज अपनी पोती और बहू के सुख दुख मे काम आना हैं

स्वरचित

अप्रकाशित

आर कान्ता नागी

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