इधर की उधर करना – संगीता अग्रवाल  : Moral stories in hindi

” तुम्हे पता है शालिनी कल संध्या और उसके पति में झगड़ा हो रहा था !” मीना अपनी एक पड़ोसन से दूसरी पड़ोसन के बारे में बात करती हुई बोली।

” अच्छा वो तो परफेक्ट कपल है जो कभी नहीं लड़ते …वैसे तुम्हे कैसे पता जबकि मैं भी उन्ही के पड़ोस में रहती हूं पर मुझे आवाज नही आई। शालिनी बोली।

” वो …वो बस मुझे पता चल गया हो सकता है उस वक्त तुम्हारे घर में टीवी चल रहा हो इसलिए आवाज नही आई !” मीना झेंपते हुए बोली।

उसकी बात पर शालिनी मुस्कुरा कर आगे बढ़ गई क्योंकि वो जानती थी आवाज खुद मीना के कानों तक नही गई बल्कि मीना के कान आवाज तक गए होंगे।

क्यों अचरज में पड़ गए कि भला कान खुद कैसे चल सकते हैं नही जी यहां कान चलकर नही गए पर हां आपको ये बात समझने के लिए चलना होगा थोड़ा सा पीछे के समय में….

मीना इस सोसाइटी में आज से एक साल पहले रहने आई थी…मीना को आदत थी दूसरों की बातें सुनने की जहां उसे कहीं से हल्की सी आवाज सुनाई देती पूरी बात जानने के लिए उसके कान खड़े हो जाते और पूरी बात ठीक से सुने बिना ही वो मिर्च मसाला लगा सोसायटी में वो बात फैला देती। उसके इस स्वभाव से जल्दी ही सभी लोग परिचित हो गए क्योंकि कभी उसे किसी के दरवाजे पर खड़े देखा जाता कभी किसी की दीवार से कान लगाए। पकड़े जाने पर वो मुस्कुरा कर चलती बनती। अब भई उसे कोई सीधे सीधे ये भी नही कह सकता की हमारी बातें मत सुना करो वैसे भी किसी के दरवाजे आगे खड़ा होना गुनाह तो है नही पर अब सोसायटी की औरतें उसकी इस आदत से परेशान होने लगी थी।

” संध्या यार लड़ाई करनी हो अपने पति से तो थोड़ा धीरे किया करो तुम्हे पता है ना हमारी सोसायटी में दीवारों के भी कान हैं!” शाम को पार्क में शालिनी संध्या को छेड़ते हुए बोली।

” लड़ाई …कैसी लड़ाई?” संध्या ने हैरानी से पूछा।

क्योंकि शालिनी संध्या की दोस्त थी इसलिए उसने संध्या को सारी बात बताई। संध्या को बहुत बुरा लगा और उसने मीना को सबक सिखाने की ठानी और शालिनी के साथ मिलकर कुछ प्लान बनाया। फिर उसने अपने पति को भी फोन किया।

” संध्या…संध्या क्या है यार तुमने कैसी सब्जी बनाई थी आज बिल्कुल स्वाद नहीं था तुम बिलकुल लापरवाह हो गई हो !” ऑफिस से आते ही संध्या के पति अरुण उसपर चिल्लाए।

” अरे ऐसे कैसे चिल्ला रहे हो तुम मुझपर पत्नी हूं गुलाम थोड़ी … मैं तो सारे मोहल्ले में तुम्हारी तारीफ करती रहती हूं एक तुम हो की ऐसे चिल्लाते हो थोड़ा धीरे नही बोला जाता क्या?” संध्या भी चिल्लाई और अरुण को इशारा कर दरवाजे की तरफ बढ़ी।

” हां नही बोला जाता धीरे थक गया तुम्हारे साथ अच्छे कपल का नाटक करते करते !” अरुण अपनी हंसी दबाते हुए बोला।

तभी संध्या ने झटके से गेट खोल दिया उनके दरवाजे पर कान गड़ाए खड़ी मीना गिरते गिरते बची।

” मिल गया मीना गॉसिप के लिए मसाला तुम्हे !” संध्या उसे देख बोली।

” नही ….वो … मैं तो …हां मैं तो यहां से जा रही थी बस तुमने एक दम दरवाजा खोल दिया मैं गिर जाती तो !” मीना पहले तो हकलाने लगी फिर बात बदल दी।

” वाह मीना एक तो चोरी ऊपर से सीना जोरी !” तभी पीछे से शालिनी की आवाज आई मीना ने पलट कर देखा सोसायटी की और औरतों के साथ शालिनी खड़ी थी।

” शर्म आनी चाहिए तुम्हे मीना यूं कान लगा किसी के घर की बातें सुनने और फिर उन्हें मोहल्ले में फैलाने में !” एक औरत बोली।

” वो … मैं मुझे माफ कर दो संध्या मैं आगे से कभी ऐसा नहीं करूंगी सच्ची !” मीना कोई और चारा ना देख बोली और वहां से नौ दो ग्यारह हो गई।

सभी सोसायटी की औरतों ने कसम खाई अब मीना किसी के घर की बात दूसरे को बताएगी तो उसे वहीं टोक दिया जाएगा क्योंकि मीना जैसी औरतों से सुधरने की उम्मीद करना तो बेकार है जिन्हे अपने घर से ज्यादा दूसरों के घरों में क्या हो रहा ये जानने की उत्सुकता रहती है।

दोस्तों आपके आस पास भी कोई ना कोई मीना जरूर होगी आप उससे कैसे पार पाते हैं ये मुझे बताइएगा जरूर।

आपकी दोस्त

संगीता अग्रवाल

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