Moral Stories in Hindi : सुधा जी एक सरकारी विद्यालय में प्रधान अध्यापिका थीं, जो अब सेवा निवृत्त हो चुकीं थीं। उनके पति सेना में एक उच्च अधिकारी थे, जो किसी आतंकी हमले में शहीद हो गए थे।
सुधा जी के तीन बेटे थे। सुधा जी के पति की मृत्यु के पश्चात उन्हें सरकार द्वारा काफी सहायता राशि मिली थी, जिसमें उन्होंने अपने तीनों बेटों को पढ़ाया-लिखाया।
सुधा जी के तीनों बेटों में से एक डॉक्टर, एक इंजीनियर बन गया। एक छोटा बेटा पढ़ने में थोड़ा मध्यम था तो वह कोई प्राइवेट नौकरी ही कर पाया था।
दोनों बेटे जो डॉक्टर, इंजीनियर थे अपनी नौकरी के चलते बड़े-बड़े शहरों में बस गए थे।
वहीं पर उन्होंने अपने-अपने सह कर्मियों से विवाह भी कर लिया था। हालांकि दोनों बेटों ने विवाह के पूर्व सुधा जी की अनुमति ली थी, भले ही चाहे उनकी अनुमति औपचारिक ही क्यों ना रही हो!
दोनों बेटों को विवाह में बहुत दान, दहेज मिला था। दोनों बहुएं भी कमाऊ थीं, तो सुधा जी के नाते रिश्तेदारों में उनकी नाक और अधिक ऊंची हो गई थी।
सुधा जी पर भी जाने, अनजाने यह वहम हावी होने लगा था कि वे दोनों बेटे सपूत हैं और उनकी पत्नियां लक्ष्मी माता का वरदान स्वरूप हैं।
कुछ दिनों बाद छोटे बेटे का भी एक सुंदर सुशील घरेलू लड़की देखकर विवाह कर दिया गया था। छोटी बहू घर सम्हालने लगी थी लेकिन वह कमाऊ तो नहीं ही थी। उसके पति की भी मध्यम आमदनी ही थी।
जबकि दोनों बेटों की अच्छी खासी पगार थी इसलिए वे दोनों सुधा जी को भी हर माह अच्छी खासी मोटी रकम भेजते थे। उनकी पत्नियां भी बहुत कमाती थीं।
सुधा जी उनसे कहती भी थीं कि उनकी पेंशन की रकम उनके खर्चे के लिए पर्याप्त है परंतु बच्चे नहीं मानते थे वे माह के आखिरी में हमेशा पैसे भेज ही देते थे।
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यह बात सुधा जी के मन पर कुछ इस तरह से हावी हो रही थी कि अब वे बात-बात पर छोटे बेटे और बहू को ताना दे देती थीं।
सीखो उनसे कुछ, तुम अपना खर्च नहीं चला सकते, वे हमारा तुम्हारा खर्च भी चला रहे हैं।
छोटी बहू से भी, हर समय दोनों बड़ी बहुओं की तारीफ के पुल बांधती रहती थीं। छोटी बहू सब कुछ सुनकर भी चुप रहती थी।
लेकिन सुधा जी का यह गुरुर कुछ दिनों में स्वयं ही धीरे-धीरे टूटने लगा था।
जब दोनों बेटों के मनीऑर्डर आने कम हो गए थे। यह बात वे मन ही मन में सोचती थीं लेकिन छोटे बेटे और बहू से कह नहीं पातीं थी क्योंकि अभी तक जिनके तारीफ के कलमें पढ़े जा रहे थे, उनकी एकाएक से बुराई कैसे कर सकती थीं!
धीरे-धीरे एकदम से ही पैसे आने बंद हो गए तब छोटे बेटे और बहू को खुद ही सब कुछ नजर आने लगा।
एकदिन अचानक से सुधा जी की तबियत बिगड़ गई तब छोटी बहू जो घर पर थी वह उन्हें अस्पताल लेकर गई।
अस्पताल में डॉक्टरों द्वारा विभिन्न जांचें और परीक्षण हुए फिर उन्हें दिल से संबंधित बीमारी के चलते ना जाने कितने उपचारात्मक सर्जरी की सलाह दी।
बायपास सर्जरी, एंजियोप्लास्टी आदि।
इतनी मंहगी दवाएं, जांच और ऑपरेशन के लिए सुधा जी के पास पर्याप्त रकम ना होने के कारण इलाज में अड़चन आ रही थी। तब सुधा जी ने अपने दोनों बेटों को खबर भेजवाई।
बेटों ने टका सा जबाव दे दिया,,, “माँ हम आपको इतने दिनों से पैसे भेज रहे थे तो उन्हीं पैसों में से अपना इलाज कराइए ना! आजकल हमारे भी खर्चे बढ़ गए हैं, बच्चों की देखरेख उनकी पढ़ाई-लिखाई बहुत सारा काम है यहाँ पर!
आपका तो वैसे भी कोई इतना खर्च है नहीं, आपके खर्चे भर को तो पेंशन मिलती ही है।”
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“ठीक है बेटा!” कहते हुए सुधा जी ने भरे मन से फोन काट दिया।
सुधा जी की छोटी बहू रेवती जो वहीं पर खड़ी थी, वह सब सुन चुकी थी।
उसने अपना कार्ड निकालकर पति को दिया और कहा,,, “माँ जी के इलाज में कोई कोताही नहीं होनी चाहिए। भले ही हम इतना नहीं कमाते फिर भी इतने सक्षम तो हैं ही कि अपने माता-पिता और बच्चों का ख्याल रख सकें!”
सुधा जी ने कहा,,, “लेकिन बहू तुम्हारे पास ये रुपए…?”
“माँ जी अभी कोई बात नहीं, पहले इलाज फिर सब कुछ बताऊंगी।”
सुधा जी का ऑपरेशन सफल हुआ और वे ठीक होकर घर आ गईं। एकदिन रेवती को बुलाकर उन्होंने पूछा,,, “बहू तुमने इतने पैसे कैसे बचा लिए थे?”
“माँ जी आप तो जानती ही हैं मेरा कोई खर्च तो है नहीं। ना ही मुझे कोई महंगे शौक हैं। इनकी तनख्वाह से घर बड़ी आसानी से चल जाता है।
फिर जो आपकी पेंशन से बचता था और आप वह मुझे देती थीं वह सब कुछ धीरे-धीरे जमा होता चला गया।
इसके अलावा कुछ रकम मुझे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने की मिल जाती थी। बस वही सब जोड़ तोड़ कर अपना काम बन गया। लेकिन आप इतना परेशान क्यों हो रही
हैं?”
आज सुधा जी अपनी छोटी बहू की बात सुनकर आत्मग्लानि से भर गई थी! जिस बहू को वह हल्के में ले रहीं थी, आज उसी बहू ने उनकी जान बचाई थी और दिल खोलकर सेवा कर रही थी!
स्वरचित
©अनिला द्विवेदी तिवारी
जबलपुर मध्यप्रदेश