सुबह से ही रिमझिम बारिश हो रही थी।मौसम खुशनुमा हो गया था।प्रिया बालकनी में बैठ धीरे धीरे चाय के घूँट भर रही थी , पर उसका मन द्रुत गति से अतीत की गलियों में विचर रहा था ।
उसे याद आने लगा वह दिन ,जब एक हादसे ने उसकी खूबसूरत , हसीन सी जिंदगी को कालिमा से भर दिया था । राज का हादसे में गुजर जाना …ओह! सोच ही नहीं पाती वह। तीस साल की कमसिन उम्र में दो बच्चों के साथ वह दुनिया की भीड़ में अकेली हो गई थी। धीरे -धीरे पूरे परिवार वालों ने उससे कन्नी काटना शुरू कर दिया। जिंदगी की धरातल कितनी खोखली है ,यह अब उसे समझ में आने लगा। पर क्या करती वह…दोनों मासूम बच्चों की बालसुलभ हरकतें उसके होठों पर मुसकान और आँखों में आँसुओं की बाढ़ ले आते और उसकी जीने की इच्छा बलवती हो उठती। समय बीतने के साथ उसने खुद को संभाला और जीवन के कठोर डगर पर चल पड़ी। सोचते – सोचते उसकी आँखों से अश्रुकण मोती बन लुढ़क पड़े । दस साल बीत गए , उसने अकेलेपन को ही अपना साथी बना लिया। दूसरों के दिये दंश जो उसे पीड़ा पहुँचाते , उन्हें वह रात के अंधेरे में सफेद पन्नों पर उकेर लेती ।
उसे पता भी न चला कि कब उसके बच्चे इतने बड़े हो गए कि उसकी लिखी रचनाओं को चुपके से पत्र-पत्रिकाओं में प्रेषित होने के लिए भेजने लगे।पता तो उसे तब चला जब उसके मोबाईल फोन पर एक संदेश आया कि आपके अकाऊंट में तीन हजार रूपये भेजे जा रहे हैं ,यह आपके द्वारा भेजी गई रचना का पारिश्रमिक है ,कृप्या आप जल्द से जल्द अपनी कुछ रचनायें और भेजें । वह आश्चर्य में पड़ गयी..उसने तो अपनी लिखी कोई रचना कभी भी , कहीं भी नहीं भेजी। उसके मन में आज तक ऐसा ख्याल आया भी नहीं ,वह तो बस अपने अकेलेपन को कागज और कलम के साथ साझा कर रही थी । बच्चों से जब उसने जिक्र किया तब उसे पता चला कि यह उनकी कारस्तानी है ।
प्रिया उन पर आँखें तरेर ही रही थी कि दोनों बच्चे उसके गले से आकर लिपट गये और बोले – माँ ,तुम ऐसे ही लिखती रहा करो न , कितना अच्छा लिखती हो । बच्चों की बातें सुन वह हल्के से मुसकुरा उठी और अपने गम को खुद में समेटे वह लिखती रही..लिखती रही।
लम्हा लम्हा सदियों की तरह गुजरता रहा और कल ही प्रिया को सूचित किया गया कि उसे साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा जा रहा है ।
चाय पीते – पीते आँखें भर आई उसकी ।आज शायद उसे अपनी तपस्या का फल मिला है । आज अपने अकेलेपन के साथ मिल उसने नया इतिहास रचा है । सोचते सोचते उसने अपने आँसू पोंछे और राज की पसंदीदा गुलाबी सूट पहन तैयार होने चली गई… एक नयी आशा , विश्वास और राज की मधुर स्मृतियों के साथ..
वीणा
झुमरी तिलैया
झारखण्ड