दुर्गा देवी का चेहरा सुबह से ही मुर्झया हुआ था कल भाईयो की बातो को सुनकर वह काफी परेशान थी उसे समझ नही आ रहा था वह कैसे अपनी बात कहे आज तक वह चुपचाप सब कुछ सहन कर रही थी इसके सिवा उसके पास कोई उपाय भी न था,जब एक महिने के बच्ची के साथ दुबारा इस घर की दहलिज के अन्दर प्रवेश किया तो पहले जैसा कुछ भी न था
सबकी आंखो मे दया तो थी साथ मे सवाल भी क्या अब हमेशा यही पर रहेगी”सास ससुर ने इसे अपने पास रखने से मना कर दिया वह कहने लगे जब मेरा बेटा ही न रहा तो आपकी बेटी से हमारा क्या रिश्ता !साथ मे एक लडकी जनी हैं जो की मेरा वंश तो न चलाएगी इस बोझ को अपने साथ ही ले जाओ”बाबूजी गमछी से माथा का पसीना पोंछते हुए हताश होकर बोलने लगे ।
माँ बेचारी क्या करती अपनी बेटी को इस हालत मे देखकर आंखो से गंगा बहा रही थी भाभियों को चिंता सताने लगी अब क्या जीजी स्थायी हो गई अपने मायके।
दुर्गा को अपने मायके मे रहने की किमत भली भाँति चुकाने पड़ती हैं वह घर के सभी काम करती हैं घर की सफाई खाना पकना बरतन साफ सभी भाभियो की एक पुकार पर हाजिर हो जाती थी भाई को बहन की दशा का ज्ञात अच्छी तरह था लेकिन बिबियो के सामने कुछ बोलने की हिम्मत न थी जब तक माँ बाबूजी थे अच्छे होने का ढोंग भाभियाँ रचती थी लेकिन आज कल वास्तविकता घर के लोगो की नज़र आती हैं।
दुर्गा की बेटी रीमा अपने मामा घर मे इन परिस्थियो मे ही बडी हो रही थी रीमा के सामने ही दुसरे बच्चो को दुध फल दिये जाते लेकिन रीमा को नही!
रीमा इन परिस्थितियो मे भी बहुत अच्छी थी पढ्ने मे वह अक्सर अपने माँ से कहती”अगर आप पढी लिखी होती तो आज हमारी हालत यह न होती आप अपने न्याय के लिए समाज से लड़ पाती हमें मामा घर मे न रहना पड्ता अपने घर मे सम्मान के साथ रह्ते यही काम करके आप सम्मान की रोटी कमा सकती थी।
आज शाम को भाई भाभियो ने दुर्गा को एक फैसला सुनाया “18 की हो गई रीमा अब उसकी शादी करा देते हैं कब तक इस बोझ को अपने घर मे रखे पास गांव मे एक परिवार हैं उन्हे रीमा बहुत पसंद हैं समझी न “दुर्गा सिर्फ सुनते रह गई उसकी हा या न का किसी ने इन्तजार नही किया सभी अपने कमरो मे चले गये।
“माँ मैं यह शादी नही करना चाह्ती माँ मुझे कुछ करना हैं सारी जिन्दगी क्या हमे इनकी बात ही सुननी पड़ेगी”
दुर्गा के सामने सारा अतीत आ रहा था कैसी छोटी सी उम्र मे बाबूजी ने शादी करवा दी एक साल बाद विधवा हो गई,ससुराल वाले निकाल दिये।
एक महिने की बच्ची को लेकर मायके आयी तो सबके लिए बोझ बन गई माँ बाप के गुजरते ही घर की नौकरानी।
माँ माँ रीमा की पुकार से दुर्गा देवी अतीत से बर्तमान मे आ गई”जो मेरे साथ हुआ वो तुम्हारे साथ न होने दूँगा,
चिंता मत कर कल हमलोग घर छोडकर चले जाएंगे।
सुबह भाई भाभियो के सुबह उठते ही दुर्गा देवी भाभियो को रसोई का सारा हिसाब किताब देने लगी “क्या हुआ कहीँ जा रही हैं आप क्या”बडे भाई के पूछते हुए दुर्गा देवी ने कहा”बहुत दिनो से तुमलोगो पर हम माँ बेटी बोझ हैं सोच रही हुँ आज से यह बोझ हटा दूँ आज से घर छोड रही हुँ दो चार घरो मे खाना बनाने का काम मिल जायेगा जरुरत पड़ी तो दिन रात मेहनत करूँगी की बेटी को पूरी पढा सकूँ की अपने पैरो पे खडी हो जिससे वह किसी भी परिस्थिती पर किसी पर बोझ न बने!
रीमा के हाथो को बडे ही आत्मविश्वास के साथ पकड़कर दुर्गा देवी भरपूर आत्म विश्वास के साथ चौखट से बाहर निकल रही थी।
आराधना सेन