Moral Stories in Hindi : – नहीं अविनाश जी आपकी मां तो बहुत बूढ़ी हैं आप उनको संभाल कर ले आईएगा हो सके तो ।अगर बुढ़ापे की वजह से नहीं जाना चाहती तो वैसी व्यवस्था कर लेंगे वैसे अगर उन्हें आप अपने साथ ना ही लाएं तो अच्छा है आने जाने में कहीं कुछ ऊंच नीच हो गई तो ….. चिंतित स्वर था श्रेयस का
बुढ़ापा बहुत देखभाल मांगता है बूढ़े मां बस बच्चे ही बन जाते हैं छोटी छोटी बातें छोटे छोटे ख्याल उन्हें दिली खुशी दे जाते हैं तो छोटी छोटी उपेक्षाएं उन्हें दिल से दुखी कर जाती हैं हाथ पांव लाचार हो जाते हैं परवश होना उनकी मजबूरी बन जाता है श्रेयस बोलता जा रहा था और अविनाश उसकी बात रोकने के लिए शब्द ढूंढता जा रहा था
हां सही कह रहे हैं आप श्रेयस जी इतनी बूढ़ी मां को आप पिकनिक पर ले जाने की जिद क्यों कर रहे हैं अविनाश जी….मानव ने जैसे ही कहा अविनाश तो जैसे फट ही पड़ा
…. बूढ़ी मां बूढ़ी मां किसकी मां को आप लोग तब से बूढ़ी बूढ़ी कहे जा रहे हैं…# मानव तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई इस तरह की बातें मेरे ही सामने करते जाने की मेरी मां बूढ़ी नहीं है बिल्कुल बूढ़ी नहीं है ना कभी हो सकती है मैं अपने जीते जी उसे कभी बूढ़ी नहीं होने दूंगा समझे आप लोग… मेरी पिकनिक मेरा नया साल सब मां के ही साथ है मां के बिना नहीं ।मुझे पिकनिक विक्निक पर नहीं जाना……तमतमाया चेहरा लिए अविनाश को जाते देख सभी उपस्थित कॉलोनी वाले आश्चर्य में पड़ गए।
पिकनिक का कार्यक्रम बन रहा था नए साल के आगमन की खुशी में सबकी राय ली जा रही थी सलाह सुझाव के बाद फाइनल किया जा रहा था स्थान समय और जाने वालो की संख्या वाहनों की संख्या सब कुछ तय हो गया था अब दिक्कत आ रही थी वृद्धजनों के जाने की।
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श्यामल जी के मां बाप ने तो जाने से ही इनकार कर दिया था और श्यामल जी खुद भी इस पक्ष में नहीं थे… तो एक नौकर और कॉलोनी के चौकीदार की देख रख में उनकी व्यवस्था कर दी गई थी अब बच गए थे अविनाश जी जो अपनी वयोवृद्ध माताजी के साथ अकेले ही रहते थे लेकिन अपनी मां को वृद्ध कहने पर हमेशा भड़क जाते थे यहां तक कि वरिष्ठ नागरिकों को मिलने वाली कोई भी सुविधा लेने से भी इंकार कर देते थे …. आज भी उन्हें भी श्यामल जी के माता पिता के साथ रख कर जाने की बात पर अविनाश जी बिफर गए थे और सबको आश्चर्य में डालते हुए मीटिंग बीच में ही छोड़ कर घर की ओर बढ़ गए थे…!
जाते जाते अपना बचपन याद आ रहा था उन्हे……
जा तेरी मां बुड्ढी तेरी मां बुड्ढी बुड्ढी अविनाश का क्लास थ्री का सहपाठी और मित्र सोहन उर्फ सोनू जब भी उससे नाराज होता यही चिढ़ाता था।एक दिन अवि ने अपनी मां से पूछा था मां बुड्ढी का मतलब क्या होता है.. मां ने हंसकर उसकी ओर देखा था बुड्ढी का मतलब बूढ़ी और बूढ़ी का मतलब अब संसार से जाने के दिन निकट हैं…. जब आंखों से कम दिखने लगे बाल चांदनी से हो जाएं चलने फिरने में कठिनाई होने लगे दांत भी साथ छोड़ने लगे….जैसे वो तेरा दोस्त है ना सोनू उसकी दादी हैं वो एकदम बूढ़ी हो गई हैं…. बिचारी ना जाने कब भगवान बुला लें उन्हे……पर तू क्यों पूछ रहा है बेटा ।
वो मां सोनू हमेशा तेरी मां बूढ़ी चिढ़ाता रहता है आज उसको बताऊंगा जाकर मेरी मां तो कित्ती सुंदर है कित्ती प्यारी है उसकी मां होगी बुड्ढी…!अविनाश के दृष्टिपटल पर सोनू की कृष्काय लाचार पोपली दादी की शकल घूम गई थी।
अरे अरे अवि इसमें चिढ़ने या चिढ़ाने वाली बात ही नही है सभी को एक दिन बूढ़े होना है फिर मर जाना है ये तो उम्र है बेटा किसी के रोके से नहीं रुक सकती मां का स्वर उदास हो उठा था। नहीं मां तू कभी बूढ़ी ही नही होगी तो फिर मरने का सवाल ही नहीं है मैं तुझे कभी बूढ़ी नहीं होने दूंगा।
दूसरे ही दिन अवि ने सोनू को डपट दिया सुन तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरी इत्ती प्यारी मां को बुड्ढी कहने की खबरदार आज के बाद कहा तो गढ्ढे में धकेल दूंगा … थोड़े दिनों बाद ही सोनू की बूढ़ी दादी का निधन हो गया और मासूम अवि के दिलो दिमाग में ये बात जड़ जमा के पैठ गई कि बूढ़े होना मतलब मर जाना होता है।
बचपन से लेकर आज तक अविनाश हमेशा मां का बेइंतिहा ख्याल रखते आ रहे हैं उन्हें अपनी मां वैसी की वैसी ही दिखाई देती है सुंदर सी प्यारी सी जैसी उनके बचपन में थी इसीलिए आज भी सबके बूढ़ी मां कहने पर वे नाराज हो उठे कि आखिर इन सबकी हिम्मत कैसे हो गई मेरी इत्ती सुंदर इत्ती प्यारी मां को बूढ़ी कहने की।
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घर पहुंचते ही तुरंत मां के पास जा पहुंचे.. क्या बात है अवि कोई बात हो गई क्या परेशान क्यों दिख रहा है मां ने देखते ही पूछ लिया।
मां तुझे कैसे पता चल जाता है मैं परेशान हूं … सब तुझे आज फिर बूढ़ी कह रहे थे और इसी कारण पिकनिक पर ले जाने लायक भी नहीं समझ रहे थे अब तू ही बता मां मै नाराज ना होऊंगा मेरी मां भला बूढ़ी कैसे हो गई ।
तू भी ना अवि अभी भी बच्चा ही है अरे बेटा मुझ बूढ़ी को सब बूढ़ी ही तो कहेंगे इसमें चिढ़ने वाली क्या बात है हां रह गई बात पिकनिक पर जाने की तो तू कहेगा तो मैं चल पडूंगी अब इतनी बुड्ढी भी नहीं हूं खिलखिलाकर हंसती हुई अपनी प्यारी मां को देख अविनाश निहाल हो उठे बस मां तू इसी तरह खुश रहा कर मैं यही चाहता हूं बुढ़ापा कष्टकारी है बुढ़ापा परवश कर देता है.. आदि आदि बातें सोच सोचकर मन से बूढ़ी कभी मत होना मां जो मन से बूढ़ा हो गया उसकी जिंदगी निरर्थक हो गई…!!हम दोनों घर पर ही पिकनिक करेंगे जाने दो सब को पिकनिक पर ….
वाह अविनाश जी अकेले अकेले पिकनिक पर जाने का प्रोग्राम लिया आपने तो पर हम ऐसा होने ही नही देंगे
मां आप जरूर पिकनिक पर हम सबके साथ चलेंगी अविनाश जी की मां बिलकुल बूढ़ी नहीं है ना ही कभी होंगी कॉलोनी के सभी लोग अविनाश जी के पीछे पीछे उनके घर तक आ गए थे सबको उनका इस तरह मीटिंग छोड़ कर आना खराब लग रहा था।
अरे आओ आओ बेटा सब लोग आओ अंदर आ जाओ मां ने हुलसकर कहा तो श्रेयस ने आगे बढ़ मां के चरण स्पर्श कर लिए और अविनाश जी के कंधे पर हाथ रख कर बोल उठे हां अविनाश भाई आप सही कहते हैं मन से बूढ़ा नही होना चाहिए…. आपकी मां कित्ती सुंदर हैं कित्ती प्यारी हैं… मां कभी बूढ़ी नहीं होती!!चलिए मां पिकनिक पर चलने की तैयारी कर लीजिए और मां की बच्चों सी उत्साहित खिलखिलाहट में सबकी खिलखिलाहटें गूंज उठीं थीं।
लतिका श्रीवास्तव
उत्तर प्रदेश