Moral Stories in Hindi : कोंडेलिम बीच गोवा पर बैठा सागर सामने समुन्द्र से तेजी से आती लहर को देख रहा था।एक झंझवात उसके मन मस्तिष्क चल रहा था।लहर समुन्द्र से आ रही थी और समुन्द्र उसे फिर अपने मे बार बार समेट रहा था।पर ये सागर तो अपनी उर्मी को यूं ही छोड़ आया था।
उसका निर्दोष,मासूम सा चेहरा बार बार उसके सामने तैर रहा था।अपने से आंखे चुराना कितना कठिन होता है,यह सागर को समझ आ रहा था।उर्मी मानो उसके सामने खड़ी हो बार बार पूछ रही थी,क्यूँ मुझे यूँ मझधार में छोड़ दिया?
एक झटके में बीयर का बड़ा सा गिलास खाली कर सागर फिर समुन्द्र की ओर देखने लगा,उसके पास अपने लिये भी कोई उत्तर नही था।अच्छे सम्पन्न परिवार से सागर और खाते पीते परिवार से सम्बंधित उर्मी दोनो ही एक दूसरे से आकर्षित हो प्रेम पाश में जकड़ गये।सागर के
लिये प्रेम एक शगल था तो उर्मी के लिये था प्रेम एक स्थायी भाव और संपूर्णता।उर्मी तो रम गयी अपने सागर में,और ये सागर खेलता रहा उर्मी के जज्बातों से।कभी दूर के एक चाचा ने सागर को एक गुरु मंत्र दिया था बेटा मीट खा कर गले मे हड्डी थोड़े ही लटकायी जाती है, बस ये मंत्र सागर की प्राण वायु बन गया था।प्रेमभाव से शून्य सागर उर्मी के साथ भी यही खेल खेल गया।
उर्मी के परिवार में जब उसके विवाह की चर्चा चली तो बेचैन उर्मी दौड़ी आयी अपने सागर के पास।सागर मुझे अपने मे सम्माहित कर लो,मैं तुमसे अलग अपनी कल्पना भी नही कर सकती,बचालो मुझे इस तूफान से।भावशून्य सागर बोला हाँ हाँ उर्मी काहे चिंता करती हो मैं हूँ ना,
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बस कुछ दिन तो प्रतिक्षा करनी होगी ही, मैं बस अपने घरवालों को तैयार कर लूं फिर हम एक दूसरे के हो जायेंगे।उर्मी कुछ सशंकित हो बोली,पर सागर तुम्हारे घरवाले तैयार न हुए तो मेरा क्या होगा,तुम बिन मेरा क्या अस्तित्व? सागर तुम मेरे न हुए तो मैं मर जाऊंगी।अरे ऐसा मत सोचो,मैं जल्द ही तुम्हारे पास आ रहा हूँ,कहते कहते सागर ने उर्मी को वापस भेज दिया।
सागर समझ गया था कि उर्मी से पीछा छुड़ाना आसान नही है,वह फिर आयेगी, बार बार आयेगी और शादी की ही जिद करेगी,अपने घर अपनी शादी की बात करने में संकोच भी था साथ ही शादी का विचार भी नही था।सागर के दो मित्र एक सप्ताह के लिये गोवा घूमने जा रहे थे,बस सागर उनके साथ ही गोवा निकल गया,फोन स्विच ऑफ कर लिया।सागर का सोचना था कि इस बीच उर्मी की शादी पक्की हो ही जायेगी और उसे उर्मी का सामना ही नही करना पड़ेगा।
हुआ भी ऐसा ही, उर्मी के घरवालों ने उसकी शादी पक्की कर दी,दो माह बाद की तिथि भी निश्चित कर दी।उर्मी बावली सी हो गयी,सागर को ढूंढती पर सागर होता तो मिलता।उर्मी का मन यह मानने को ही तैयार नही था कि सागर उसे धोखा भी दे सकता है।समुन्द्र ने कभी लहरों का साथ छोड़ा है।
उर्मी भूल गयी समुन्द्र की उथाल सुनामी लहर को समुन्द्र वापस स्वीकार नही करता।चार पाँच दिनों तक सागर से संपर्क स्थापित न हो पाने पर और रोकने की रस्म की जल्दी के कारण असमंजस में पड़ी उर्मी ने अपने कस्बे के पास बहती नहर में छलांग लगा दी,जान देने के अतिरिक्त उसे कुछ सूझा ही नहीं।
नहर में उर्मी की तलाश होती रही,उर्मी नही मिली।सागर गोवा से जैसे ही वापस आया और उसे उर्मी के बारे में पता चला तो ओह कह अपना सिर पकड़ कर वही बैठ गया।उर्मी के इस कृत्य का वह ही जिम्मेदार था,उसको ना पाकर ही तो उसने यह आत्महत्या का कदम उठाया।
आज उसे उर्मी का मासूम चेहरा भी याद आ रहा था और अपने प्रति उसका समर्पण भी।उसे पश्चताप था कि वह चाहता तो उर्मी को बचा सकता था,पर अब क्या हो?उसकी कायरता ने उसका जीवन साथी खो दिया था।सागर भी मानो शून्य में चला गया।बदहवास सा सागर कई कई बार नहर के चक्कर लगाता,चिल्लाता उर्मी देखो मैं आ गया,मुझे माफ़ कर दो उर्मी बस एक बार।उर्मी हो तो बोले।
तीसरे दिन पता चला कि उर्मी को एक दूर के गाँव वाले किसान ने बचा लिया था।उर्मी अपना पता तक बताने की स्थिति में नही थी और बताना भी नही चाहती थी।वह किसान खुद ही पुलिस थाने में जाकर सारी स्थिति बता आया तब उर्मी के परिवारवालों को उसका पता चला।
वो उसको घर लिवा कर लाये।कस्बे में भी उर्मी के जीवित वापस आने का समाचार आग की तरह फैल गया। उर्मी क्यों आत्महत्या करना चाहती थी,इसके कयास लगाये जा रहे थे,जितने मुँह उतनी बातें।उर्मी के परिवार जन शर्मिंदगी में मुँह छिपा रहे थे,क्या जवाब दे किसी को
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?इस लड़की ने तो कही का नहीं छोड़ा,इससे तो मर ही जाती तो ये दिन तो न देखना पड़ता।पुलिस को अपना काम करना था सो इंस्पेक्टर उर्मी का बयान लेने उसके घर आ गये, पुलिस को देख कस्बे के काफी लोगो का जमावड़ा लग गया,सबको उर्मी के बयान की उत्सुकता थी।
सागर को पता चला तो वह भी उर्मी के घर की ओर दौड़ लिया।इंस्पेक्टर उर्मी से आत्महत्या क्यों करना चाहती थी प्रश्न पूछ रहे थे,उर्मी चुपचाप लेटी लेटी निर्विकार भाव से शून्य में निहार रही थी।उर्मी का चेहरा बिल्कुल ही भावशून्य था,गुमसुम उर्मी को मानो कुछ सुनाई ही नही दे रहा था।
इंस्पेक्टर समझा रहा था बेटा कुछ तो बताना पड़ेगा।कोई ना कोई तो है जिसके कारण तुम्हारा ये हाल हुआ है।एक बार बोलो तो बेटी।झटपटाता सा सागर एक दम उर्मी के घर में घुसता हुआ आया उसने इंस्पेक्टर की बात सुनी तो बोला सर ये नही बोलेगी मर जायेगी, सबकुछ सहन करेगी पर बोलेगी नही।
आप जानना चाहते है ना कि उर्मी की इस हालत का जिम्मेदार कौन है मैं बताता हूं सर इस सबका जिम्मेदार मैं हूँ साहब मैं।मैं ही अपनी उर्मी को छोड़ गया था,अपनी कायरता के कारण।मुझे सजा दीजिये साहब।इधर सागर ने उर्मी को अपना कहा तो उधर उर्मी भी फफक पड़ी।
आज सागर ने अपनी उर्मी को अपने मे समेट जो लिया था।
बालेश्वर गुप्ता, पुणे
मौलिक एवं अप्रकाशित
( गोवा में ही होटल के कमरे में लिखी गयी कहानी)
#आत्मग्लानि