मोबाइल फोन की घंटी बजते ही शिखा के चेहरे पर मुस्कान आ गई, मायके से बड़े भैया का इतने समय बाद फोन आया था, और उसने एक ही घंटी में फोन उठा लिया।
“नमस्ते, बड़े भैया, आप कैसे हैं? बहुत दिनों बाद अपनी बहन को याद किया, आप तो मुझे ब्याहकर भुला ही बैठे हैं, शादी हो गई इसका ये मतलब नहीं है कि अब मै आपकी बहन ही नहीं रही।” उसने शिकायती लहजे में कहा।
उधर से बड़े भाई अवधेश की आवाज थी, “अरे! व्यापार इतना फैला हुआ है तो काम बहुत बढ़ गया है,अब मै और राकेश मिलकर नई फेक्ट्री डालने की सोच रहे हैं, बस उसी सिलसिले में तुझसे बात करनी थी, तेरे पास समय है तो इस रविवार को घर आजा, और शादी के पन्द्रह साल हो गये है, फिर भी तेरी शिकायत करने की आदत नहीं गई, तू रविवार सुबह ही आजा।” और बड़े भैया ने फोन रख दिया।
शिखा सोचती रह गई, किसी के बारे में कुछ नहीं पूछा, ये भी नहीं पूछा कि अरविंद और दोनों बच्चे कैसे है? ये भी नहीं कहा कि दो-चार दिन रहने आजा, बस रविवार को सुबह आजा, उस दिन तो छुट्टी थी, अरविंद और बच्चे भी सबसे मिल लेते, फिर मुझे अकेली को ही क्यों बुलाया है।”
मां -बाबूजी दोनों एक सड़क दुर्घटना में चले गये थें, उनके जाने के बाद तो जैसे मायका ही खत्म हो गया था, सब सच ही कहते हैं कि मां से ही मायका होता है, मां थी तो फिर भी भाग-भागकर मायके चली जाती थी, कोई रोक-टोक नहीं थी, अब तो भाभियां राखी और भाईदूज को भी आने का नाम नहीं लेती है, शुरू में एक-दो बार बुलाया था, पर सुबह जाकर शाम को घर वापसी हो जाती थी। धीरे-धीरे वो सिलसिला भी खत्म हो गया है, अब तो फोन पर और राखी कूरियर करके ही रिशते निभ रहे हैं, आज अचानक कैसे दोनों भाइयों को मेरी याद आ गई?
शिखा अपनी ही उधेड़बुन में लगी हुई थी, तभी अरविंद भी घर आ गये, अरविंद ने भी कहा, “जब बुलाया हो तो जा आओ, वैसे भी ज्यादा दूरी तो नहीं है, रविवार को बच्चों को मै संभाल लूंगा, और शाम तक आना तो जरूरी होगा, अगले दिन सोमवार को बच्चों का स्कूल है और मेरा ऑफिस है।”
रविवार की सुबह जल्दी उठकर शिखा ने बच्चों और अरविंद के लिए नाश्ता और खाना बनाकर रख दिया, एक छोटे बैग में जरूरी सामान लिया और मायके की और चल दी, डेढ़ घंटे में वो बस से वहां पहुंच गई।
बहुत समय बाद आई थी, मां -बाबूजी तो गांव ही रहते थे, लेकिन अंत समय में जब तबीयत ठीक नहीं थी तो यहां कुछ महीने रहे थे, तब वो मिलने आई थी और फिर उनके निधन पर आई थी, उस बात को तीन साल होने को आये थे।
वो अंदर गई, काफी देर बैठी रही, नौकर पानी का गिलास लेकर आया, और उसे बाद में डाइनिंग रूम में जाने को बोला, वहां अंदर पहुंची तो देखा डाइनिंग टेबल पर बैठकर सब भाई-भाभी, भतीजे, भतीजी नाश्ता कर रहे थे, कोई भी उसके स्वागत के लिए उठकर नहीं आया, अवधेश ने इशारे से कहा और शिखा के लिए भी नाशते की प्लेट लगा दी गई, कमरे में शांति थी, सभी बच्चों ने नाश्ता किया, शिखा को नमस्ते की और वहां से चले गये, बच्चे अपनी बुआ के साथ कभी रहे ही नहीं तो जुड़ाव भी नहीं था।
दोनों भाई और भाभियों को देखकर जो खुशी शिखा के चेहरे पर थी, वैसी खुशी उन सबके चेहरे पर नहीं थीं।
तभी शिखा ने पूछा कि कोई परेशानी है क्या? आप सब बहुत ही चिंतित नजर आ रहे हैं।
“हां, शिखा, हम दोनों नई फैक्ट्री डालना चाहते हैं, और उसके लिए काफी पैसे चाहिए, गांव में जो मां -बाबूजी की हवेली थी, उसे अब बेचने का फैसला किया है, एक करोड़ दाम मिल रहे हैं, बस इसीलिए तुझे बुलाया है कि तू इन कागजों पर हस्ताक्षर कर दें कि तुझे इस जायदाद में हिस्सा नहीं चाहिए, और हम वो सारा पैसा फैक्ट्री में लगा देंगे, तुझे तो इस जायदाद में हिस्सा नहीं चाहिए होगा, अवधेश ने कहा।
“ओहहह! तो इन लोगो ने मुझे आज त्याग की देवी बनने के लिए बुलाया है,और मैं सोच रही थी कि भाई और भाभी को मेरी याद आ गई होगी।” शिखा ने मन ही मन सोचा।
फिर वो तुरन्त बोली, “हां, मुझे जायदाद में अपना हिस्सा चाहिए, और मै अपना हिस्सा नहीं छोड़ूंगी, ये कानून के हिसाब से मुझे मिलना ही चाहिए, हवेली के जो पैसे आयेंगे, उसमें तीन बराबर हिस्से होंगे ।”
शिखा की बात सुनकर दोनों भाई और भाभी के चेहरे की हवाईयां उड़ गई।
तभी राकेश बोला, “तू यहां आज अपना हिस्सा लेने आई है, तूने अपने भाई और भाभी के लिए जरा भी नहीं सोचा।”
राकेश भैया, “मैं तो खुशी से मिलने आई थी, पर मुझे नहीं पता था कि मुझे यहां सिर्फ अपना हिस्सा छोड़ने के लिए बुलाया है, मां -बाबूजी के जाने के बाद आप लोगों ने कभी मेरी खबर ली? कभी एक रात भी रहने के लिए मुझे बुलाया? कभी एक बार भी पूछा कि मै कैसी हूं? मेरे पति और बच्चे कैसे है? हमारे रिश्ते में तो कोई प्यार और अपनेपन की भावना ही नहीं है, तो फिर मै ही क्यों त्याग करूं? फिर वैसे भी ये जायदाद मेरे पिताजी की है, और इस पर मेरा उतना ही हक है, जितना आप दोनों का, और अब तो कानून भी ये हक बेटियों को देता है।”
तभी बड़ी भाभी बोलती है, “शिखा इस तरह जायदाद में हिस्सा मांगकर तुम सदा के लिए अपना मायका खो दोगी, हम ना तुझे बुलायेंगे और ना ही तेरे घर आयेंगे।”
“बड़ी भाभी, मायका तो मेरा मां -बाबूजी के जाते ही खत्म हो गया था, आपने तो उनके जाते ही मुझसे लगभग रिश्ता तोड़ दिया था, ये तो हवेली बिक रही है और आपको पैसा चाहिए, वरना तीन सालों में आपने एक बार भी मेरी खैर खबर ली ? इन तीन सालों में ना आपने मुझे बुलाया और ना ही आप मेरे घर आये, ये तो हवेली की वजह से आप सबको याद आया कि इन दोनों भाइयों की एक छोटी बहन भी है, वरना आप लोग तो मुझे भुला ही चुके थे।” शिखा ने उत्तर दिया।
“शिखा, तुम ऐसा नहीं कर सकती हो, बचपन का प्यार वो रिशते, वो अपनापन याद करो, छोटी भाभी ने हवेली में हिस्सा हाथ से जाते हुए देखकर कहा।
“भाभी, वो खून के रिश्ते, वो दर्द वो अपनापन मुझे कुछ भी याद नहीं है, जब पिछले साल मेरा एक्सीडेंट हुआ था, मै अस्पताल में भर्ती थी, मै मरते-मरते बची थी, आप सबमें से किसी ने मेरी खबर तक नहीं ली, आप सब तो मुझे कभी का भुला चुके हैं, अब मेरी बारी है।”
“मै इन कागजों पर हस्ताक्षर नहीं करूंगी, शायद इसी बहाने आप सब मुझे याद तो रखेंगे, वरना आप सब तो मुझे कभी का ही भुला बैठे हैं, एक बात और कहनी है, जिस दिन हवेली बिक जाएं, मुझे मेरा हिस्सा देने भी कोर्ट में ही बुला लेना, मै आपके घर नहीं आऊंगी।” मजबूत होकर शिखा ने अपना फैसला सुनाया और तुरंत वापस अपने घर की ओर चल दी।
धन्यवाद
अर्चना खंडेलवाल
मौलिक अप्रकाशित रचना
बेटियां जन्मोत्सव कहानी –1
वाह!!!
बहुत सुन्दर सामयिक कहानी ।
आपने बहुत ही सजीव चित्रण किया है ये इस समय का सबसे ज्वलंत विषय है
🙏
ऐसे भाइयों के साथ ऐसा ही करना चाहिए। वैसे भी पिता की संपत्ति में बेटा बेटी का बराबर हिस्सा होता है