Moral stories in hindi : नेहा जो आज काफी खुश थी करण था शादी का दिन, वो दिन आ ही गया जब नेहा और नीरव एक होने वाले थे, नीरव जो भारतीय सेना में सैनिक था एवं काफी काम दिनों में नेहा को अपना बना चुका था शादी माता पिता की सहमती से ही हो रही थी और नेहा के माता पिता काफी खुश भी थे किंतु वो ये नहीं जानते थे कि इस खुशी के पीछे कितना बड़ा धोखा छिपा हुआ हे दरसल नीरव एवं उसके घर वाले दहेज के लोभी थे शादी में सब कुछ मिलने के बाद भी उनका लालच ख़तम ना हुआ एवं शादी के दूसरे दिन से ही नेहा को को सामना करना पड़ा।
जो सोचा परिस्थिती बिल्कुल ही विपरीत होती दिख रही थी सांस, ननद, जेठ, जेठानी और साथ में पति जिसे वो अपना सब कुछ मान चुकी थी वो भी ओसे तंग करने में कोई कसार नहीं छोड़ रहा था। इसी बीच नीरव को अपनी नौकरी पर फिर से जाना पड़ा और यहां नेहा का बुरा हाल था कुछ समय वहां नीरव के साथ ओस्की पोस्टिंग वाली जगह पर भी साथ जाती रही किंतु अकेले रहकर भी दुरिया लगतार बढ़ती जा रही थी,
इसी तरह चार साल कब बीत गए पता नहीं लगा, अब लड़ाई का करण बच्चा था नेहा चाहती थी कि बच्चा तभी आए जब हम दोनों के बीच सब कुछ ठीक चलता रहे किंतु नीरव के द्वारे उसे लगता है मानसिक उपहार दी जा रही थी इसी बीच नेहा ने एक सुंदर सी बेटी को जन्म दिया किंतु बची वो तो आज भी इस समाज के लिए कलंक ही समझी जाती है,
आने के बाद हालात काई गुना खराब हो चुके थे ससुराल वालों की गालियां सुनना अब तो रोज का ही काम था,नेहा अपने मायके में आ कर रहने लगी नीरव भी वहा आता जाता किंतु झगड़ा ख़तम होने का नाम ही नहीं ले रहा था फिर नेहा को कहीं से खबर लगती है कि नीरव के घर वाले ओस्की दूसरी शादी करवाने के लिए लड़किया ढूंढ रहे हे नेहा पर तो मानो दुखो का पहाड़ ही टूट गया था,जब उसने नीरव से बात कर ये सब पूछा तो जवाब सुन कर दंग रह गई नीरव का जवाब था कि हा दूसरा क्या दस शादिया करना पड़ा तो वो भी करूंगा,
ये सुनकर नेहा के मन में सिर्फ यही ख्याल आया कि”तुम पर विश्वास करना मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी गलती थी”नेहा का स्वास्थ्य लगतर गिर रहा था ओसे काई बिमारियो ने घर लिया था,नेहा की बेटी अब चार साल की हो चुकी थी एवं स्कूल में जाने लगी थी लेकिन वो अपने पिता से परेशान थी नेहा एवं उसकी बेटी का पालन पोषण नेहा के परिवार द्वारा किया जा रहा था तभी एक और खबर नेहा और उसके परिवार को हिला देती हे
नीरव रिटायरमेंट ले कर आ चूका अगले दिन ही नोटिस नेहा के घर भेज कर वो साबित करना चाह रहा था कि अब मुझे तुम्हारी कोई ज़रूरत नहीं, नेहा को समझ आ चुका था अब मुझे लड़ना होगा जिस शादी के बंधन को मैंने दस साल दे दिए उसके बाद भी अगर मुझे ये मिल रहा है तो अब मैं अपनी बेटी के लिए लड़ुगी एवं कुछ दिनों में ही नेहा ने पारिवारिक न्यायलय में वादा दायर कर दिया किंतु वो गुजरे हुए दस साल और बेटी का बच बचपन तो शायद कभी भी बहुत मुश्किल ही होगा लेकिन पुरुषवादी समाज में पुरुषो की संतान महिला को इतना अधिक तोड़ देती है जिसके बाद शायद ही फिर कभी वो किसी पुरुष पर विश्वास कर सके।
डॉ.फरीन खान उज्जैन (म.प्र.)