शारदा देवी फूले नहीं समा रही थी। इसलिए कि उनके बेटे की शादी बहुत ही धनाढ्य परिवार में हो रही थी। लड़की वाले हर छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी सामान दे रहे थे जो उनके सोच से परे था। सबसे बड़ी बात कि इकलौती संतान थी। सब कुछ तो उसके बेटे का हो जाएगा ना!! सोच -सोच कर शारदा देवी खुश हो रही थी कि पांचों अंगुलियां घी में कौन कहे, पूरी की पूरी घी में चुपड़ जाएगी!
शारदा देवी का बेटा, पवन क्लास वन ऑफिसर था और पति विमल जी भी सरकारी नौकरी में थे। घर द्वार से संपन्न थे। एक बेटी जिसकी शादी कर दी थी।
पवन और लड़की पारुल कॉलेज में साथ पढ़ते थे। पारुल मन ही मन उसे चाहती थी, पर पवन इससे बिल्कुल अनजान था। ग्रेजुएशन के बाद दोनों के पढ़ाई का क्षेत्र अलग-अलग हो गया।वह फैशन डिजाइनर का कोर्स करने लगी और पवन कॉम्पिटेटिव एक्जाम की तैयारी। हालांकि टेलीफोनिक कांटेक्ट रहता था दोनों में। जब पवन की नौकरी लग गई तब पारुल ने अपने पापा से पवन से शादी की मंशा जताई। बेटी कहे और पापा ना कर दे यह हो नहीं सकता। पारुल के पापा पवन के यहां जा बातचीत की और शादी पक्की कर दी। पवन को इस रिश्ते से कोई आपत्ति नहीं थी।
शादी अगले लग्न में होने वाली थी। एक दिन लड़की के पापा आ पहुंचे। “अरे समधी साहब आप? कैसे आना हुआ अचानक से? ना कोई संदेश ना खबर!”पवन के पापा ने कहा। “क्या मैं यूं ही नहीं आ सकता? अब तो अपनी बेटी दे रहा हूं।” “नहीं… नहीं ऐसी बात नहीं।”पवन के पापा ने कहा।
अचानक से समधी साहब के आने से शारदा देवी घबरा गई। इनका स्वागत करें तो कैसे करें? बता के जो नहीं आए थे। बता के आते तो शायद, कुछ अच्छे से स्वागत करती। खैर, अपने हिसाब से जो बन पड़ा, खातिरदारी की।
इधर-उधर की बातें होती रही। बातों ही बातों में लड़की के पापा ने कहा,”देखिए समधी साहब, मुझे पवन पसंद आ गया और पवन को भी मेरी बेटी। इसलिए मैं आपके यहां शादी कर रहा हूं।
मेरी बेटी पूरे शानोशौकत में पली बढ़ी है। आज तक ऐसा नहीं हुआ, उसने मुंह खोला हो और मैंने पूरा नहीं किया हो। मां तो बचपन में ही इसका साथ छोड़ गई थी।
वैसे आपका घर बुरा नहीं, फिर भी मैं चाहता हूं कि शादी के पहले आपका मकान मेरी बेटी के रहने लायक बन जाए।”सुनते ही पवन के पापा के चेहरे की रंगत बदल गई, घबरा गए। हकलाते हुए कहने लगे,”मैं कैसे….यह सब….?” लड़की के पापा ने मुस्कुराते हुए कहा,”घबराने की कोई बात नहीं! मैं करूंगा सब कुछ! बस, करना आपको है।ये रहे रुपए।”उन्होंने रुपयों से भरे बैग पवन के पापा को थमाया। शारदा देवी आंखें फाड़ -फाड़ कर बैग को देख रहीं थीं। पवन के पापा नि:शब्द हक्के-बक्के से रह गए थे।
” और हां समधी साहब! इस बैग में मकान का नक्शा भी है जिससे मैंने बेटी के अनुसार आर्किटेक्चर से बनवाया है। ठीक है, अब मैं चलता हूं।” कह, वह चलते बने। उनके जाने के बाद शारदा देवी लपककर उस बैग को खोलने लगीं। खोलते ही लगा जैसे वह बेहोश हो जाएंगी। इतने रुपए अपनी पूरी जिंदगी में नहीं देखा था और वह उसके हाथ में है। वहीं विमल जी खामोश ……. चुपचाप …..बैठे रहे और पत्नी की क्रियाकलापों को देख रहे थे। उन्हें समझ नहीं आ रहा था वह क्या करें??
शाम को पवन के ऑफिस से आते ही शारदा देवी ने खुशी जाहिर करते हुए कहा,”तुम्हारी तो किस्मत खुल गई बेटा! देख न , लक्ष्मी स्वयं चलकर तुम्हारे पास आई है। चहकते हुए बैग बेटे के सामने रख दिया और सारे वृतांत एक ही सांस में कह डाली।
कुछ देर चुप रहने के बाद पवन ने कहा, “मां, मैं आप लोगों की हर एक इच्छा का ख्याल रखता आया हूं। आपने शादी तय कर दी मैंने कोई आपत्ति नहीं जताई । पर मां तुम क्यों नहीं समझ पा रही कि वे लोग मुझे खरीद रहे और आप लोग मुझे भेज रहे। नहीं करनी मुझे शादी।”पवन गुस्से में हांफते हुए कहा। “अरे बेटा ,हमने थोड़े ही मांगा है। उन्होंने खुद दिया। ना मत कर बेटा! तू शादी वही करेगा।” पापा ने भी शारदा देवी के हां में हां मिलाया।”हां बेटा, अब तो शादी वहीं होगी। पूरे शहर में इस शादी की चर्चा हो गई है। ना कहने पर हमारी तो वैज्यती होगी ही और तब लड़की के पापा अपनी वैज्यती बर्दाश्त करेंगे भला? पता नहीं क्या कर बैठे!”पवन बगैर कुछ बोले वहां से उठ चला गया।
मकान बन कर तैयार हो गया। सारे शहर में कानाफूशी हो रही थी कि पवन को उसके मां-बाप ने लड़की के हाथों बेच दिया। धीरे-धीरे आग की तरह यह बात चारों तरफ फैल ही गई।
शादी का दिन भी आ गया। पूरी धूमधाम शानोशौकत से शादी संपन्न हुई। लड़की विदा होकर आ गई। अगले दिन बड़ा ही भव्य बहूभोज रखा गया। पवन की मां उपहार में मिले गहनों से लदी इधर से उधर फुदक रही थी और अपने रिश्तेदारों और मोहल्ले की औरतों से मुस्कुराती , इठलाती हुई बिना किसी के पूछे कह जाती थी,”यह सब बहुरानी के यहां से मुझे उपहार में मिला है, सुंदर है न? सभी भौंचक्का उन्हें देख रहे थे और उनमें से कुछ शारदा देवी के हटते ही मुंह बिचका देते थे। कितनी लालची है शारदा देवी! सीधे-साधे बेटे को लोभ बस गिरवी रख दिया।
लोगों ने शानदार बहुभोज का जमकर लूत्फ उठाया।
सारे लोगों के जाने के बाद शारदा देवी बहू के कमरे में जा बोली,” बहु रानी, तुम्हें जिस किसी चीज की भी जरूरत हो बता देना। झिझक बिल्कुल मत करना।”झट से बहु रानी ने कहा,”जी मम्मी जी बिल्कुल।”
अगली सुबह पवन कमरे से बाहर आया और लॉबी में आ टीवी न्यूज़ देखते हुए आवाज़ लगाई,” मां चाय देना और हां, नाश्ता जल्दी बना देना। मुझे आज थोड़ा पहले निकलना है।” पवन तैयार हो नाश्ता कर चला गया।
शारदा देवी ने नौकरानी से बहु रानी के कमरे में चाय भिजवा दी। सोचा , मायके छोड़कर आई है बेचारी इसलिए उदास होगी।
जब दिन के 11:00 बज गए और वह कमरे से नहीं निकली तो शारदा देवी को चिंता होने लगी।”बहुरानी -बहुरानी “कहते हुए कमरे में गई। देखा, वह मजे में सो रही है। चाय यूं ही पड़ी है।”उठो बहुरानी, यह सोने का समय है भला।” बहु घड़ी की ओर देखकर बोली,”अरे मम्मी जी, अभी तो 11:00 बजे हैं। मुझे सोने दीजिए डिस्टर्ब मत कीजिए प्लीज!” शारदा देवी मुंह लटकाए बाहर आ गईं।
करीब 1:00 बजे जींस टॉप पहन तैयार होकर आई और शारदा देवी से कहा,”मम्मी जी ,दो पराठे, चिली -पनीर और एक कटोरी दही भिजवा दीजिए ।मैं कमरे में जा रही।”
शारदा देवी अंदर ही अंदर सहम गई। सोचने लगीं,” अभी एक दिन भी नहीं हुए और यह आर्डर फरमा रही है। हे भगवान! आगे क्या करेगी।”
शाम को जब पवन आया तो कह पड़ी,”पवन चलो बाहर डिनर करेंगे।”
“नहीं.. नहीं किसी और दिन चलेंगे। अभी तो 2 दिन ही हुए हैं हमारी शादी के। इतनी जल्दी क्या?” क्या पापा ने तुम्हें यह नहीं बताया कि मेरी हर इच्छाओं का ख्याल रखोगे!”मुझे कुछ नहीं सुनना। चलना है तो चलना है!”
शारदा देवी ने कुछ कहना चाहा तो बीच में ही रोकते हुए उसने कहा,”मम्मी जी आप हमारे बीच में मत आया करो। पता है ना ,मैं अपने हस्बैंड से बात कर रही।”बात का बतंगड़ ना बन जाए इसलिए पवन अन्यमनस्क उसके साथ जाने को तैयार हो गया।
उनके जाने के बाद पवन के पापा ने शारदा देवी से कहा,”अब मिल रही है ना तुम्हारे दिल को ठंडक! मैं और पवन नहीं चाहते थे इस रिश्ते को लेकिन तूने ही आगे बढ़ हमारा मुंह बंद करवा दिया था। अब देखते रहो पवन को कहां-कहां उड़ाये फिर रही है।”
पारुल आए दिन अपनी मनमानी करती और करवाती। जब भी जिस चीज की इच्छा होती, शारदा देवी को आवाज देती और वो बहुरानी की खिदमत में लग जाती। थक हार कर एक दिन शारदा देवी ने पवन से कहा,”बेटा, बहुरानी को कुछ तौर तरीके समझाया कर। बिरादरी में हमारी नाक कट रही है।” मां की बात सुन पवन का चेहरा तमतमा गया। आंखें अंगारे की तरह लाल हो गईं।”क्यों समझाऊं और क्या समझाऊं मां! तुम्हें तो लक्ष्मी चाहिए थी बहू नहीं! कहा था ना तुमने, मेरी किस्मत खुल गई! मेरी किस्मत खुली कहां मां? मेरी किस्मत पर तो लक्ष्मी ने ताला लगा दिया। मैं कठपुतली बन कर रह गया मां। जिसकी डोर तुम्हारी बहु रानी के हाथ में है और मैं उसी के अनुसार करतब दिखाने को मजबूर हूं क्योंकि तुमने मुझे उसके हाथों बेंच दिया है। मैं स्वच्छंद जीना चाहता था लेकिन तूने लक्ष्मी की वेडियों में जकड़ दिया और मैं गुलाम बन कर रह गया। देखो, मेरी किस्मत क्या-क्या गुल खिलाती है।”कहते हुए पवन तेजी से फाटक से बाहर निकल गया और शारदा देवी एकटक टुकुर -टुकुर उसे जाते हुए देखतीं रहीं। शारदा देवी के पास कोई समाधान नहीं था।
संगीता श्रीवास्तव
लखनऊ
#किस्मत
Kismat bhag 3 cahiye plz
Yes