कुछ उनकी सुनें, कुछ अपनी कहें – प्रियंका सक्सेना : Moral stories in hindi

“तुम बिन मैं कुछ नहीं, राधा ना जाओ मुझे छोड़कर| ” राघव बिलख बिलख कर राधा के निर्जीव शरीर से लिपट कर कह रहे थे| आरती और प्रकाश भी फफक फफक कर रो रहे थे| 

अपने पिता को राधा से अलग करते हुए प्रकाश रोते रोते बोला, “पापा, मम्मी चली गई हैं हमेशा के लिए हमें छोड़कर| अब कभी वापस नहीं आएंगी|”

मोहल्ले, पड़ोसी, नाते-रिश्तेदारों ने सम्भाला| कैसे न कैसे कर के राधा के सभी काम किये| तीसरे दिन हवन के बाद घर में ईन-मीन गिनती के तीन प्राणी रह गए। 

सुबह कमला बाई आ कर बरतन झाड़ू पोछा कर जाती है| दोपहर में उसे घर पर कोई नहीं मिलता तो एक ही समय के बर्तन करने लगी|

खाना बनाने वाली अभी कोई नहीं मिल पाई है| आरती, प्रकाश कॉलेज से आते फिर चाय पीकर थोड़ा कुछ अपनी समझ से किचन‌ में काट-पीटकर करके रखते| शाम ढले राघव आ जाते| फिर वो तीनों मिल-जुल कर कुछ खाना बनाते| कभी ठीक बन जाता कभी बिगड़ जाता| 

कपड़ों का भी यही हाल रहता| रविवार को ही धुल पाते और तभी प्रेस को दे पाते क्योंकि बाकी दिन प्रेस वाले को घर में कोई नहीं मिलता|

रविवार के दिन कपड़े धोने, बाजार से राशन पानी, खाने का सामान लाने में, खाना बनाने में निकल जाता| कभी कभार बाहर से भी खाना मँगा लेते|

आज रविवार का दिन है| दोपहर के खाने के बाद राघव अपने रूम में लेटे हुए हैं| आरती और प्रकाश भी आ जाते हैं|

प्रकाश ने कहा, “पापा, मम्मी के जाने के बाद हम लोग हमेशा घर के कामों में ही उलझे रहते हैं| समय ही नहीं मिलता कुछ और करने का| “

आरती बोली, “हाँ, पापा| रविवार को हम कितना मजे करते थे| मम्मी कुछ बढ़िया बनाती थीं| हम सब दिन भर खाते पीते रहते थे| मम्मी भी फरमाइशें पूरी करती थीं| “

राघव बोले, ” सही कह रहे हो बच्चों, राधा के होते कभी महसूस ही नहीं हुआ कि घर में कोई काम भी है| वो हर काम पहले से ही करके रखती थी| कहने से पहले ही भांप लेती थी कि किसको कब क्या चाहिए| “

आरती बोली, ” पापा, अब हफ्ते भर घर कितना अस्त- व्यस्त रहता है| मम्मी कितने अच्छे ढंग से घर को व्यवस्थित रखती थीं|”

प्रकाश बोला, ” अब तो न कपड़ों का पता रहता है और न ही खाने का| “

राघव ने कहा, “सच पूछो तो राधा ने घर-गृहस्थी के कामों से मुझे निश्चिंत कर रखा था। तुम्हारी माँ के होते कभी घर की तरफ़ देखा ही नहीं|”

आरती तपाक से बोली, “घर क्या पापा, हम लोगों ने मम्मी को भी नहीं पूछा| “

राघव बोले, “मैं भी यही सोच रहा हूँ कि अपने काम में मैं इतना व्यस्त हो गया कि कभी राधा से जानने की कोशिश ही नहीं करी कि वो क्या चाहती है| उसने मुँह खोलकर कुछ कहा नहीं और मैंने पूछा नहीं| “

प्रकाश हामी भरते हुए बोला, “पापा, अब याद आता है कैसे मम्मी हमारी हर चीज, जरूरत का ध्यान रखती थीं| कभी कभी जब वो कमरे में आकर बातें करना चाहती थीं तो मैं और आरती अपने कॉलेज के काम या पढ़ाई कर रहे हैं, ऐसा उनसे कह देते थे| मम्मी चुपचाप चली जाती थीं| हमारे पास मोबाइल पर गेम खेलने या चैट करने के लिए वक्त रहता था पर उनके लिए नहीं| “

आरती बोली, ” सही कह रहे हो,भाई| जैसे जैसे हम बड़े होते गए, हम मम्मी से दूर होते गए| मम्मी ने बहुत प्रयास किए साथ बैठ कर बातें करने की पर हमने हमेशा उनका ऐसा करना अपनी आजादी और पर्सनल लाइफ में हस्तक्षेप माना| “

राघव बोले, “गलतियां तुम दोनों से ही नहीं मुझसे भी भीषण हुईं हैं| जब भी उसने मुझसे कुछ बात करना या बताना चाहा, मैंने गौर नहीं किया| सिर्फ पैसे देकर सोचता रहा कि सारे कर्तव्य निभा रहा हूँ| “

ठण्डी आह भरकर राघव बोले, “फिर धीरे धीरे राधा अपने अंदर सिमटती गई| ज्यादा बोलना छोड़ दिया और हमें पता ही नहीं चला कब वो गहन डिप्रेशन में चली गई।”

आरती और प्रकाश बोले, “पापा, हम तीनों ने मिलकर मम्मी को ऐसी अवसाद की अवस्था में पहुँचा दिया| जिससे वो बाहर नहीं निकल पाईं| “

राघव बोले, ” हम तीनों तुम्हारी मम्मी के दोषी हैं| वो हमारे लिए सब कुछ न्योछावर करती गईं और हमने बदले में उसको ऐसी अवस्था में पहुँचा दिया कि इलाज़ करवाने पर भी लाभ नहीं हुआ| और हमने उसे खो दिया| “

अब उस कमरे में तीनों बैठे हैं, उदास, गमगीन और दुखी| राधा को याद कर रहे हैं, तीनों को राधा की अहमियत अच्छे से समझ में आ गई है| समय-चक्र के हाथों अपना सभी कुछ खोकर तीनों यही सोच रहे हैं कि काश एक बार राधा लौटकर आ जाए….

पर ‘अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत…’

समय कब रुका है किसी के लिए भला? 

जीते जी जिसे हमेशा नकारा या जिसकी उपेक्षा की, वो अब सभी बंधनों से उन तीनों को आज़ाद कर गई है।

ऐसा ही होता है अक्सर कि हमें लोगों की बखत यानि उनकी अहमियत उनके जाने के बाद मालूम चलती है| समय का चक्का अपनी गति से घूमता रहता है और इन सब में कब कौन अपने में सिमटने लगा या दूर जा रहा है अपनेआप में गुम होता जा रहा है, देखते रहना आवश्यक है।कोशिश करें कि ऐसा न हो,  माँ या पिता, पति-पत्नी, सास-ससुर या बाबा-दादी या बुजुर्गों के लिए समय निकालें। कुछ उनकी सुनें और कुछ अपनी कहें क्योंकि आपके उपेक्षित व्यवहार से कोई आपका अपना अवसाद में जा सकता है| इस बात को समझें और सम्भल जाएं| वैसे भी कौन कब साथ छोड़ जाए, क्या पता? राधा को खोकर खाली हाथ बैठे तीनों अपने-आप पर शर्मिन्दा हैं।

दोस्तों, ये कहानी दिल से लिखी है मैंने| यदि मेरी इस रचना ने  आपको सोचने पर विवश कर दिया है तो कमेंट सेक्शन में अपनी राय साझा कीजियेगा| पसंद आने पर कृपया लाइक और शेयर करें| 

मेरी कुछ दिल के करीब कहानियां पढ़ कर अपनी राय साझा अवश्य कीजियेगा

बस अब और नहीं! https://www.betiyan.in/bas-ab-aur-nah-priyanka-saxena/

ऐसे घरवालों की जरूरत नहीं! https://www.betiyan.in/aise-gharwalo-ki-jarurat-nahi/

कुमुदिनी भाभी –https://www.betiyan.in/kumudini-bhabhi-priyanka-saksena/

कुछ लोगों की आदत नहीं होती शिकायत करने की! https://www.betiyan.in/kuchh-logon-ki-aadat-nahi-hoti-shikayat-karane-ki-moral-stories-in-hindi/

उम्मीद रखो पर स्वार्थी ना बनो https://www.betiyan.in/ummid-rakho-par-swarthi-naa-bano/

निर्भीक निर्णय – https://www.betiyan.in/nirbhik-nirnay-moral-stories-in-hindi/

सिग्नल मदद का- https://www.betiyan.in/signal-madad-ka/

धन्यवाद।

प्रियंका सक्सेना

( मौलिक व स्वरचित)

#समयचक्र

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!