बेघर – सीमा प्रियदर्शिनी सहाय : hindi stories with moral

hindi stories with moral : सुबह-सुबह मैं अपने किचन गार्डन में पौधों में पानी दे रही थी तभी मोबाइल बजने लगा।

मैं जल्दी से हाथ धोकर अपने रूम में आई और मोबाइल उठा लिया।

शिवनाथ अंकल का फोन था। मैंने फोन उठाया 

“अंकल नमस्ते ,कैसे हैं ?”

“नमस्ते बेटा…!, वह बोलते हुए रुक गए।

मैं ने पूछा

“क्या बात है अंकल.. आप कुछ कह रहे थे।”

“बेटा तुमसे कुछ बात करनी है ..मेघा तुम फ्री हो?”

“जी अंकल बोलिए ना !”मैंने कहा।

“बेटा ,तुम्हारे पास कोई मकान खाली है। मुझे किराए पर घर चाहिए।”

“यह आप क्या कह रहे हैं अंकल !आपको किराए का मकान चाहिए।” मैं ने आश्चर्य से कहा।

“हां बेटा मैंने अपना घर बेच दिया। उन्होंने लंबी सांस लेकर कहा… क्या करता तुम्हारी चाची जिंदगी और मौत से जूझ रही है।

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 उन्हें बचाने के लिए तो मैं अपने अंतिम सांस तक लडूंगा। चाहे उसके लिए मुझे अपने आप को ही बेचना पड़े, घर क्या है?”

“हां चाचा अंकल जी आपने बिल्कुल सही किया।मेरे पास घर खाली है।”

“ठीक है मैं आज ही सामान रखवा देता हूं।”

“अंकल, आंटी को  क्या हुआ है?”

“ क्या बताऊं मेघा,11 महीने से अस्पताल के चक्कर ही काट रहा हूँ। 

अब जाकर पता चला है कि उन्हें ब्रेन में कैंसर है।वह भी लास्ट स्टेज का।तत्काल ऑपरेशन की आवश्यकता है।

तुम्हें तो पता है मेरी माली हालत क्या है। मेरे सारे फिक्स्ड डिपॉजिट ,सारे रकम खर्च हो गए सिवाय घर के.. वह घर भी आज मैंने बेच दिया।

 मेघा वही तुम्हारे नीचे वाले किराए के मकान के बारे में पूछने के लिए फोन किया था।” अंकल ने थोड़ा रुकरुककर सारी बात बता दिया।

“जी अंकल अभी मकान खाली ही है। आप ले लीजिए।”

“भगवान करे तुम्हें हर खुशियां मिल जाए। मैं आज ही समान लेकर तुम्हारे घर भिजवाता हूं ।वैसे ब्रोकर ने मुझे एक हफ्ते का समय तो दिया है। पर जो काम जल्दी हो सकता है वह जल्दी करके खत्म कर देता हूं।

तुम्हारी चाची अस्पताल से लौट कर आएगी तो कम से कम कोई ठिकाना तो रहेगा ना..!

मेघा बेटी बहुत बहुत धन्यवाद।”

“यह आप क्या कह रहे हैं अंकल.. ऐसा मत बोलिए।”

शिवनाथ अंकल ने फोन रख दिया।

शिवनाथ अंकल मेरे पापा के दोस्त थे।

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मेरा बचपन बनारस में बीता जहां पापा और शिवनाथ अंकल एक साथ एक बैंक में काम करते थे।

लंबी नौकरी के कार्य काल में इधर-उधर ट्रांसफर होने के बाद शिवनाथ अंकल को मिर्जापुर बहुत ही ज्यादा पसंद आ गया था।

उन्होंने वहीं जमीन लेकर अपना एक सुंदर सा आशियाना बना लिया था।

दूर होने के बाद भी पापा और शिवनाथ अंकल के बीच के दोस्ती और रिश्ते में कोई कमी नहीं आई थी। जब भी छुट्टी होती थी शिवनाथ अंकल हमारे यहां आते या फिर पापा उनके पास जाते।

मेरे बड़े होने पर शिवनाथ अंकल पापा से कहते 

“देखना रितु, तुम्हारी बिटिया को मैं मिर्जापुर ही ले जाऊंगा। मैं अभी से एक अच्छा लड़का देखने लगा हूं।”

“अगर जो वह मिर्जापुर का नहीं हुआ तो?”पापा मजाक करते तो शिवनाथ अंकल कहते 

“मैं ना वहां पर जमीन खरीदवा कर उसके लिए घर बना दूंगा लेकिन हमारी मेघा आएगी तो मिर्जापुर ही।”

हंसी मजाक का यह दौर अचानक ही सच हो गया जब विद्युत को पापा ने  मेरे वर के रुप में खोज लिया था।

वह मिर्जापुर में ही काम करते थे।मेरे ससुर ने अपने जीवन काल में ही अपनी संपत्ति का बटवारा कर  दिया था। 

धीरे-धीरे अपने हिस्से की जमीन में विद्युत ने किराए के मकान बनवाने शुरू किया और उन्हें किराए पर देना शुरू कर दिया। जिससे साइड से इनकम आती रहे।

शिवनाथ अंकल का घर मेरे ससुराल से थोड़ी दूर पर था।बहुत ही सुंदर आशियाना उन्होंने बनवाया था।

कभी भी मैं यह नहीं सोचा था कि एक दिन ऐसा आएगा कि शिवनाथ अंकल मेरे घर किराएदार बनकर आ जाएंगे।

तभी ट्रक की आवाज से मेरे विचार टूटे ।

मैं बाहर निकल कर देखी शिवनाथ अंकल का सामान आ चुका था।

“आईए अंकल!,मैं चाय बनाती हूं।”

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“ ठीक है बेटा !”

मूवर्स एंड पैकर्स वाले सामान अरेंज कर रहे थे ।मैं अंकल के लिए चाय बना रही थी।

“ पता नहीं बिटिया तुम्हारी चाची वापस आएगी भी या नहीं ।मैंने तो अपना सब कुछ लुटा दिया। अब तो कुछ भी नहीं है मेरे पास..एक छत रखा था अपने लिए.. वह भी…बिक गया!” शिवनाथ अंकल रो रहे थे।

शिवनाथ अंकल ने अपने दोनों बच्चों में पहले ही संपत्ति का बंटवारा कर दे दिया था।

यह घर उनके और उनकी पत्नी के नाम था आज वह भी नहीं रहा।

“अंकल आप चिंता मत कीजिए ,आंटी वापस जरूर आएंगी।”

अंकल के दोनों बेटे बाहर नौकरी करते थे। उन्हें पढ़ाने लिखाने के साथ अंकल ने और भी प्रॉपर्टी खरीदा था।

वह उनके दोनों बच्चों के नाम कर दिया था।

सबकुछ ठीक चल रहा था लेकिन आंटी  अचानक बीमार होती चली गईं.. और उनके इलाज में पैसे फूंकते चले गए।



लगभग 6 महीने बीत चुके थे। सुबह-सुबह मैं गहरी नींद सो रही थी। शिवनाथ अंकल ने सुबह-सुबह फोन किया

“ मेघा, तुम्हारी चाची नहीं रही!”

 “क्या??” मेरी आंखों से आंसू बह निकले।

“आंटी नहीं रही! मैं जल्दी से कंबल से बाहर निकली ।

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थोड़ी देर में सफेद कफन में लिपटा हुआ आंटी का शव मेरे घर के नीचे दलान में रखा हुआ था।

शिवनाथ अंकल बच्चों की तरह रो रहे थे और उनके दोनों बच्चे भी।

अंत्येष्टि के बाद उनके दोनों बेटे उनके पास आकर बैठे और उनसे कहा 

“पापा अब आपको अकेले रहने की जरूरत नहीं है। अब आपके पास बहाने भी नहीं है। अब आप हमारे साथ चलिएगा।”

“अब तो मैं बेघर हो चुका हूं  बेटा !”

“नहीं आप बेघर नहीं है आपके दोनों दो-दो बेटे  हैं।”

“अंकल, आपकी एक बिटिया भी है जिससे मिलने आप कहां नहीं आते थे।  आपको मेरी कसम अपने आप को बेघर मत कहिए।

यह घर  भी आपका ही है।आपकी बिटिया का।”

उन सबके साथ में भी रोने लगी थी।

“हां बेटा मैं कहां बेघर हूं ..!मेरे पास तो तीन तीन घर हैं..!”शिवनाथ अंकल रोते हुए भी मुस्कुराने लगे थे।

प्रेषिका–सीमा प्रियदर्शिनी सहाय

#घर

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