लौट आओ अपराजिता (भाग 3) – डॉ. पारुल अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

दूसरे भाग में आपने पढ़ा कैसे मध्यमवर्गीय परिवार की सुंदर और संस्कारी अपराजिता अमीर घराने के बिगड़े बेटे कार्तिक की पत्नी बन जाती है। अब आगे….

अभी तक सब कुछ देखने में बहुत सुंदर लग रहा था। मनोहर लाल जी बहुत प्रसन्न थे। कार्तिक और अपराजिता की सुंदर जोड़ी पूरे खानदान में ही नहीं शहर में भी चर्चा का विषय थी। अपराजिता का निर्दोष सौंदर्य कार्तिक को बांधने में कुछ हद तक सफल हो गया था। विवाह के बाद के मधु यामिनी के पल बहुत ही खूबसूरती से बीत रहे थे पर किसी को भी ये नहीं पता था कि कार्तिक के दिमाग में क्या चल रहा है।

विवाह के 2 माह ही बीते थे कि एक दिन सुबह का निकला कार्तिक देर रात तक वापिस ही नहीं आया। किसी को कुछ भी समझ नहीं आया। सब जगह फोन मिलाए गए,कार्तिक का मोबाइल भी नेटवर्क एरिया से बाहर बता रहा था। इतने बड़े अमीर घराने के इकलौते वारिस का इस तरह से गायब होना चर्चा का विषय था। गुत्थी कुछ और उलझती इससे पहले ही मनोहर लाल जी को कार्तिक के अकाउंट में लाखों रुपए के ट्रांसफर होने की जानकारी मिली।

वो कुछ करते इस पहले ही एक अनजाने नंबर से उनको फोन आया। फोन उठाने पर वो आवाज़ कार्तिक की थी जो अपना देश छोड़कर किसी अनजाने देश जा रहा था। उसने साफ-साफ शब्दों में बोला था कि मैं बंधकर रहने वालों में से नहीं हूं। मैं ये शादी, सात जन्म जैसे बंधनों में भरोसा नहीं रखता।

अभी मेरे को पूरी दुनिया देखनी है। मेरे लिए अपराजिता सिर्फ मेरी योजना का हिस्सा थी।मैं तो बस इंतजार में था कि किसी तरह मेरे अकाउंट में सारा पैसा ट्रांसफर हो जाये और फिर मैं आपके चंगुल से निकल जाऊं। शादी कराकर आपने मेरी राह आसान कर दी। इस शादी के दो महीनों में आपको लगा कि मैं अपनी सभी आदतें और दोस्त छोड़ चुका हूं जो आपकी गलतफहमी थी।

मैं तो कब से आपके बैंक खातों की जानकारी जुटाना चाहता था पर कामयाब नहीं हो रहा था पर इन दो महीनों में आप अपनी बहू के कारण मुझ पर भी विश्वास करने लगे और मेरा काम बन गया। उसकी बात सुनकर मनोहर लाल जी और उनकी पत्नी तो जैसे जिंदा लाश बन गए।

अपराजिता को देखते ही उनको लगा कि जिंदगी का सबसे बड़ा अन्याय वो उस मासूम के साथ कर बैठे। वो अपने खून को पहचाने में ही इतनी बड़ी गलती कर गए। अपराजिता तो खुद जिंदगी के मज़ाक को नहीं समझ पा रही थी। आज उसकी जिंदगी का पहला प्यार उसका सहचर अकारण ही उसको धोखा देकर चला गया था।

उसके मां-बाप आए थे वो उसकी हालत देखकर उसको अपने साथ ले जाना चाहते थे पर हारना तो उसने सीखा ही नहीं था। उसने बहुत सोचा फिर अपने ससुर की आंखों में उमड़ती हुई बेचारगी और सास की शून्य में झांकती आंखों ने उसे एक निर्णय लेने पर मजबूर कर दिया। उसने बहुत शांत भाव से अपने मां-पिता से बोला कि मैं तो शादी ही नहीं करना चाहती थी पर आप लोगों की ज़िद के आगे में मजबूर हो गई थी।

अब मैं अपने निर्णय खुद लूंगी, मैं कही नहीं जाऊंगी और अपनी आगे की पढ़ाई भी यहीं रहकर पूरी करूंगी। ये कहकर वो वहां से चली गई और जुट गई प्रशासनिक सेवा की पढ़ाई करने। उसने दिन-रात एक कर दिए। आखिर उसकी मेहनत सफल हुई और एक साल के कड़े संघर्ष के बाद वो प्रशासनिक अधिकारी बन ही गई।

उसकी पहली नियुक्ति हुई बनारस में। जहां विदेशी सैलानी काफी संख्या में आते हैं। वहां जाने से पहले जब वो सास- ससुर का आर्शीवाद लेने आई तो ससुर ने तो हाथ जोड़कर उससे अपने अनजाने में लिए अन्याय के लिए दोबारा माफी मांगी और सास भी बिलख-बिलख कर रोने लगी तब उसने बहुत ही विनर्मता से उनको कहा मेरे साथ आप लोगों ने कोई अन्याय नहीं किया, ये तो शायद होना ही था और अब आने वाला वक्त ही मेरे साथ इंसाफ करेगा। साथ-साथ ही उसने चलते हुए अपने से वादा किया कि वो कहीं से भी उनके बेटे को वापस उनके कदमों में लाने की पूरी कोशिश करेगी।

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लौट आओ अपराजिता (भाग 2)

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डॉ. पारुल अग्रवाल,

नोएडा

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