मुझे नेग नहीं चाहिए – संध्या त्रिपाठी : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : वाह ….बस अब दिवाली के बाद दीदी की शादी …..मजा आ जाएगा ….मां.. मैं तो जूते चुराने के नेग में पूरे.. ₹21000 लूंगी जीजा जी से….. सुहानी ने मन ही मन ना जाने कितने सपने सजाए थे अपनी बड़ी दीदी रूहानी के शादी के लिए……।

और हो भी क्यों ना घर की पहली शादी जो थी…. सभी लोग बहुत ज्यादा उत्साहित थे…।

हां भाई तुझे जो मांगना है मांग लेना… वो भी तो जाने ….मेरी साली साहिबा कितनी लालची हैं…..! ये तो तेरे और तेरे जीजा जी के बीच की बात है….. रूहानी… मां शीतल के कुछ कहने से पहले ही बोल पड़ी….।

देखो ना माँ…. रूहानी दीदी अभी से अपने पतिदेव का पक्ष ले रही हैं ….अरे मुझे और भी तो अपने सभी कज़न में पैसे बांटने होंगे ना

मीठी तीखी नोकझोंक के बीच कब महीने भर का समय बीत गया पता ही नहीं चला….।

वह पल आ ही गया …जब घर में बारात आ गई…. बड़े आकर्षक ढंग से बारात लाई गई थी…. घराती और बाराती दोनों पक्षों को देखकर लग रहा था किसी पैसे वाले रहीस की शादी है….।

      मंडप में सारे संस्कार धीरे-धीरे विधिवत हो रहे थे…. इसी बीच धीरे से सुहानी और सब बहनें मिलकर किसी तरह दूल्हे राजा के जूते छिपा लिए…. जब मंडप से दूल्हे राजा उठने लगे… तो सुहानी ने रख दी मांग …₹21000 की…. जूता चुराई के नेग में….!

दूल्हा ( रितेश ) और उनके भाई लोगों ने साफ इंकार कर दिया नेग देने से…. उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि आप लोग जूते ही रख लें …..और ठहाका मारकर सारे लड़के हंसते रहे….. यह सब देख कर सुहानी और बहनें थोड़ी मायूस होती दिख रही थीं…।

हालाँकि सुहानी ने कई दफे अपने द्वारा मांगी गई नेग की रकम में कमी करने की बात भी कही….. पर वो तो जैसे तैयार ही नहीं थे …. लग रहा था मानो उन्होंने इसके लिए पहले से ही प्लानिंग की हो….।

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एक समय के बाद धीरे-धीरे महिलाओं में कानाफूसी होने लगी ….बाप रे बड़े अकड़ स्वभाव के हैं..कंजूस भी लग रहे हैं…. पर लड़के वालों ने तो जैसे पहले से ही ठान ली थी ….नहीं तो नहीं…. बिल्कुल नहीं.

दुल्हन बनी बैठी रूहानी भी मन ही मन सोच रही थी … जब पहले से बात तय थी… तो फिर नेग के पैसे दे क्यों नहीं रहे हैं… ? फोन पर रूहानी ने होने वाले पति रितेश को बता दिया था कि…. सुहानी जूते चुराने के रस्म को लेकर बहुत उत्साहित है….. फिर ये लोग ऐसा क्यों कर रहे हैं….?

मामला उलझता देख पहले सुहानी के भाइयों ने दखल देकर मामला शांत कराने की कोशिश की… पर मामला शांत होने के बजाय और उलझता ही गया ……इसी बीच रितेश ने अपनी बड़ी दीदी को बुलाया….

अब लग रहा था जैसे… दीदी की मध्यस्था से मामला शांत हो जाएगा और विधिवत रस्म पूरी हो जाएगी….पर दीदी ने भी ऐसी कोई पहल नहीं की …जिससे मामला शांत हो और सुचारू रूप से कार्यक्रम संपन्न हो सके…… बल्कि उन्होंने तो कुछ ऐसे शब्दों का प्रयोग कर आग में घी डालने का ही काम किया….।

रूहानी जो अब तक दुल्हन बैठी चुपचाप सारे वाक्या देख रही थी… धीरे से रितेश से बोली… अब क्या हो गया ….? पहले से बात तय थी ना… मैंने तुम्हें बोला था ना ….जब सब कुछ तय था… तो फिर ये सब क्यों…..??

   रूहानी के बिगड़े मूड को देखते हुए रितेश की दीदी ने बेरुखी से पैसे निकाले .. और फेंकने वाले अंदाज में सुहानी को देते हुए बोली ….ये लो रख लो पैसे….!

सुहानी इस घटना से काफी डर गई थी… सहम गई थी ….उसने रोते हुए बस इतना ही कहा…. मुझे जूते चुराने के नेग वाले पैसे नहीं चाहिए…. और रोने लगी …!

कुछ देर पहले तक जो सिर्फ हंसी खुशी का माहौल था …थोड़ी सी नासमझी और अकड़ के चलते इतना बोझिल माहौल बन गया…।

खैर….. धीरे-धीरे सारी रस्में होती रहीं…. सुहानी में अब वो उत्साह नहीं था.. उसने नेग के सारे पैसे अपनी बहनों में बांट दिए थे…. वो अंदर से काफी डर गई थी ….सोच रही थी कहीं मेरे कारण दीदी जीजाजी में अनबन ना हो जाए….।

बात आई ….गई ….खत्म हो गई…. एक दिन मौका देख कर रूहानी ने रितेश से पूछ ही लिया…..सच-सच बताइएगा …..जब हम दोनों के बीच बात तय हो गई थी कि…. सुहानी को जूते चुराई के नेग मे… ₹21000 देने हैं…

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और यार आप तो देने में सक्षम भी हैं तो फिर आपने ऐसा क्यों किया था…?

रितेश ने बड़े सहज रूप से जवाब दिया … अरे यार मैं तो पैसे देने को तैयार था …21 क्या 51 हजार भी देने में सक्षम हूं….. बात वो नहीं थी रूहानी…

मेरी शादी में दीदी ही मुख्य भूमिका निभा रही थीं… सारा लेन देन कपड़े-लत्ते वगैरह-वगैरह….

ज्यादातर चीजें वही संभाली हुई थीं…..और उन्होंने साफ-साफ कहा था … रीति रिवाज ….लेनदेन… के समय में मैं मौजूद रहूंगी …कब क्या करना है मैं संभाल लूंगी ….तुम्हें कुछ करने की आवश्यकता नहीं है ….!

और सच में रूहानी मेरे शेरवानी में पैकेट भी नहीं था…. सारे पैसे दीदी ने ही रखे थे ….शुरू शुरू में तो ये सब हंसी मजाक ही लग रहा था ….

और क्या है ना रूहानी …… शायद दीदी ने भी यह नहीं सोचा था कि मजाक इतना सीरियस बन जाएगा….

बस इसीलिए यार…. शादी में सबकी सुननी पड़ती है….यहां तक की दोस्तों की भी……पतिदेव के इस जवाब से रूहानी बिल्कुल संतुष्ट नहीं थी….

पर जवाब में रूहानी ने सिर्फ इतना ही कहा……पतिदेव शादी की ये छोटी-छोटी …..प्यारी प्यारी …. रस्में बहुत मायने रखती हैं ……

” पूरी जिंदगी भर ये रस्में मुस्कुराने की वजह बन जाती हैं …..”

भरसक प्रयास करना चाहिए इन रस्मों में किसी की नजर ना लगे…. किसी की भी….चाहे वह कितना भी अपना क्यों ना हो….।

” यादें मुस्कुराने की वजह बननी चाहिए ना कि आत्मग्लानि की “….।

और दो नए-नए परिवारों के संबंधों के मध्य …प्यार विश्वास… अपनापन …खुशी…का माहौल निर्मित हो सके….! और हमारे संबंध लोगों के लिए प्रेरणा बन सकें…!

साथियों …कभी-कभी शादी ब्याह में ऐसी घटनाएं हो जाती हैं …जिसमें दोनों पक्षों को विवेक बुद्धि का परिचय देते हुए मामला को शांत कर माहौल को खुशनुमा बनाए रखने की कोशिश करनी चाहिए….!

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  आजकल लड़के (जीजाजी) और लड़कियों ( सालियों) दोनों पक्षों में इगो प्रॉब्लम देखने को मिलता है…

इसे दरकिनार कर रिश्ते की माधुर्यता बनाए रखनी चाहिए….।

( स्वरचित मौलिक एवं सर्वाधिकार  सुरक्षित रचना )

श्रीमती संध्या त्रिपाठी

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