Moral Stories in Hindi : निमिष ने जब अपने ऑफिस की ही सहकर्मी माहीं से विवाह करने कि निश्चय किया तो माहीं के घरवालों को तो कोई आपत्ति न थी बस निमिष को अपनी माँ की मिन्नतें करनी पड़ी क्योंकि वह नौकरीपेशा बहू के पक्ष में नहीं थीं ।उनका मानना था कि नौकरीपेशा बहू घर गृहस्थी में और बच्चों पर ध्यान नहीं देती हैं ।
उनकी प्राथमिकता कैरियर ही होती है जबकि वो चाहती थी गृहस्थी के प्रति पूर्णतयः समर्पित बहू लेकिन बेटे की इच्छा के आगे आत्मसमर्पण कर दिया । वे अपने गाँव वाले घर में ही रह कर खेतों की देखभाल करतीं थी पिता थे नहीं व बेटा निमिष पूणे में था ।ऐसे में उनकी सोच थी कि जब वो बेटे के पास कुछ माह को जाएँ तो उनकी पूरी सेवा सत्कार किया जाए जो कि अब उन्हें संभव न लगता ।
वो असंतुष्ट होकर कहतीं फिरतीं “नौकरी वाली बहुएँ हमारी क्या खाक सेवा करेंगी उन्हें तो खुद हर समय नौकर चाहिए । घर का काम तो क्या करेंगी खाना पकाने के लिए भी नौकर चाहिए। हमारी सेवा तो क्या खाक उल्टे उनकी ही नौकरी बजानी पड़ेगी।”
विवाह के समय तो वह बेटे बहू के साथ रह नहीं पाईं ।
वे हनीमून पर चले गए व वे अपने गाँव आ गईं ।अब रक्षाबंधन और तीजों के समय जब निमिष ने आने का आग्रह किया तो वे वहाँ आने को तैयार हो गई लेकिन मन अशांत था सुकून न था उन्हें लग रहा था कि वहाँ जाकर भी तो अकेले ही रहना है ।वो दोनों तो ऑफिस निकल लेंगे पीछे से बुढ़िया अकेले रहे और उनकी गृहस्थी संभाले ।
सारी जिन्दगी खट खट के निकल गई और बुढ़ापे में भी कोई सेवा की उम्मीद नहीं ।इन्हीं सब विचारों में कब स्टेशन आ गया पता ही नहीं चला । उन्हें आश्चर्य हुआ जब देखा कि निमिष के साथ बहू भी उन्हें लेने स्टेशन आई है ।
अरे !! बड़े भाग्य हमारे जो ऑफिस से छुट्टी कर हमें लेने आईं महारानी ।मन ही मन कटाक्ष किया उन्होंने ।
घर पहुँच कर देखा तो एकबारगी वाह वाह करने को मन कर गया ।करीने से सजाया तराशा हर कोना सुव्यवस्थित था ।”कब समय मिलता होगा इसे घर सजाने का।बस पैसे फैंकते होंगे और नौकरों से करवा लेते होंगे ।इसमें गृहिणी के हाथों की सुघड़ता तो ना दिखती जरूर कोई एक्सपर्ट नौकर ही रखा होगा।”मन ही मन सोच रहीं थीं ।
कुछ देर में बहू अदरक वाली चाय और पकौड़े ले आई । मन तृप्त हो गया ।अरे!! “पकौड़े बनाने आते हैं इसे और चाय भी तो कितनी स्वाद बनी ।”कुछ देर लेट के उठीं तो आठ बज गए थे ।निमिष ने कहा कि खाना तैयार है ।”किसने बनाया खाना ?”उन्होंने पूछा !!तो निमिष ने कहा “हम दोनों ने मिलकर बना लिया ।”दोनों ने मतलब!! तू भी साथ में रसोई में लगा रहता है ?””तो क्या हुआ माँ ! इसमें क्या अचरज।”
माँ को अजीब तो लगा क्यों कि वो उस जमाने की थीं जब पति पानी भी अपने हाथ से लेना पुरुषत्व की तौहीन समझते थे । उस समय तो कुछ नहीं बोलीं ।खाना वास्तव में बहुत स्वादिष्ट बना था ।तारीफ तो करनी ही पड़ी साथ ही पहली रसोई का नेग भी देना पड़ा।
गाँव में तो वे सुबह पाँच बजे उठ जातीं लेकिन पता नहीं यहाँ स्थान परिवर्तन की वजह ,जिम्मेदारियों से मुक्ति या थकान का असर था कि उनकी नींद आठ बजे खुली । देखा तो दोनों बेटा बहू नहा धो कर ऑफिस के लिए तैयार थे ।बहू ने उनको फटाफट चाय दी और कहा “माँ आपका नाश्ता और दोपहर का खाना कैसरोल में रख दिया है ।अभी कुछ देर तक बाई आएगी घर का काम करने ।उसी से कहिएगा आप को खाना गर्म कर देगी।
शाम की चाय तक हम आ ही जाएंगे ।”माँ आश्चर्य में थीं कि कब उसने खाना बना लिया और तैयार भी हो गई ।वो जरूर कल जल्दी उठकर देखेंगीं कि कैसे- क्या- कब किया ?उन्होंने राहत की साँस ली कि चलो उन्हें तो कुछ काम नहीं करना पड़ेगा।
शाम को दोनों ऑफिस से आए ।
उन्होंने देखा बहू चेन्ज करने चली गई और निमिष ने चाय चढ़ा दी सबके लिए ।उनका तो पारा चढ़ गया कि दोनों ऑफिस से आए हैं तो निमिष क्यों चाय बना रहा है महारानी के लिए!! लेकिन कुछ कहा नहीं ।उचित अवसर की तलाश में थीं।चाय पीकर कुछ आराम करने के बाद उन्होंने देखा कि माहीं सुबह के धोए कपडे बाल्कनी से ले आई और निमिष उनको बैठा तहाता रहा, फिर दोनों रसोईघर में घुस गए ।
उन्होंने जाकर देखा तो एक तरफ निमिष सब्जी छौंक रहा था और माहीं आटा गूंथ रही थी ।आपस में बातें भी कर रहे थे काम भी कर रहे थे ।माँ के लिए तो ये बिलकुल अजीब था । उन्हें बर्दाश्त नहीं हुआ कि बेटा ऑफिस से आकर घर के काम में जुट जाए औरतों की तरह । मन ही मन जोरू के गुलाम की पदवी दे डाली उसे ।
जब वह थोड़ी देर बाहर आया तो माँ ने मौका देखकर आखिर सुना ही दिया “क्या रे तू तो बिलकुल बीबी का पिछलग्गू हो गया है ।औरतों की तरह घर के कामों में लगा दिया उसने तुझे और तू जुटा रहता है ।पति की सेवा तो क्या करनी उल्टा उससे सेवा कराती है ।क्या सोच के शादी की थी तूने ?”
निमिष बोला “माँ ये सब पुरानी बातें हैं।किस जमाने में जी में जी रहीं हैं आप?अब पति पत्नी में कोई अंतर नहीं है ।जब दोनों वर्किंग हैं दोनो ऑफिस जाते हैं तो घर की जिम्मेदारियां भी दोनों को हो वहन करनी होंगी ।चाहे गृहस्थी हो या बच्चे दोनों का बराबर योगदान है इसमें ।क्या पत्नी ने ही ठेका लिया हुआ है घर और बच्चों के प्रति समर्पण का ?
जब वो शारीरिक-मानसिक,आर्थिक भावनात्मक दृष्टि से हमारे प्रति पूर्णतयः समर्पित है तो हम क्यों नहीं हो सकते ।आप को तो खुश होना चाहिए कि पुरूषवादी सोच घट रही है ।हम गृहणियों के महत्व को समझ कर उसके साथ सहयोग कर रहें हैं लेकिन पता नहीं स्त्री ही स्त्री की खुशी में बाधक क्यों होती है?माँ !!
अब जमाना बदल रहा है ,पुरूषों के भी और सास ससुर के भी दृष्टिकोण बदल रहे हैं और यही सही और समसामयिक भी है । समय के साथ अपने विचारों को भी बदल लेना चाहिए वरना परिवार बिखर जाता है।”
शायद तीर निशाने पर जा कर लगा था इसलिए माँ की आँखो में रोष नहीं बल्कि “बेटे की सोच के लिए गर्व” दिख रहा था।
पूनम अरोड़ा