निगाहें (अंतिम भाग ) –  सीमा बाकरे : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : सोमेश ने फिर से फ़ोन लगाया, पर इस बार फोन व्यस्त है ऐसा संदेशा आने लगा।हारकर उसने फोन लगाना बंद कर दिया और पेपर्स हाथ में लेकर ध्यान से पढ़ने लगा। उसमें लिखा था, में रामदयाल अपनी जमीन ,घर अपने मित्र हरिलाल के नाम कर रहा हूं। हस्ताक्षर रामदयाल।

भैया का व्यवहार देखकर न जाने क्यों उसका मन हस्ताक्षर करने का नहीं हुआ, उसने पेपर्स रख दिए और आफिस के लिए निकल गया।एक हफ्ता हो गया था। भैया का संदेश फोन पर आया था। पेपर्स हस्ताक्षर कर भेजो उसने फिर भी हस्ताक्षर नहीं किए। रात के नौ बजे थे सोनी रसोईघर का काम निपटा रही थी, सोमेश टेलीविजन पर समाचार देख रहा था तभी दरवाजे की घंटी बजी ।

सोमेश ने की होल से देखा, कोई नहीं दिखा तो वापस आकर सोफे पर बैठ गया तभी फिर घंटी बजी , सोनी बोली बगल वाली चाची आई होगी सोमेश दरवाजा खोलो ना। सोमेश ने इस बार बिना देखे दरवाजा खोल दिया, दरवाजा खोलते ही तीन बदमाश से दिखने वाले आदमियों ने उसे पकड़ लिया और धमकाते हुए बोले,चल पेपर्स निकाल और हस्ताक्षर करके हमें दे दे।

इतने में शोर सुनकर सोनी बाहर आई तो एक आदमी ने उसे पकड़ लिया। सोमेश, सोनी दोनों की समझ ही नहीं आया कि क्या हो रहा है। सोमेश ने उन लोगों से पूछा, कौन हो तुम लोग, कौन से पेपर्स की बात कर रहे हो, किसने भेजा है तुम्हें , तीनों हंसते हुए बोले, तुझे नहीं पता कौन से पेपर्स,चल अब बिना समय गंवाए जल्दी हस्ताक्षर कर के पेपर्स हमें दे दे नहीं तो यहीं पर तेरा बाजा बजा देंगे। सोमेश को भी गुस्सा आ गया वो भी चिल्ला कर बोला, नहीं करूंगा हस्ताक्षर।

भागो यहां से नहीं तो पुलिस तुम्हारा हालचाल पूछेगी।ये सुनकर उन लोगों ने सोमेश को पीटना शुरू कर दिया सोमेश ने बचने की बहुत कोशिश की पर वो दो थे तो वे भारी पड़े। सोनी को पकड़ कर रखे आदमी ने सोनी को कहा समझा अपने पति को नहीं तो हम इसे मार डालेंगे,।

सोनी बहुत डर गई थी वो सोमेश को बोली, सोमेश इन्हें पेपर्स हस्ताक्षर कर के दे दो हमें कुछ लेना देना नहीं है। पर अब तो सोमेश को भी गुस्सा आ गया था वो बोला तुम चिंता मत करो अब जब तक सही बात पता नहीं चलती, मैं पेपर्स पर हस्ताक्षर नहीं करूंगा और ये सिर्फ धमका रहे हैं ये मुझे नहीं मार सकते।इतना सुनते ही उन लोगों ने सोमेश को बहुत निर्दयता से पीटा, सोनी को भी मारा और धमकाते हुए निकल गये,दो दिन बाद फिर से आएंगे पेपर्स हस्ताक्षर करके रखना नहीं तो परिणाम तुम सोच भी नहीं सकते इतना बुरा होगा।

सोमेश और सोनी बुरी तरह से घायल थे किसी तरह से ऊपर रहने वाली चाची को फ़ोन किया उन्होंने तुरंत एम्बुलेंस सेवा को फोन किया और दोनों को हस्पताल भेजा। सोमेश सोनी के लिए चिंतित था और सोनी सोमेश के लिए चिंतित थी। दोनों को एक दिन हस्पताल में रहना पड़ा।जब घर लौटे तो घर का नजारा बदला हुआ था ।

सारे घर की वस्तुएं टूटी हुई थीं,सारा घर अस्त-व्यस्त था। देखकर सोनी रोने लगी,वो सोमेश से बोली आप हस्ताक्षर कर के पेपर्स भैया को भेज दो, नहीं तो हमें ऐसे ही परेशान होना पड़ेगा । सोमेश ने सोनी को पहले आराम से टूटे सोफे पर लिटाया फिर पानी देकर उसे प्यार से समझाया कि इतना डरो मत, बाबाजी की बात सही निकल रही है उन्होंने कहा था कि संकट आने वाला है, बस कुछ दिन धीरज रखो सब ठीक हो जाएगा।

मैं जल्दी ही पता लगा लूंगा इसके पीछे की कहानी  क्या है , पेपर्स कैसे हैं और अगर भैया ने भेजे हैं तो उसके लिए उन्हें इतना सब करने की क्या जरूरत थी मुझे बोलते,इन पेपर्स के बारे में बताते तो मैं पक्का हस्ताक्षर कर देता पर अब पूरी बात पता किए बिना में हस्ताक्षर नहीं करूंगा। पूरी बात पता चल जाएगी तो उसी दिन हस्ताक्षर कर के पेपर्स भैया को भेज दूंगा।

ऐसा बिल्कुल मत करना………. तभी दरवाजे पर से आवाज़ आई, दोनों ने दरवाज़े की तरफ़ देखा तो दरवाजे पर उस दिन वाले बाबा जी खड़े थे, आज वो अकेले ही आए थे। उन्हें अंदर आते देख सोनी उठ कर बैठने लगी, तो उन्होंने हाथ से इशारा करते हुए कहा लेटी रहो बेटी, सोमेश ने भी उसे आंख के इशारे से लेटे रहने को कहा और थोडा आगे बढ़कर बाबा जी को प्रणाम किया और उन्हें बैठने के लिए छोटा सोफा आगे कर दिया। बाबाजी सोफे पर बैठ गए और सोमेश को भी बैठने का इशारा किया। तभी सोनी ने सोमेश को बाबा जी के लिए पानी लाने के लिए कहा। पानी पीकर बाबा जी ने सोमेश को ध्यान से देखा और बोले आज मैं एक सच बताने आया हूं, दोनों ध्यान से सुनो

आज से सत्ताइस साल पहले की बात है, गांव में दो दोस्त रहते थे एक का नाम हरिलाल और दूसरे का नाम रामदयाल था, दोनों की मित्रता पूरे गांव के लिए एक मिसाल थी। दोनों ही अपने -अपने खेत में काम करते और अपने जीवन में बहुत खुश थे। रामदयाल के पास हरिलाल से ज्यादा जमीन थी और साथ ही वह थोड़ी बहुत ज्योतिष विद्या भी जानता था।उसका परिवार गांव में संपन्न लोगों में गिना जाता था पर किसी भी तरह का भेद उनकी दोस्ती में नहीं पड़ता।

दिन भर काम करने के बाद दोनों नियम से गांव के बाहर के औसारे पर मिलते दिन भर की सुख-दुख की बातें करते और फिर अपने घर आ जाते,घर भी दोनों के आमने-सामने ही थे। हरिलाल के परिवार में पत्नी,दो बेटियां और एक बेटा था जबकि रामदयाल के परिवार में पत्नी और तीन बेटे थे। सब कुछ अच्छा चल रहा था।

दोनों परिवार सभी तीज त्यौहार मिलजुल कर मनाते थे।एक बार गांव में महामारी फैल गई। हरि लाल का परिवार उस समय यात्रा के लिए निकल गया। रामदयाल ने गांव वालों की महामारी में तन ,मन ,धन से सेवा की पर इस महामारी में अपने परिवार को ही न बचा सका।   इस महामारी में उसकी पत्नी और दो बेटे चल बसे । हरिलाल जब यात्रा से वापस लौटा तो अपने मित्र का हाल देखकर अत्यंत दुखी हुआ।कुछ दिन और गुजरे रामदयाल अपने एक बेटे के साथ दिन गुजार रहा था पर उसका मन अब गांव से उचट गया था।

एक बार औसारे पर बैठे हुए अपने मित्र से बात करते हुए रामदयाल बोला मित्र मेरा मन अब गांव में नहीं लगता ऐसा लगता है कि किसी गुफा में जाकर समाधि लगा लूं पर बेटे का मुंह देखकर रुकना पड़ जाता है, हरिलाल बोला मित्र में तुम्हारी अवस्था समझता हूं अगर मेरे कुछ करने से तुम्हारी कुछ मदद हो सकती हो तो जरूर बताना। ऐसा कहकर दोनों अपने अपने घर चले गए। फिर से कुछ दिन निकल गए।

एक दिन अपने खेत न जाकर रामदयाल हरिलाल के घर पहुंचा और हाथ जोड़कर हरिलाल से बोला मित्र अब मैं यहां नहीं रह सकता, मैं यहां से जा रहा हूं।पर तुम पर अपने बेटे की जिम्मेदारी सौंप कर जा रहा हूं।साथ ही मेरी जमीन और घर भी तुम्हें देकर जा रहा हूं।मै तुम पर अपने से भी ज्यादा विश्वास करता हूं इसलिए मुझे मालूम है तुम मेरे बेटे के साथ कोई भेदभाव नहीं करोगे और सही समय आने पर उसके हक की जमीन उसे दे दोगे।आज से मेरा बेटा तुम्हारा हुआ।

हरिलाल ने अपने मित्र को गले से लगा लिया उसकी आंखों से आंसुओं की बरसात होने लगी उसने अपने मित्र को वादा किया कि आज से मेरे तीन नहीं चार बच्चे हैं। तुम निश्चिन्त होकर जाओ समय आने पर मेरे द्वारा किसी भी तरह का अन्याय नहीं होगा मेरा वादा है तुमसे।

रामदयाल अपने तीन साल के बेटे को हरिलाल के हाथ सौंपकर निश्चिन्त होकर जाने कहां निकल गया। समय बीतता गया हरिलाल ने बच्चे को अपने बच्चों जैसे ही पाला पर उसकी पत्नी उसे अपना न बना पाई जब तक हरिलाल घर में होता वो बच्चे के साथ अच्छा व्यवहार करती किन्तु हरिलाल के घर से बाहर निकलते ही उसका व्यवहार बच्चे के प्रति बदल जाता। सभी बच्चे बड़े हो गए और अपने अपने कामों में व्यस्त हो गए।

एक समय ऐसा आया कि हरिलाल का भी देहांत हो गया पर मरने से पहले उसने अपनी पत्नी और बड़े बेटे को रामदयाल के बेटे की जमीन जायदाद लौटाने के लिए कहा। हरिलाल की पत्नी को शुरू से ही रामदयाल का बेटा अच्छा नहीं लगता था , उसने हरिलाल के डर से उसका पालन-पोषण किया था। 

जमीन जायदाद वापस करनी पड़ेगी ये सोचकर उसे  बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा। उसने अपने सगे बेटे को समझाया कि जमीन के कागजात पर रामदयाल के बेटे के हस्ताक्षर ले लो जिससे सारी जमीन जायदाद तुम्हारी हो जाएगी। बड़ा बेटा सरल स्वभाव का था और उसे अपने छोटे भाई से प्रेम भी था पर मां और पत्नी के कहने पर उसे कागजात भिजवाने पड़े।

सोमेश और सोनी स्तब्ध होकर सारी कहानी सुन रहे थे।उनकी आंखें आश्चर्य से फटी रह गईं दोनों ने थोड़े अविश्वास से बाबा जी को देखा और पूछा बाबा आप कौन हैं और इतना सब कैसे जानते हैं, बाबाजी की आंखों से आंसू निकल पड़े और वे बोले वो बदनसीब दूसरा दोस्त में ही हूं और मेरा नाम रामदयाल है और वो छोटा बच्चा और कोई नहीं सोमू तू ही है। सोमेश एक पल के लिए हक्का बक्का रह गया फिर थोड़ा संभला अपने पिताजी के पास जाकर उन्हें संभाला।

अब उसे सारी बातें अच्छी तरह से समझ आ गई थीं। उसने बाबा से पूछा बाबा आप इतने सालों तक कहां थे और जन्मदिन के ही दिन आप गांव कैसे आ गए थे।बाबा बोले में काशी में था वहां मुझे गांव के एक मित्र मिल गए थे उन्होंने बताया कि जन्मदिन और जगराते के बहाने से तुम दोनों को मरवा दिया जाएगा  ताकि तुम्हारी जमीन जायदाद भाभी (हरिलाल की पत्नी) अपने बच्चों में बांट सकें ,इसलिए मैं उस दिन गांव आया था और जब तक तुम दोनों गांव में थे वहीं रुका था।

रामदयाल आगे बोले ,इतने सालों तक जोगी रहकर मेरे लिए जमीन जायदाद मिट्टी जैसी है और मैं तुम्हें भी इस क्षण भंगुर वस्तुओं के लिए अपने बड़े भाई से लड़ जाओ ऐसा में बिल्कुल भी नहीं चाहता । ऊपर जाकर अपने प्यारे मित्र को जवाब भी देना है।ये सब में तुम्हें कभी न बताता अगर तुम्हारी और बहु की जान खतरे में न होती और अब तो नन्हा

मेहमान भी तुम्हारे घर आने वाला है।

अब ये सब जानने के बाद  तुम हस्ताक्षर करना चाहो तो मैं तुम्हें रोकूंगा नहीं क्योंकि जन्म देने वाली माता से अधिक पालने वाली माता का अधिकार होता है।

सब  सुनकर सोमेश और सोनी को रोना आ गया उसने अपने बाबा से कहा बिल्कुल सही कहा बाबा आपने आपकी जायदाद पर पहला हक भैया और मां का है मैं आज ही हस्ताक्षर करके पेपर्स गांव भिजवा देता हूं।

रामदयाल जी ने अपनी गर्दन हिला कर हामी भरी। दूसरे दिन तक सोमेश और सोनी दोनों को काफी आराम हो गया था इसलिए सबने गांव जाकर भैया को पेपर्स देने का निश्चय किया।जब गांव पहुंचे अंधेरा उतर आया था। बाबा जी ,रामदयाल जी ही हैं  ,और सोमेश को सारा सच पता चल गया है  ये खबर गांव पहुंच चुकी थी हरिलाल की पत्नी मन में डर रही थी क्योंकि सारी साज़िश उन्होंने रची थी।

घर पहुंचकर सोमेश ने सबसे पहले अम्मा के पैर छुए और उस दिन की कहासुनी के लिए माफी मांगी सोनी ने भी पैर छुए। फिर दोनों भैया भाभी से भी उसी आत्मीयता से मिले और पैर छूकर आशीर्वाद लिया। फिर उन्होंने पेपर्स निकाल कर भैया के हाथों में रख दिए। हरिलाल की पत्नी के काटो खून नहीं ऐसा हो गया। भैया की आंखें शरम से झुक गई। सोमेश बोला भैया आप ने पहले क्यों नहीं बताया में पहले ही हस्ताक्षर कर देता बेकार इतना परेशान हुए और मां को भी परेशानी हुई।

रामदयाल जी हरिलाल की पत्नी के सामने हाथ जोड़कर खड़े हो गए और बोले भौजी बडके छुटके दोनों बेटे आपके थे क्या आपको अपनी परवरिश पर भरोसा नहीं था जो इतना परेशान हो गई ‌एक बार अपने सोमू से बोल कर तो देखती अगर वो जमीन देने में जरा सी भी नानुकुर करता तो मेरे साथ अपने स्वर्गीय पिता हरिलाल का नाम भी कलंकित करता।

हरिलाल जी की पत्नी की आंखों से आंसुओं की झड़ी लगी हुई थी वो कुछ न बोल पाई बस अपने पास खड़े सोमेश को कस के सीने से लगा लिया और हिचकियां लेकर फूट फूटकर रो पड़ी। मुझे माफ़ कर मेरे लाल ,उनके रोम-रोम से बस यही निकल रहा था। भैया और भाभी भी सोनी और सोमेश से नजरें नहीं मिला पा रहे थे । दोनों की आंखों में पश्चाताप के आंसू थे। भैया सोमेश से बोले सोमेश छोटा होकर भी तू अपने सत्कर्मों से बड़ा हो गया रे,किस मुंह से माफी मांगूं। भाभी भी हाथ जोड़कर माफी मांग रही थी। माहौल एकदम से बदल गया था।

तभी सोमेश की चिरपरिचित शरारती मुस्कान चेहरे पर आई और बोला।अरे ये सब क्या लगा रखा है सोनी मां बनने वाली है अम्मा फिर से दादी बनने वाली हैं  और बाबा इतने सालों बाद हमारे साथ हैं, कुछ जश्न तो मनाना चाहिए न, इतना सुनते ही बच्चों की टोली शोर मचाने लगी। अम्मा,बाबा , भैया और भाभी के चेहरों पर मुस्कान खिल गई।

सोमेश ने सोनी की तरफ देखा और शरारत से मुस्कुरा दिया दोनों एक-दूसरे की आंखों में खो गए।

निगाहें (भाग 3)

निगाहें (भाग 3) –  सीमा बाकरे : Moral Stories in Hindi

सीमा बाकरे

स्वरचित रचना

3 thoughts on “निगाहें (अंतिम भाग ) –  सीमा बाकरे : Moral Stories in Hindi”

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!