Moral stories in hindi : बहुत देर से कोई उसका पीछा कर रहा था,शालिनी को जब ऐसा महसूस हुआ तो वो पीछे पलटी,एक सुंदर,संभ्रांत महिला जो उसकी ही उम्र की थी शायद पर गजब का आत्मविश्वास लिए,उसके पीछे पीछे लगी हुई थी,
उसने,शालिनी के पलटते ही कहा,तुम..मेरा मतलब है आप शालू हो?शालिनी…आय मीन!
शालिनी आश्चर्य से उसे देखने लगी,कितने समय बाद किसी ने उसे शालू पुकारा था, आप कौन??वो दिमाग पर जोर देती हुई बोली।
मैं मिनी..मीनाक्षी वशिष्ठ..कॉलेज में साथ साथ थे हम।
ओह माय गॉड!तू मिनी है,शालिनी चहकी और दोनो गले लग गई।
कहां रहती है?कितनी बदल गई है तू?मिनी उससे पूछ रही थी।
पास ही है मेरा घर…घर की बात सुनते ही वो उदास हो गई थी,कुछ सहम सी गई।
चल! तेरे घर चलकर बात करते हैं,मिनी ने कहा तो शालिनी थोड़ी संकुचित हो गई जिसकी वजह मिनी को उसके घर जाकर पता चल गई।
शालिनी की सास बहुत स्ट्रिक्ट महिला थीं,उन्हें शायद शालिनी के किसी फ्रेंड का आना जाना पसंद न था।मिनी ने सोचा,कई बूढ़े लोग ऐसे होते हैं,मुझे फर्क नहीं पड़ता,पर जब शालिनी के हसबैंड ने भी मिनी से औपचारिकता से बात की,मिनी को ये भांपते देर न लगी कि यहां सभी शालिनी की इज्जत नहीं करते।
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अकेले होते ही,वो शालिनी से बोली,ये कैसे माहौल में रहती है तू?जहां तक मुझे याद है तू बहुत बोल्ड हुआ करती थी,हर डिबेट प्रतियोगिता में कॉलेज के लिए शील्ड जीतने वाली लड़की,अपने घर में इतनी दबी हुई,सहमी हुई??किसी बात पर नाराज हैं ये लोग?
नहीं…नहीं तो…लेकिन मुझसे खुश नहीं हैं..शायद शादी में इनकी एक्सपेक्टेशन के अनुसार खर्च न किया हो मेरे पापा ने।
उस बात को हुए अरसा हो गया,अब तुम अपनी बेटी की शादी करने वाले हो…कमाल है!तू नौकरी भी करती थी,उसका क्या?कर लेती अभी तक लाखो रुपए कमा कर मुंह पर मारती इन लालचियों के।
मुझे नौकरी नहीं करने देते ये लोग…वो सिर झुका कर बोली।
ये क्या एटीट्यूड है यार!विनम्र होना अच्छी बात है पर इस तरह सबकी गुलामी करना,ये तो कोई बात नहीं,अपने पति,परिवार,बच्चों के पीछे तू तो खुद को भूल ही गई।
अभी भी देर नहीं हुई है शालू!अपनी कद्र खुद ही करनी पड़ती है,ये दुनिया उन्हीं को दबाती है जो अपनी बात खुल कर रख नहीं पाते हैं,मेरी बात गांठ बांध ले आज से,अपने अधिकारों के लिए जाग्रत हो बहन।
तू ठीक कहती है मिनी..शालिनी को लगा,आज कोई अपना सा कितने समय बाद मिला है,मेरे पास नौकरी के आज भी कई ऑफर हैं और अब मै उन्हें ट्राई करूंगी।फिर देखती हूं मुझे कौन रोकता है?ये लोग मेरी इतनी सेवा करने को,मेरी कमजोरी हो समझते रहे,अब वो वक्त आ गया है जब मै इन्हें समझा दूं कि मेरी कोमलता,मेरी कमजोरी नहीं है,बस मै अपनी पर आई ही नहीं थी आजतक पर अब इन्हें समझ लेना चाहिए कि घर पर रहने वाली सीधी सादी औरत,अगर बाहर निकल कर अपना हुनर दिखाती है तो क्या कुछ नहीं कर सकती।
डॉ संगीता अग्रवाल
#बच्चों और परिवार के पीछे वो खुद को भूल ही गई
वैशाली,गाजियाबाद