ज्यादा ना सही थोड़े बहुत वचन  तो मैं भी निभा लूं-हेमलता गुप्ता : Moral stories in hindi

अरे अरे…. गायत्री जी… आज नाश्ता वास्ता रहने दीजिए !क्यों… आज नाश्ता नहीं करने का विचार है क्या? आज क्या बाहर खिलाने ले जा रहे हो? हां… ऐसा ही समझ लो… आज हम दोनों अपना टेस्ट करवाने जा रहे हैं! क्यों… हम कोई बीमार थोड़ी है जो हमारा टेस्ट होगा,! अरे.. बीमार नहीं है इसलिए तो टेस्ट करवाने जा रहे हैं, एक बार रिपोर्ट नॉर्मल आ जाए उसके बाद हम दोनों डोकरा डोकरी चलते हैं कहीं घूमने!

अब देखो भाई कोई जिम्मेदारी तो हमारे ऊपर रही नहीं, हमने हमारे सारे दायित्व पूरे कर दिए, इकलौते बेटा अमेरिका में सेटल हो गया, रह गए हम दोनों… अब हम दोनों का दायित्व बनता है की एक दूसरे की देखभाल और जिम्मेदारियां निभाएं, इस भाग दौड़ की जिंदगी  में कभी हम दोनों को इतना समय ही नहीं मिला कि हम अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जी सके, किंतु अब कोई टेंशन नहीं है! कितनी मेहनत और मुश्किल हालातो  से हमने बेटे को इस काबिल बनाया है कि वह आज  अपने परिवार के साथ बहुत खुश है,

अब बारी है हमें भी अपनी जिंदगी अपने मुताबिक जीने की! आपके जो सपने आज तक पूरे नहीं हो पाए वह अब पूरे होंगे, आज तक तुमने अपने सात फेरो के सातों वचन पूरी निष्ठा और ईमानदारी से निभाई  हैं, तो मेरा भी दायित्व बनता है की ज्यादा ना सही थोड़े बहुत वचन  तो मैं भी निभा लूं,

क्या पता कब ऊपर वाले का बुलावा आ जाए,! श्याम लाल जी की ऐसी बातें कर सुनकर गायत्री जी गुस्से में बोली…. जब देखो जब फालतू बातें को लेकर बैठ जाते हो, अरे हम दोनों इतने भी बूढ़े नहीं हुए  अभी, और टेस्ट करवाने चल रही हूं सिर्फ तुम्हारी खुशी के लिए! फिर उसके बाद  हम भी किसी तीर्थ यात्रा पर निकल जाते हैं! वैसे यह टेस्ट करवा कर फालतू ही समय खराब कर रहे हैं, हर बार टेस्ट करवाने के बाद कुछ निकलता तो है नहीं!

हां तो अच्छा है ना कुछ नहीं निकलता.. यही तो हम चाहते हैं, कुछ भी ना निकले! अब  चलो जल्दी.. फिर लेट जाएंगे तो अस्पताल में नंबर भी नहीं आने वाला, वह तो अपने मनीष का दोस्त राहुल इस अस्पताल में डॉक्टर है तो मैंने उसे कहकर अपना अपॉइंटमेंट फिक्स करवा लिया है, तो जल्दी नंबर आ जाएगा!

उसके बाद आपको बढ़िया से कचौड़ि जलेबी का नाश्ता करवाता हूं! कचोरी जलेबी के नाम से मुझे तो बहुत भूख लग गई है! अगले दिन आशा के विपरीत टेस्ट की रिपोर्ट नॉर्मल नहीं आई! सारी जांच होने के बाद पता चला गायत्री जी को लास्ट स्टेज का कैंसर है, बस तभी से शुरू हुआ अस्पताल के चक्कर लगने का दौर और तरह की जांचों का दौर! 

कभी रेडियोथैरेपी, कभी कीमो थेरेपी, और कभी न जाने कौन-कौन से टेस्ट होते रहे! दोनों की खुशहाल जिंदगी में जैसे ग्रहण लग गया, गायत्री जी अपने दुख से ज्यादा दुखी श्याम लाल जी को देखकर होती थी, डॉक्टर ने गायत्री जी के पास सिर्फ 6 महीने का समय बताया था, मनीष बेटा अपने परिवार सहित भारत आ गया !

इलाज का खर्चा भी बहुत महंगा था, डॉक्टर ने गायत्री को विदेश ले जाने की सलाह दी, हालांकि वहां भी उम्मीद बहुत कम थी, किंतु श्याम लाल जी अपनी तरफ से कोई भी कसर नहीं छोड़ना चाहते थे! उन्होंने अपने बेटे को यह बताया तब बेटे ने जो कहा उसे सुनकर तो वह हतप्रभ रह गए! बेटे ने कहा… पापा.. मम्मी को फॉरेन  ले जाने की कोई जरूरत नहीं है,

जब डॉक्टरों ने कहा ही दिया है कि उनके पास ज्यादा समय नहीं है तो इलाज में इतना रुपया खर्च करने की  क्या जरूरत है? आपको पता है विदेश में इलाज का  खर्चा कितना होता है? हमारी सारी प्रॉपर्टी बिक जाएगी, तब भी हम उनका खर्च नहीं  चुका पाएंगे! श्याम लाल जी ने बेटे की बात सुनकर  उसे एक तमाचा लगाते हुए कहा….

चिंता मत कर बेटे.. तुझसे खर्चे के लिए ₹1 भी नहीं लूंगा , मैं अपनी गायत्री का इलाज अपने दम पर करवाऊंगा, हालांकि मुझे पता है विदेश में जाने के बाद भी उम्मीद ना के बराबर है किंतु मेरे मन को तसल्ली रहेगी कि मैंने अपने पति धर्म का दायित्व अच्छे से निभाया है, और मेरा क्या है…

अगर सारी जमीन जायदाद भी गायत्री जी के इलाज में खर्च हो गई तो मुझे तसल्ली रहेगी कि मैंने अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी और रही मेरी बात… तो भारत में कितने सारे वृद्ध आश्रम है जहां अपनों के सताए हुए वृद्ध जन रह रहे हैं , उनमें से एक मैं भी सही,!  श्याम लाल जी ने सारी जमीन कुछ दिनों में बेचने का इंतजाम कर लिया, जिस दिन गायत्री जी को विदेश जाने के लिए रवाना किया जा रहा था उस समय गायत्री जी यह कहते हुए हमेशा के लिए चीरनिद्रा में लीन हो गई…..

सुनिए जी.. आपने हमेशा मेरा साथ पूरी ईमानदारी से दिया है, हम हर सुख दुख में एक दूसरे के सहयोगी रहे हैं, किंतु मैं नहीं चाहती कि मैं अंतिम सांस विदेशी धरती पर लू, मैं सिर्फ आपकी गोद में सर रखकर हमेशा के लिए इस दुनिया से जाना चाहती हूं, और वैसे भी मुझे अब यह दर्द सहन नहीं हो रहा मैं इस से मुक्ति चाहती हूं, मैं जितने दिन भी जिंदा रहूं, बस आपके पास ही रहूं,! श्याम लाल जी  गायत्री की बात सुनकर बोले….

गायत्री तुम ज्यादा बातें मत करो, देखना तुम्हें कुछ नहीं होगा,… मैं हूं ना… तुम्हारे हर सुख दुख का साथी,! किंतु गायत्री जी ने तो उनकी बात सुनी ही नहीं और हमेशा के लिए गहरी नींद में सो गई! गायत्री जी के चेहरे पर असीम शांति देखकर श्याम लाल जी आगे कुछ ना बोल सके, उनकी आंखें आंसुओं से भीग गई, किंतु उन्हें तसल्ली थी उन्होंने अपने पति  धर्म का दायित्व अंत समय तक निभाया!

  हेमलता गुप्ता स्वररचित 

  कहानी प्रतियोगिता दायित्व

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