बिखरा घर – रश्मि प्रकाश : Moral stories in hindi

“देख लिया अपनी माँ को कितना अकड़ था उन्हें अपने ऊपर ….कैसे कहा करती थी ,मुझे किसी सहारे की ज़रूरत नहीं है, आज क्या हुआ पड़ गई सहारे की ज़रूरत…. क्यों जा बैठी है वो मेरे ही बेटे के घर में !” रत्ना पति से ग़ुस्से में बोले जा रही थी 

“ बस करो रत्ना…. मेरी ज़िन्दगी का सबसे ग़लत फ़ैसला था जब मैं तुम्हारी बातों में आ गया था…. सच कहूँ माँ से ज़्यादा ज़रूरत एक दिन तुम्हें किसी सहारे की पड़ेगी और अगर मैं ज़िन्दा रहा तो ज़रूर साथ दूँगा पर नहीं रहने पर कौन तुम्हें सहारा देगा नहीं कह सकता।” बृजेश जी हारे हुए से बोले

“ रहने दीजिए जी …..आपसे पहले तो मैं चली जाऊँगी….।” रत्ना जी ने कहा

बृजेश जी बिना कुछ कहे उठे और बाहर बरामदे में जा बैठे…अपनी लाचारी पर वो फफक कर रो पड़े….

“ क्या हुआ बेटा…. क्यों रो रहा है….?” माँ सुनयना जी की आवाज़ कानों में पड़ते ही वो चारों तरफ़ माँ को खोजने लगे

“ माँ मुझे कभी माफ मत करना….. मैं सबसे नालायक बेटा हूँ तुम्हारा…. कभी सोचा भी नहीं था माँ और पत्नी के बीच ऐसा पिसूँगा कि तुम इस घर से बिना कुछ कहे ,मुझे ख़ुशी से रहने का आशीर्वाद दे कर निकल जाओगी ।” बृजेश जी मन ही मन ये सब कह दुखी हो कर उधर ही बैठे रहे

उधर रत्ना जी अपने बेटे को फ़ोन करने लगती हैं..

“ हैलो निहाल…दादी को अपने घर क्यों लेकर आ गए… देखना बहू की भी दादी से खटपट होने लगेगी और तुम दोनों परेशान रहने लगोगे… जाओ उन्हें वापस उनके पुराने घर में छोड़ कर आ जाओ ।”रत्ना जी बेटे से बोली 

“ बस करो माँ,पता नहीं कहाँ कहाँ से क्या क्या मन में बिठा कर रखी हुई हो….पापा को भी सालों से दुखी कर के रखी हुई हो…. तुम्हें क्या लगता वो तुम्हारे साथ बहुत खुश है…. नहीं माँ…. दादी के साथ तुमने सही नहीं किया है…किसी की मजबूरी का फ़ायदा उठाकर तुम्हें लग रहा होगा तुम्हें ख़ुशी मिल गई पर तुम्हारी वो ख़ुशी अकेले की है… ना पापा ख़ुश है …ना ही मैं….सोचो कभी कल को ऐसा कुछ तुम्हारे साथ हुआ तो तुम्हें किसका सहारा चाहिए होगा ।” निहाल कहकर फ़ोन रख दिया 

उधर बृजेश जी को ना जाने क्यों रह रह कर रत्ना जी पर जितना ग़ुस्सा आता उतना ही बेटे पर प्यार और खुद पर खीझ…

कितनी खुश थी सुनयना जी जब रत्ना को बहू बना कर लाई थी….पर बहू रत्ना को सास ससुर का साथ नहीं भा रहा था…. वो बृजेश जी से कहीं अलग चल कर रहने को बोलती रहती…. हार कर बृजेश जी को उनकी माँ ने कहा,“ बेटा हर दिन के क्लेश से अच्छा है तुम दोनों शांति से कही रहो…. हम यहाँ अपने घर में रहेंगे…तुम लोग आते जाते रहना…भारी मन से बृजेश जी माता-पिता को छोड़ कर जाने को तैयार हुए थे….माँ ने साथ ही ये भी कह,“ बेटा हमें किसी सहारे की ज़रूरत नहीं है बस बेटा बहू सम्मान करें यही चाहिए… शायद दूर रह कर वो सम्मान बना रहे…. बहू को तेरे साथ और सहारे की ज़रूरत है तू वो निभा..।”

समय गुजरने लगा था…. इधर निहाल का जन्म हुआ और उसकी परवरिश में रत्ना को दिन में तारे नज़र आने लगे थे….रत्ना जी की माँ कुछ समय आकर सँभाल गई पर आख़िर कोई कब तक अपना घर बार छोड़ कर आपकी ख़िदमत कर सकता है वो भी उसकी जो अपने हाथ पैर चलाना ही ना चाहे…. 

रत्ना जी हार कर एक दिन बृजेश जी से बोली,“ सासु माँ को कहिए ना आकर निहाल की देखभाल कर दे… मुझसे अकेले नहीं सँभाला जा रहा है ।”

बृजेश जी ने सुनयना जी से यूँ ही बातों बातों में निहाल को लेकर बातचीत की तो सुनयना जी अब हर दिन बृजेश जी के घर आ कर बच्चे की तेल मालिश करती ,उसे दुलार करती और उसके साथ खेल कर चली जाती थी….ज्यों ज्यों निहाल बड़ा होने लगा उसका सुनयना जी से लगाव भी ज़्यादा होने लगा था…. वो दादा दादी के पास ज़्यादा वक्त गुज़ारा करता…. ये सब रत्ना जी को सहन नहीं हो रहा था पर जानती थी निहाल अब बड़ा हो रहा है…. उनका कुछ कहना शायद निहाल को अच्छा ना लगे और वो उन्हें ही कुछ उल्टा सीधा ना समझाने लगे ।

ये देखते हुए उन्होंने उसे शहर से बाहर पढ़ाई करने हॉस्टल में डाल दिया पर निहाल का लगाव दादा दादी से ज्यों का त्यों बना रहा…..

निहाल हॉस्टल में ही था जब अचानक दादा जी की मृत्यु की खबर सुनी….. वो घर आया और दादी को ज़बरदस्ती अपने साथ बृजेश जी के घर ले आया……

रत्ना जी जो खुली छूट लिए घुमती रहती थी…सुनयना जी का आना उसे जरा ना सुहाता….ना ठीक से खाने को देती ना बात करती…. बृजेश जी माँ की हालत देख रो जाते… उसका हाथ पकड़ कर घंटो बैठे रहते … पति के चले जाने का गम वही समझ सकता है जिसने अपना सहारा खो दिया हो…. सुनयना जी को बेटा सहारा देना चाहता था पर रत्ना जी की किच-किच से वो अब घर पर कम ही रहता…. सुबह का निकला रात को आता खाना खाता सो जाता….

एक दिन रत्ना जी ग़ुस्से में बोली,“ जब से माँ यहाँ आई है तुम उनकी परवाह में पत्नी की परवाह करना भूल गए हो….वो यहाँ नहीं थी तो कम से कम तुम मुझसे बातें किया करते थे…. उनके आने से हमारे बीच दूरियाँ आ गई है….इससे अच्छा तो वो वही अकेली रहती…. मेरी ज़िन्दगी तो तबाह ना होती..।” 

बृजेश जी ने पहली बार रत्ना जी को चाँटा मारा…,“ तुम्हारा दिमाग़ तो ठिकाने पर है…. ये वही माँ है जिसने अपने इकलौते बेटे को बस खुद से दूर तुम्हारे लिए कर दिया….और आज बाबू जी नहीं है ,उनके पास अपना कहने को एक मैं ही हूँ तुम ही बताओ ऐसे में वो कहाँ जाएगी ?”

सुनयना जी कमरे में सब सुन रही थी….वो उठी अपना  सामान बाँध कर कमर में लटकी अपने घर की चाभी पर हाथ फिराते सोची,“ भगवान का लिखा कोई टाल नहीं सकता…. असमय साथ छोड़ कर चले गए तुम ….पर मेरे लिए सहारे को एक छत छोड़ गए हो,अब से जब तक ज़िन्दगी रही उधर ही रहूँगी।”

बृजेश माँ को जाते देख पैर पकड़ लिए…,“ माँ अकेले कहाँ रहोगी…तुम्हें कहीं नहीं जाने दूँगा….जाना होगा तो रत्ना जाएगी…इसको दिक़्क़त है ना !”

“ बेटा बहू तेरे भरोसे यहाँ आई है…उसकी ज़िम्मेदारी तेरी है ,मैंने तुम्हें जन्म दिया….तू हमारी ज़िम्मेदारी…. हमने पूरी कोशिश की अपनी ज़िम्मेदारी निभाने की … पर बहू को हमारा साथ अच्छा नहीं लगता और इस वजह से तुम दोनों मे हर दिन झगड़े हो ये मुझे बर्दाश्त नहीं होता है…तू उस घर आ सकता है पर मैं तेरे घर आकर कलह नहीं करवा सकती।” कहते हुए सुौनयना जी निकल गई 

अकेला इंसान अंदर ही अंदर घुटता रहता है…. सुनयना जी भी बीमार रहने लगी थी,उनकी बड़ी तमन्ना थी निहाल का ब्याह देख कर इस दुनिया से विदा ले…

अभी कुछ महीने पहले ही निहाल का ब्याह हुआ था वो अपनी माँ से कम ही बात किया करता था….शादी के बाद वो पास के ही शहर में नौकरी करने लगा और घर ले लिया और पत्नी नीति के साथ रहने लगा… सुनयना जी को उसने हज़ार दफ़ा कहा अपने संग चलने को पर वो एक ही ज़िद्द करती रही अब यहीं से मेरी अर्थी उठेगी…. 

निहाल अभी एक दिन पहले दादी से मिलने उनके घर गया तो उनकी हालत देख दहल गया…. जिन हाथों वो पल कर बड़ा हुआ वो हड्डियों का ढाँचा मात्र रह गए थे…. वो दादी पर ग़ुस्सा करते हुए बोला,“ अब आपकी एक नहीं सुनने वाला… बहुत ज़िद्दी हो ना आप… मैं भी आपका ही पोता हूँ…. देखो खुद को।” और बस कार में दादी को लेकर चला आया था 

नीति खुद भी नौकरी करती थी पर निहाल के मुँह से दादी की इतनी बातें सुन चुकी थी और निहाल का दादी के लिए प्यार देख उसने सुनयना जी को सहर्ष स्वीकार कर लिया ।

यही बात जब रत्ना जी को पता चली तो वो बेटे से नाराज़ होकर बैठ गई थी…..और बृजेश जी लाचार से माँ और पत्नी के बीच फँस कर रह गए थे ।

दो दिन बाद अचानक निहाल का सुबह सुबह फ़ोन आया….,“ पापा जल्दी से यहाँ आ जाओ ।”

बृजेश बिना देरी किए निहाल के पास पहुँच गया…

“ पापा …..दादी…. ।”

बृजेश जी को समझते देर ना लगी….माँ अब सब छोड़ कर चली गई…

वो भाग कर माँ के पास गए…. सच में माँ को सहारा नहीं चाहिए था… इसलिए वो चली गई…. बृजेश जी ने देखा माँ की मुट्ठी में कोई काग़ज़ मुड़ा तुड़ा पड़ा है…. निकाल कर पढ़ा तो फफक कर रो पड़े….

“ बेटा मैं जानती हूँ तुम हमेशा मेरी फ़िक्र में रहे… मैंने अपनी कसम दे कर तुम्हें रोक रखा था…. बहू के लिए कभी माँ की ज़्यादा परवाह मत करना…. बेटा एक औरत अपना सब कुछ पति के लिए छोड़ कर आती है…. उसका स्वभाव हम पहले से तो जानते नहीं होते ,मैंने बहुत कोशिश की कि रत्ना बहू को दिल से अपना कर उसके दिल में अपने लिए जगह बना पाऊँ पर मैं सफल ना हो सकी… तेरे बाबूजी के जाने के बाद ज़िन्दगी जीने का मन भी नहीं करता था… हर रात ये चिट्ठी मुट्ठी में लेकर सोती थी जाने कब मेरा आख़िरी दिन हो…. तू बहू से नाराज़ मत रहा कर…अच्छा नहीं लगता…. हो सके तो उसे माफ कर देना… मेरे ना रहने से शायद अब उसकी ज़िंदगी में ये डर नहीं रहेगा कि उसका पति माँ के लिए उसे छोड़ कर चला जाएगा…. मेरी विदाई ख़ुशी से करना …. मैं तो तेरे पापा के पास कब से जाने को तड़प रही थी अब जाकर भगवान ने मेरी सुनी।”

बृजेश जी माँ के सीने पर सिर रखकर बिलख पड़े….

निहाल पापा और दादी को देख अलग रो रहा था….

“ बेटा दादी को इसके अपने घर ले चल ….उसकी विदाई वहीं से करेंगे जहाँ से ये जाना चाहती थी ।” बृजेश जी उठते हुए बोले

सुनयना जी के चले जाने से बृजेश जी , निहाल,नीति तो दुखी थे ही इस बार जिसके आँसू नहीं रूक रहे थे वो थी रत्ना जी …. क्योंकि निहाल ने वो खत देते हुए कह दिया था,“ माँ अब तुम चैन से रहना दादी जो चली गई है और उसके साथ तुमने शायद अपना पति और बेटा भी खो दिया…. काश वक्त रहते समझ जाती तो दादी यूँ हमें छोड़कर कभी भी दुखी हो कर नहीं जाती ।”

रत्ना जी को अपना व्यवहार चलचित्र की तरह सामने नज़र आ रहा था.. ,”बच्चा चाहे कितना ही अपना क्यों ना हो समय के साथ समझ आ ही जाती है.. सही गलत को परखना आ जाता है कल को अगर मेरे साथ निहाल  का व्यवहार तो अगर और ख़राब हो गया तो क्या होगा।”

वो रोते रोते पति और बेटे से अपने व्यवहार के लिए शर्मिंदगी महसूस करते हुए बोली,” मुझे  पता है आप दोनों के लिए मुझे माफ़ करना मुश्किल होगा फिर भी मुझे माफ कर दे।”

निहाल माँ को पकड़ कर बोला ,” माँ काश ये माफी आप दादी से माँग सकती, हम तो कैसे भी आपका साथ निभाएँगे क्योंकि हमें बिखरा घर नहीं चाहिए ।”

दोस्तों आजकल अधिकांशतः लड़कियों को ससुराल जरा भी नहीं सुहाता है…पहले के समय में समाज का लिहाज़ कर के संग रह भी लेती थी पर अब अलग रहना चाहती है पर सोच कर देखिए जिनकी ज़िंदगी में बच्चों के सिवा कुछ नहीं होता वो कैसे उनके बिना रह पाते होंगे….. समय का पहिया घूम कर पुनः एक बार उस जगह आ जाता है जहाँ से हम शुरुआत करते हैं…. कल जो हमने किया आने वाले कल को हमारे बच्चे वो कर सकते इसलिए परिवार का सम्मान करें…. दोनों तरफ़ से सम्मान मिले प्यार मिले तो कोई भी परिवार ना बिखरे ना किसी को ससुराल से आपत्ति हो।

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धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

©️®️

#समयचक्र

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