देश ही भाग्य विधाता – शुभ्रा बैनर्जी: Moral Stories in hindi

प्रतीक को आई आई टी से पास आउट होते ही मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छे पैकेज पर नौकरी मिल गई थी।प्रतीक अपनी सहपाठी नित्या से प्रेम करता था।अपने मम्मी -पापा को नित्या के बारे में बताया,जो कि सजातीय नहीं थी।सुलभा(प्रतीक की मां)ने एक ही बात कही”हमें तो कोई परेशानी नहीं इस विवाह से।तुम्हारे पापा भी मान ही जायेंगें।बस एक तुम्हारी दादी ही हैं,जिन्हें जात-पात,बिरादरी ,खानदान का बहुत ख्याल रहता है।वे कभी नहीं मान सकती।उनकी रजामंदी के बिना तुम्हारे पापा भी हामी नहीं भरेंगे।”

मां की बात सुनकर प्रतीक कुढ़कर बोला”ये क्या बात हुई मम्मी?बेटा मैं आपका और पापा का ,पर मेरी शादी के लिए सहमति किसकी जरूरी है?दादी की।वआहहहहह।तब तो हो चुकी मेरी और नित्या की शादी।”

सुभाष जी(प्रतीक के पापा)अपनी पत्नी और बेटे का वार्तालाप चुपचाप सुन रहे थे।कुछ भी नहीं बोला उन्होंने।प्रतीक को आश्चर्य हुआ।”पापा ,आप कुछ भी नहीं बोलेंगे क्या?ये आपके बेटे के भविष्य का सवाल है।आप सुखी हो पाएंगे क्या?यदि मैं नित्या को प्रेम करके उससे शादी नहीं किया।ये तो अन्याय है पापा।दादी ने अपनी जिंदगी अपने तरीके से जी ली।अब हमें हमारी जिंदगी हमारे तरीके से जीने क्यों नहीं देतीं?”

सुभाष बेटे को अपनी मां के कमरे में लेकर गए।सुलभा नहीं गई साथ में,डर की वजह से।सुभाष ने मां के पैर छुए, और प्रतीक की तरफ देखा।प्रतीक समझकर दादी के पैरों में झुका ही था कि दादी ने उसे गले लगा लिया।माथा चूमकर बोलीं”अरे,परती (प्रतीक)तू मेरे पैर ना पड़ा कर,पोता है मेरा।बस मुझे कांधा दे देना,मैं तर जाउंगी।”सुभाष जी ने घुमाफिरा कर प्रतीक की शादी की बात की, सजातीय ना होने का भी खोटा दिया।

दादी ने अप्रत्याशित रूप से अपने बेटे को ही समझाना शुरु कर दिया”कैसी दकियानूसी सोच वाली बात करता है रे,सुभाष।अभी जमाना बदल गया है।अगर हम अपने विचार‌ नहीं‌ बदलेंगे,तो समाज में बदलाव कैसे आएगा।यही तो मां भारती का गुण है।”अनेकता में एकता”भारत का मूल मंत्र है।चल -चल अब  अपने बेटे की शादी की तैयारी कर। लड़की वालों को यहीं बुलवा लें।इत्ता बड़ा घर है,सारे  काम इसी में अच्छे से निपट जाएगा”

दादी की बात सुनकर प्रतीक खुशी के मारे नाचने लगा।उसके प्रेम विवाह को दादी ने स्वीकृति दे दी।

नित्या के परिवार वाले दादी को देखकर खुश‌ हो गए।बड़ी उदार और मुंहफट थीं।तय तिथि में शादी भी हो गई।नित्या प्रतीक से विदेश में चलने पर जोर देती ।प्रतीक का भी मन था। पासपोर्ट दोनों का बना हुआ था ही।प्रतीक को‌ एक अच्छे पैकेज में नौकरी मिल गई “दुबई”में। नित्या सबसे ज्यादा खुश थी कि अब विदेश में रह पाएगी अपने पति के साथ। पासपोर्ट भी आ गया था।

आदतन प्रतीक दादी को खुश‌होकर बताने चला।दादी उदास होकर बोलीं”लल्ला ,अपने देश में काज  की कमी थोड़ी ही है,यहां कमा खूब।जहां मर्जी है जा।पर अपना देश छोड़कर ना जाने दूंगीं।”दादी की बात सुनकर प्रतीक‌‌ का मन‌ कसैला हो गया। नित्या से क्या कहेगा,कि दादी नहीं चाहती वह बाहर जाए।

इतना अच्छा पैकेज यहां‌ कौन देगा? नित्या को जब बताया प्रतीक ने ,तो वह बरस पड़ी”ऐसे रूढ़िवादी लोगों की सोच के कारण ही आज की पीढ़ी अकेले रहना पसंद करती है।इनकी बात मानो तो ये खुश‌ होकर दुलारेंगीं,और किसी भी बात पर मना कर दो तो आसमान सर पर उठा लेंगें।ये बुजुर्ग ना सीधे-सीधे ब्लैक मेल करते हैं हमसे, भावनाओं का।”

प्रतीक ने पक्का‌ कर लिया था कि वह विदेश‌ जाकर ही रहेगा।पापा से पैसे तो मांगने पढ़ेंगें,पर वहां कमाकर लौटा दूंगा।पापा को खोजते-खोजते दादी के कमरे के बाहर ठिठक गया प्रतीक।पापा दादी से आग्रह कर रहे थे,प्रतीक को विदेश जाने की सहमति देने के लिए।वे कह रहे थे”अम्मा,अब जमाना बदल गया है।पिता अपने बच्चों से कोई आशा नहीं रख सकते।बच्चों को अपनी जिंदगी,अपने तरीके से जीना पसंद है।बिना किसी रोक-टोक के।तुम काहे नहीं मानती?तुम्हारा बेटा तो है ना यहां, तुम्हारी देखभाल करने के लिए।”

दादी ने अपने आज्ञाकारी बेटे को गले लगा कर लाड़ किया और बोली “तू तो‌ राम है रे मेरा।जब मुझे तेरी ज़रूरत पड़ती है,तू कूद पड़ता है ,झोंक देता है अपने आप को मुझे बचाने में।मुझे तो तेरी चिंता है सुभाष,तेरी मुसीबत में कौन खड़ा होगा।बहू को भी तो एक सहारे‌की जरूरत पड़ती है।इकलौते बेटे-बहू बाहर चले जाएंगे,तो किसके सहारे जायेंगें?”

प्रतीक का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था।तभी दादी ने अपना बक्सा खोलकर ,दादा जी का कुछ सामान पापा को निकालकर दिखाने लगी।प्रतीक थोड़ा अंदर खिसक आया,साफ देखने के लिए।दादी पापा को बता रही थी”देख यह तेरे बाबू जी की वर्दी है।नेताजी की सेना में शामिल हुए थे।देश की आजादी में लाखों करोड़ों वीरों के साथ वो भी शहीद हुए थे।उनके परेड में मैं जाती थी।नेताजी जब माइक में खड़े होकर भाषण देते थे , हमारा खून खौलने लगता था।

जिस देश‌ में हमने जन्म लिया,उसके प्रति हमारा कर्तव्य पहला होना चाहिए। माता-पिता,पत्नी-बच्चे ये सब जिम्मेदारी हैं किसी भी पुरुष के लिए। जन्मभूमि के प्रति अपना दायित्व कैसे भूल सकतें हैं युवा पीढ़ी?इस देश में हमने जन्म लिया, कर्म किया और कमाने की बारी आई तो,विदेश‌ चले जाएं।ये कहां का न्याय है?

ये धरती हमारी भाग्य विधाता है ।इसी जमीन ने हमें अन्न,भोजन और छत दी है।हम उसके प्रति ऐसा अन्याय कैसे कर सकतें है?अरे, तेरे पुरखे तुझसे तर गए,अब तुझे कौन‌ तारेगा?क्या पैसा कमाना ही जीने का मकसद है?”दादी बोले जा रही थी और पापा रोए जा रहे थे।”अम्मा,मैं कैसे अपने स्वार्थ के लिए,अपने बेटे को रोक लूं?जहां खुश‌ रह पाए वो,वहीं रहे।यहां मन मारकर रहेगा तो क्या हमें अच्छा लगेगा।”पापा दादी की गोद में सर रखकर कह रहे थे।

“ठीक है लल्ला,शायद तू ठीक कह रहा है।अब जमाना बदल गया है।देश के प्रति लगाव कैसे होगा,जब बच्चे अपने मां-बाप के मोह से ही मुक्त होना चाहतें हैं।जा ,कर ले  तैयारी अपने बेटे के जाने की।और हां कल तो छब्बीस जनवरी है।अपने आंगन में झंडा फहराने की तैयारी भी कर लेना।क्या पता?मेरा आखिरी त्योहार हो यह।बूंदी के लिए कह दिया है मैंने रघु से।तू निश्चिंत होकर जा।”

प्रतीक खुश होकर नित्या से जाने की तैयारी करने को कहता है।सुबह ही निकलना पड़ेगा।सुबह उठकर चहल-पहल देख प्रतीक दंग रह गया।पूरा मोहल्ला जुटा था उसके घर।पढ़ाई के सिलसिले में इसके पहले उसने यह दृश्य कभी देखा नहीं था।आंगन खूब सजा हुआ था,फूलों और रंगोली से।

अधिकतर बुजुर्ग कुर्ता पायजामा पहने ,सिर पर टोपी और हांथ में तिरंगा लिए हुए खड़े थे।तभी दादी दादा जी की वर्दी पहने हांथ में दुनाली लिए आईं।दुनाली को एक किनारे रखकर,झंडा फहराया उन्होंने। राष्ट्र गान गाते हुए वहां उपस्थित सभी लोग रो रहे थे।दादी ने परंपरागत रूप से दुनाली भी दागी।

प्रतीक जड़वत हो गया। मातृभूमि के प्रति इतना प्रेम और आस्था।सच ही तो कहा था दादी ने,देश की मिट्टी से बड़ा कोई चंदन नहीं।प्रतीक दौड़कर गया और दादी के पैरों में गिरकर रोते हुए बोला”मैं भी अपने दादा का पोता हूं।अपने देश को छोड़कर कहीं नहीं जा रहा।बस एक बार मुझे दुनाली चलाना सिखा दीजिए।मुझे इस देश में ही रहना है।”भारत- भाग्य विधाता है।भारत माता की जय।”

दादी ने आज अपने पोते के साथ नया गणतंत्र दिवस मनाया।दोनों पोते और दादी के साथ सुभाष जी भी रोते हुए हंस रहे थे।

शुभ्रा बैनर्जी

2 thoughts on “देश ही भाग्य विधाता – शुभ्रा बैनर्जी: Moral Stories in hindi”

  1. डिफरेंट। टोटली डिफरेंट ।बहुत अच्छी परिवार को एकजुट रखने वाली

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