किस्मत (भाग 1) – संगीता श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : शारदा देवी फूले नहीं समा रही थी। इसलिए कि उनके बेटे की शादी बहुत ही धनाढ्य परिवार में हो रही थी। लड़की वाले हर छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी सामान दे रहे थे जो उनके सोच से परे था। सबसे बड़ी बात कि इकलौती संतान थी। सब कुछ तो उसके बेटे का हो जाएगा ना!! सोच -सोच कर शारदा देवी खुश हो रही थी कि पांचों अंगुलियां घी में कौन कहे, पूरी की पूरी घी में चुपड़ जाएगी!

                        शारदा देवी का बेटा, पवन क्लास वन ऑफिसर था और पति विमल जी भी सरकारी नौकरी में थे। घर द्वार से संपन्न थे। एक बेटी जिसकी शादी कर दी थी।

पवन और लड़की पारुल कॉलेज में साथ पढ़ते थे। पारुल मन ही मन उसे चाहती थी, पर पवन इससे बिल्कुल अनजान था। ग्रेजुएशन के बाद दोनों के पढ़ाई का क्षेत्र अलग-अलग हो गया।वह फैशन डिजाइनर का कोर्स करने लगी और पवन कॉम्पिटेटिव एक्जाम की तैयारी। हालांकि टेलीफोनिक कांटेक्ट रहता था दोनों में। जब पवन की नौकरी लग गई तब पारुल ने अपने पापा से पवन से शादी की मंशा जताई। बेटी कहे और पापा ना कर दे यह हो नहीं सकता। पारुल के पापा पवन के यहां जा बातचीत की और शादी पक्की कर दी। पवन को इस रिश्ते  से कोई आपत्ति नहीं थी।

       शादी अगले लग्न में होने वाली थी। एक दिन लड़की के पापा आ पहुंचे। “अरे समधी साहब आप? कैसे आना हुआ अचानक से? ना कोई संदेश ना खबर!”पवन के पापा ने कहा।  “क्या मैं यूं ही नहीं आ सकता? अब तो अपनी बेटी दे रहा हूं।”  “नहीं… नहीं ऐसी बात नहीं।”पवन के पापा ने कहा।

अचानक से समधी साहब के आने से शारदा देवी घबरा गई। इनका स्वागत करें तो कैसे करें? बता के जो नहीं आए थे। बता के आते तो शायद, कुछ अच्छे से स्वागत करती। खैर, अपने हिसाब से जो बन  पड़ा, खातिरदारी की।

       इधर-उधर की बातें होती रही। बातों ही बातों में लड़की के पापा ने कहा,”देखिए समधी साहब, मुझे पवन पसंद आ गया और पवन को भी मेरी बेटी। इसलिए मैं आपके यहां शादी कर रहा हूं।

‌ मेरी बेटी पूरे शानोशौकत में पली बढ़ी है। आज तक ऐसा नहीं हुआ, उसने मुंह खोला हो और मैंने पूरा नहीं किया हो। मां तो बचपन में ही इसका साथ छोड़ गई थी।

                      वैसे आपका घर बुरा नहीं, फिर भी मैं चाहता हूं कि शादी के पहले आपका मकान मेरी बेटी के रहने लायक बन जाए।”सुनते ही पवन के पापा के चेहरे की रंगत बदल गई, घबरा गए। हकलाते हुए कहने लगे,”मैं  कैसे….यह सब….?” लड़की के पापा ने मुस्कुराते हुए कहा,”घबराने की कोई बात नहीं! मैं करूंगा सब कुछ! बस, करना आपको है।ये रहे रुपए।”उन्होंने रुपयों से भरे बैग पवन के पापा को थमाया। शारदा देवी आंखें फाड़ -फाड़ कर बैग को देख रहीं थीं। पवन के पापा नि:शब्द हक्के-बक्के से रह गए थे।

” और हां समधी साहब! इस बैग में मकान का नक्शा भी है जिससे मैंने बेटी के अनुसार आर्किटेक्चर से बनवाया है। ठीक है, अब मैं चलता हूं।” कह, वह चलते बने। उनके जाने के बाद शारदा देवी लपककर उस बैग को खोलने लगीं। खोलते ही लगा जैसे वह बेहोश हो जाएंगी। इतने रुपए अपनी पूरी जिंदगी में  नहीं देखा था और वह उसके हाथ में है। वहीं विमल जी खामोश ……. चुपचाप …..बैठे रहे और पत्नी की क्रियाकलापों को देख रहे थे। उन्हें समझ नहीं आ रहा था वह क्या करें??

अगला भाग

किस्मत (भाग 2) – संगीता श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

संगीता श्रीवास्तव

लखनऊ

#किस्मत 

 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!