Moral stories in hindi :
पार्क में वंदना रितेश से बोली,” रितेश हम दोनों के रिशते में गलतफहमियां और शक आ गया है, ना तुम बदले ना ही मै बदली हूं, पर हमारे हालात बदल गये है। ये वो ही ऑफिस है, वो ही काम-काज है, वो ही मै और तुम है, बस अब रिशते नये जुड़ गये है, तुम तो मेरे दोस्तों को जानते हो और मै तुम्हारे दोस्तों को जानती हूं, फिर तुम मुझ पर शक कैसे कर सकते हो?
तुम अपना दिमाग नहीं चलाते हो, जो मम्मी जी और नेहा ने बोल दिया, वो मान लेते हो, उसकी वजह से हमारे बीच झगड़े बढ़ रहे हैं, तुम अपनी मम्मी और बहन को खुश देखना चाहते हो, तो क्या मुझे खुश नहीं देखना चाहते हो”।
” हम दोनों साथ में समय नहीं बीता पाते हैं, बस ऑफिस के काम में ही उलझे रहते हैं, ऐसे में कोई कुछ कहें तो वो ही हमें सच्चा लगने लगता है “।
” तुम तो पढ़े-लिखे समझदार हो, तुम तो कभी शक्की मिजाज नहीं थे, फिर तुम्हें क्या हो गया है? मै तो तुम्हारी जीवन साथी हूं, जिससे जन्मभर का रिश्ता होता है, ये रिश्ता विश्वास पर टिका होता है, अगर इसमें शक का कीड़ा लग जाएं तो फिर ये रिश्ता बोझ बन जाता है।
तुम नेहा को क्या शिक्षा दे रहे हो, वो भी कल को दूसरे घर जायेगी, इसी तरह की बातें करेगी, आज मुझ पर शक कर रही है, कल को अपने पति पर शक करेगी तो उसकी जिंदगी भी नरक बन जायेगी, हमें तो उसे विश्वास और प्यार की शिक्षा देनी है, पर वो भी शक्की होती जा रही है “।
पति-पत्नी का क्या परिवार के सभी लोगों का रिश्ता प्यार और विश्वास पर ही टिका रहता है, सभी लोग ऐसे एक-दूसरे पर शक करते रहेंगे, तो अपनी जिंदगी सुखपूर्वक कैसे जीयेंगे?
रितेश सुन रहा था और समझ भी रहा था, दोनों के बीच दूरियां भी इसलिए आ गई थी कि दोनों एक-दूसरे को समय नहीं दे पा रहे थे, रितेश जल्दी ऑफिस से आता था तो वंदना देर से आती थी, और कभी वंदना जल्दी घर आती थी तो रितेश को देर हो जाती थी, बस इसी वजह से रितेश का गुस्सा, कुंठा बनकर निकल रहा था और वो अपनी मम्मी और नेहा पर ही विश्वास करने लगा था।
“सॉरी वंदना, मुझे माफ कर दो, मैंने तुम्हारा बहुत ही दिल दुखाया है, मैंने तुम पर गुस्सा किया, तुम्हें बहुत कुछ सहन कर लिया, पर अब ऐसा नहीं होगा, मै अपनी आंखें और कान खोलकर रखूंगा, और तुम पर कभी शक नहीं करूंगा, एक-दूसरे से बात करने पर ही शक के बादल हटते है, और दोनों ने एक-दूसरे के साथ समय व्यतीत किया और सारे शिकवे गिले दूर करके घर चले गए। घर पहुंचते ही भारती जी चिल्लाकर बोली,” आ गये दोनों ऐश करके खा-पीकर और हम दोनों यहां भूखे मर रहे हैं”तेरी पत्नी को तो हमारी फ्रिक ही नहीं है “।
“मम्मी, क्या आपको अपनी और नेहा की फ्रिक है? आप दोनों ही थी, हम रसोई में ताला लगाकर तो नहीं गये थे, आप दोनों खाना बनाकर खा सकती थी “।
तभी नेहा बोली,” मम्मी भैया-भाभी जरूर फिल्म देखने गये होंगे और हमें नहीं बताया, हम भी चले जाते तो इनका खर्चा हो जाता, बाहर होटल में खाने के पैसे अलग लगते, ये सब भाभी की चालबाजियां है, और इनके बहकावे में आकर अब भैया भी हमसे झूठ बोल रहे हैं “।
अपनी बहन नेहा की बातें सुनकर आज रितेश को लगा, इनकी बातों में आकर बेकार ही वंदना पर शक किया, उसकी मम्मी और नेहा दोनों शक्की मिजाज है और दोनों को पहले वंदना पर विश्वास नहीं था और ये अब मुझ पर भी शक करने लगी है।
” नेहा तू चुप होजा!!! क्या अनाप-शनाप बकबक किये जा रही है, हम लोग पार्क गये थे, वहीं पर बैठकर बातें कर रहे थे, अगर ये बात वंदना तुम्हें बताती तो तुम शक करते पर तूने तो शक के घेरे में मुझे भी ले लिया है, हद करती है, पढ़ी-लिखी होकर ऐसी बातें करती है, अपना दिमाग सही जगह इस्तेमाल कर, इस तरह का व्यवहार रहेगा तो तू अपने ससुराल में कभी खुश नहीं रहेगी, ज़िन्दगी प्यार और विश्वास से चलती है, उसमें शक का दीमक लग जायें तो जीवन बोझिल हो जाता है”।
तभी भारती जी बोलती है,” आज तो बहू पट्टी पढ़ाकर लाई है जो तू उसी की तरफ बोल रहा है, तुझे अपनी मम्मी और बहन झूठे लग रहे हैं “।
“हां, मम्मी आप और नेहा दोनों झूठ ब़ोल रहे हो, नेहा घर में बैठी- बैठी, आपके कान भरती रहती है, क्या इससे हमारी खुशियां देखी नहीं जाती है,?
“मम्मी, बेटी को अच्छा ज्ञान दो और बहू को सम्मान दो तो आपका जीवन सुधर जायेगा और हमारा भी। आप दोनों अपना व्यवहार बदलो, नहीं तो हम ज्यादा दिनों तक साथ में नहीं रह पायेंगे”।
अपने बेटे के मुंह से ये बात सुनकर भारती जी चुप हो गई, उन्हें समझ आ गया कि अब उनकी और नेहा की बातों में रितेश नहीं आयेगा, और वंदना खुश थी उसने मम्मी की शिक्षा से अपना जीवन फिर से संभाल लिया।
दोस्तों, जीवन में प्यार और विश्वास हो तो वो सुन्दर बन जाता है, लेकिन शक आ जायें तो नरक बनते देर नहीं लगती है।
धन्यवाद
लेखिका
अर्चना खंडेलवाल