क्यों मां क्या कमी की आपके बेटे ने आपकी जिम्मेदारी निभाने में उन्होंने तो कभी अपनी निजी जरूरत को भी कोई तवज्जो नहीं दी फिर उनसे इतनी शिकायत क्यों माँ। आपने उन्हें बेईमान क्यों कहा सुनीता अपने आप में ही बड़बड़ाये जा रही थी अपने पति शशांक के सिरहाने बैठे हुए, शशांक और निर्मला जी की बहस इतनी बढ़ गई थी कि अपनी ही माँ के कटाक्ष आज उनसे सहन नहीं हुए थे और वे बेहोश होकर गिर पड़े थे।
सब अस्पताल लेकर आए तो डॉक्टर ने बताया हाइपरटेंशन की वजह से बीपी ज्यादा बढ़ गया था, एहतियात के तौर पर डॉक्टर ने रात को एडमिट कर लिया था और नींद का इंजेक्शन दे दिया था सुबह छुट्टी मिल जानी थी। सब नॉर्मल था इसलिए बाकी लोग घर जा चुके थे। सुनीता ही रात को अपने पति के पास रूकी हुई थी। शशांक नींद के इंजेक्शन की वजह से सोए हुए थे। सुनीता की आंखों के सामने कल की घटना चलचित्र के समान घूम रही थी।
सुनीता की शादी से पहले ही उसके ससुर की मृत्यु हो चुकी थी । वे पेपर मिल में नौकरी करते थे 24 साल की उम्र में शशांक भी बैंक में अच्छे पद पर नौकरी पर लग गया था। उस समय रुचि ग्रेजुएशन की आखिरी साल में पढ़ रही थी और छोटा भाई मयंक बीटेक के पहले साल में दिल्ली में एडमिशन ले चुका था।
सारी जिम्मेदारी शशांक के ऊपर आ गई थी। 1 साल बाद ही सीधी-साधी सुनीता से बहुत सादे तरीके से शशांक की शादी हो गई थी। शादी से पहले ही सुनीता से शशांक ने बोल दिया था कि मेरे भाई और बहन की जिम्मेदारी मेरी है। और मुझे तुम्हारा सहयोग चाहिए और अगर तुम्हें इससे आपत्ति हो तो खुशी से रिश्ते के लिए मना कर सकती हो। तब से आज तक सुनीता ने अपने पति की किसी बात का विरोध नहीं किया था और उसकी जिम्मेदारियां में उसका बराबर साथ निभाया था।
कानपुर में तीन कमरों का पुश्तैनी घर बस यही था संपत्ति के नाम पर । रुचि की शादी मयंक की पढ़ाई फिर खुद के दोनों बच्चे उनका भी पालन पोषण, कभी अपने लिए तो कुछ सोच ही नहीं पाया शशांक । अब मयंक की शादी को भी 3 साल हो चुके थे एक बेटा है उसके पास मयंक बेंगलुरु में नौकरी करता है और उसकी पत्नी निशा अपने मम्मी पापा की इकलौती लड़की ,बेंगलुरु में ही उसका अपना घर है अभी 2 महीने पहले ही उसके पापा की मृत्यु हुई है मां भी बीमार रहती है।
उनका जो कुछ है सब मयंक का ही है। होली दिवाली पर मयंक यही आता है। शशांक ने कितना कहा था मयंक की शादी के बाद माँ से ,माँ इस घर का आधा हिस्सा मयंक को दे दीजिए। अब मेरे बच्चे बड़े हो रहे हैं तो मैं भी घर की थोड़ी बहुत मरम्मत करना चाहता हूं। लेकिन मयंक और मां ने यह कहकर मना कर दिया था कि घर का बंटवारा नहीं होगा मयंक बेंगलुरु में अपने ही घर में तो रहता है निशा की मम्मी ने अपना घर निशा के नाम किया हुआ है।
मयंक ने भी यही कहा था यह घर आपका है भैय आपने अब तक की सारी जमा पूंजी हमारी पढ़ाई पर और रुचि की शादी में लगाई है। कम से कम हम अपने घर में इकट्ठे होकर बैठ तो जाते हैं। शशांक ने बैंक से लोन लेकर घर की थोड़ी बहुत रिनोवेशन करा ली थी। लेकिन आज क्या हो गया माँ को अचानक जब उनका लड़का भी बाहर पढ़ाई कर रहा है और बेटी भी शादी लायक हो चुकी है तब मां ने शशांक को दो टूक शब्दों में कहा मयंक और मैंने इस मकान की कीमत लगवाई है 50 लाख का मकान है पूरा।
मैं चाहती हूं मै अपने जीते जी अपना दायित्व पूरा कर दूँ , आखिर अपने पैत्रक घर में मयंक का भी आधा हिस्सा बनता है। तुम 25 लख रुपए मयंक को दे दो , चाहे तो मकान बेच भी सकते हो जिसमें से दोनों आधा-आधा पैसा लेकर अपना अपना इंतजाम कर सकते हो।रुचि और मयंक भी उस वक्त घर पर ही आए हुए थे।
मयंक पर छोटा होने की वजह से मां का पहले से ही लाड़ अधिक था। अब उन्हें ऐसा लगने लगा था जैसे सब कुछ बड़े बेटे के पास ही रह जाएगा मेरे मयंक को तो घर से कुछ भी नहीं मिलेगा बहन रुचि का झुकाव भी मयंक की तरफ होने लगा था। उसने भी यही कहकर पल्ला झाड़ लिया कि मेरे लिए तो दोनों भाई बराबर हैं।
कल की बहस का भी यही विषय था। शशांक को उसी के परिवार वालों ने अपराधी सा बना दिया था और मयंक बेचारा सा बन गया मां के इस तरह कह दे्ने पर शशांक ने कहा लेकिन मां मैंने आपसे पहले भी कहा था यह कोई प्रॉपर्टी नहीं है यह घर है जहां हम सब रहते हैं रुचि तंका में का है और मयंक का भी एक तरह से मायका ही है
कभी-कभी आता है मैंने कहा कविता देने को मना किया है मां लेकिन मैंने आपसे पहले भी कहा था इस समय मैं 25 लाख रुपए कहां से लाऊंगा और अपने बच्चों को कहां लेकर जाऊंगा? मयंक की पढ़ाई रुचि की शादी और सभी कुछ रिश्तेदारी में सब देना लेना मैंने कभी अपेक्षा नहीं की कि मयंक कभी किसी चीज में हाथ बटाएं। पिछले साल ही आपके घुटनों के ऑपरेशन में तीन लाख रुपए लगे थे। फिर तो हिस्सा हर चीज का बनता है मां।
इस खंडहर पड़े मकान को घर मैंने बनाया है जो हम दोनों भाइयों का घर है रुचि का मायका है मेरे पिता की यादें बसी है इस घर में । मैं कैसे इसकी कोई कीमत लगा सकता हूं मेरी तनख्वाह का एक हिस्सा इसका लोन चुकाने में चला जाता है। अपने पति की ऐसी हालत देखकर आज सुनीता भी चुप नहीं रह पाई थी
उसने अपनी सास के सामने मुंह खोल दिया था, मयंक की पत्नी ने यहां आकर कौन सी जिम्मेदारी कभी निभाई है महारानी को तो पता ही नहीं ससुराल क्या चीज होती है?आपको देखने के लिए भी मेहमान बनकर ही आई थी ये सारी जिम्मेदारी भी तो दोनों भाइयों की बराबर थी मां उसका हिस्सा क्यों नहीं किया आपने?
इस पर निर्मला जी बोली कि क्या तुम दोनों पति-पत्नी सारा मकान अकेले हड़पना चाहते हो ?यही बात शशांक बर्दाश्त नहीं कर पाया और बेहोश होकर गिर गया। अगले दिन शशांक अपने घर पहुंच गया था। घर में सब चुप थे। बच्चे भी अपनी दादी से कुछ कटे कटे रहने लगे थे। जिस परिवार में सब सदस्यों के इखट्टे होने पर खुशी के कहेकहे गूंजते रहते थे। आज वहां मातम की सी स्थिति हो गई थी।
6 ,7 दिन मैं शशांक बिल्कुल ठीक हो चुका था मयंक
की पत्नी को भी सुनीता ने फोन करके बुला लिया था। अगले दिन नाश्ते के समय ही मयंक से शशांक ने कहा चलो मयंक हिसाब कर लेते हैं। तुम्हारा जितना भी हिस्सा इस घर में बैठता है मैं कैसे भी करके 2 साल तक जरूर दे दूंगा? मयंक बोला कैसा हिसाब भैया मुझे कोई हिसाब नहीं करना है और 10 लाख का चेक शशांक को देते हुए कहता है मेरे लिए भी दो कमरे जरूर बनवाना भैया ताकि मैं एक समय के बाद अपने भाई के साथ आकर रह सकूं।
कीमत प्रॉपर्टी की लगती है घर की नहीं। यह हम दोनों भाइयों का घर है। जीवन की परेशानियों से थक कर जहाँ हमें परिवार के साथ कुछ दिन सुकून मिलता है। 25 लाख रुपए के लिए मै घाटे का सौदा नहीं करना चाहता। अपने संबंधों की अनमोल पूंजी मैं कुछ लाख रुपए के लिए भेट नहीं चढ़ा सकता। आज थोड़ी देर के लिए आपके बेहोश होने पर ही मुझे ऐसा लगा जैसे मैं अनाथ हो गया हूं। आपके बिना यह घर ,घर नहीं है भैया।
कहते हुए मयंक अपने बड़े भाई के गले लगकर रोने लगा। एक तरफ खड़ी रुचि बुरी तरह सुबक रही थी। निर्मला जी ने भी अपने बेटे बहु से कहा मैंने तुम दोनों का बहुत दिल दुखाया है। मैं मयंक के मोह में थोड़ी अंधी हो गई थी इस घर के लिए किया तुम्हारा त्याग और समर्पण सब भूल गई थी मैं। मैं तुम दोनों भाइयों के बीच में कभी नहीं आऊंगी तुम्हारा जैसा मन हो वैसा करो। आज समय रहते पैसे की वजह से रिश्ते बलि होने से बच गए।
मेरे दोनों बेटे आपस में प्यार से रहे मेरे लिए इससे बड़ी उपलब्धि और कोई नहीं है सही मायने में मेरा दायित्व तो शशांक ने पूरा किया है। मयंक अब तुम्हारा दायित्व यही है कि अपने बड़े भाई के कंधे से कंधा मिलाकर उसके साथ चलो हमेशा, तुम्हारा प्यार यूं ही बना रहे। परिवार की एकता के लिए सबका सहयोग मिलना बहुत जरूरी है। आज रिश्तों पर जमी स्वार्थ की काई साफ हो चुकी थी। आक्रोश की जगह स्नेहऔर प्यार ने ले ली थी।
पूजा शर्मा