रिश्तों की ऑक्सीजन – अर्चना सक्सेना  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : कमरे में चाय नाश्ते के साथ प्रवेश करती निर्मला के कानों में उसकी पुत्री की सहेली के कुछ वाक्य पड़े तो वह ठिठककर बाहर ही रुक गयी। रुचिका कह रही थी-

“तू पागल है सोनाली, चुपचाप सुनती क्यों है? पलटकर जवाब मुँहपर मारा कर अपनी सास के। और वैसे नीलेश तो प्यार करता है न तुझे?”

“अरे वो तो मुझे बहुत प्यार करते हैं, वैसे प्यार तो ससुराल में सभी करते हैं मुझसे, बस मम्मीजी की आदत है हर बात में टोकाटाकी करने की। जब अच्छे मूड में होती हैं तो ये भी खुद ही कहती हैं कि बेटी मेरी बातों का बुरा मत माना कर, मैं तो तुझे सबकुछ सिखाना चाहती हूँ इसलिये कभी कभी ज्यादा ही बोल जाती हूँ।”

“अरे ये क्या बात हुई? कितने सपने होते हैं शादी को लेकर हमारे! तो क्या शादी के बाद हमें अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीने का भी हक नहीं है? उनका ज्यादा बोलना अगर उनकी बहू को बुरा लगता है तो नहीं बोलें न इतना ज्यादा! तू नीलेश को बोल अलग होने के लिये। अच्छी नौकरी करता है, अलग होकर आराम से रहो तुम दोनों।”

इसके आगे निर्मला सुन नहीं सकीं और कमरे में प्रवेश करते हुए बोलीं-

“ये क्या उल्टी पट्टी पढ़ा रही हो सोनाली को तुम रुचिका? अभी बस छह महीने हुये हैं इसके विवाह को और अभी से अलग होने के लिये उकसा रही हो? पता भी है परिवार के बीच रहने का सुख ही अलग होता है! दो महीने बाद तुम्हारी भी शादी है, ऐसी ही सोच लेकर अपनी ससुराल जाओगी?”

“अरे आंटी, आपने हमारी बातें सुन लीं? वैसे बताइये मैं गलत क्या कह रही हूँ? मैं तो हरगिज बरदाश्त नहीं कर सकती ऐसी टोकाटाकी। सोनाली भी क्यों करे?आंटी मैं तो पहले से सोच कर बैठी हूँ, जैसे ही पहला मौका हाथ आयेगा मोहित को लेकर अलग हो जाऊँगी।”

“मोहित से ऐसा कहा है तुमने?”

“कैसी बातें कर रही हैं आप आंटी, अभी से कह दूँगी तो कहीं शादी ही खतरे में न पड़ जाये! शादी हो तो जाने दीजिए पहले, नहीं नहीं इतनी भी जल्दी नहीं है मुझे।”

कहते हुए रुचिका जोर से हँसी फिर आगे बोली-

“बुरा मत मानियेगा आंटी मगर मैं तो आधुनिक लड़की हूँ, साफ कह रही हूँ आज आपके आगे कि शादी से पहले सब लड़के माँ की ही कठपुतली होते हैं, धीरे धीरे ही तो बीवी के इशारों पर नाचना सीखते हैं, मैं भी अपने हिसाब से नचा लूँगी मोहित को इतना तो विश्वास है खुद पर।”

“अगर ये आधुनिकता है तो बेटा मैं तो पिछड़ी ही भली। सोनाली को भी मैं ये शिक्षा तो ग्रहण नहीं करने दूँगी तुमसे। मैं बिल्कुल नहीं कहती कि लड़कियों को ससुराल में किसी तरह का अन्याय या अत्याचार सहना चाहिए, लेकिन अन्याय, अत्याचार और अपनी ही भलाई के लिए कही गयी बातों के बीच अंतर करना तो आना ही चाहिए। बहुयें भी छोटी छोटी बातों का बतंगड़ न बनायें कम से कम इतनी समझदारी और सहनशीलता तो होनी ही चाहिए उनमें। दोनों ही पक्षों को एकदूसरे को समझने में थोड़ा समय तो लगता है, रिश्तों को उतना समय तो देना ही चाहिए। और बेटा तुमसे भी यही कहूँगी कि अति आधुनिकता के चक्कर में पड़कर अपने पैरों पर स्वयं ही कुल्हाड़ी मत मार लेना। कोई भी ऐसा फैसला मत करना जिसपर तुम्हें जीवन में कभी भी शर्मिंदा होना पड़े।”

“आंटी मेरी चिंता मत करिए आप, अपनी सोनाली पर ध्यान दीजिए, कितना मुरझा गयी है ये, आपको नहीं लगता?”

चिढ़कर कहा रुचिका ने तो निर्मला ने उस वक्त वहाँ से चले जाना ही उचित समझा।

रुचिका के जाने के बाद निर्मला ने सोनाली को अपने पास बैठाकर प्यार से उससे पूछकर सारा माजरा समझने का प्रयास किया। कोई खास बात थी ही नहीं। सोनाली की सास को स्वयं हर काम स्वच्छता और सुघड़ता से करने की आदत थी, बस यही अपेक्षा उन्हें अपनी बहू से भी रहती थी। सोनाली नये माहौल में स्वयं को ढालने की चेष्टा तो कर रही थी परन्तु कभी कभी सासुमाँ का टोकना उसे बुरा लग जाता था और जिस सास की कोई शिकायत उसने कभी अपने मायकेवालों से तक नहीं की थी वही सहेली द्वारा ससुराल के सम्बन्ध में पूछने पर बातों बातों में उसको बता दी थी। लेकिन यदि निर्मला ने समझदारी नहीं दिखायी होती तो यही छोटी सी बात बतंगड़ बनकर सोनाली के ससुरालपक्ष से रिश्ते भी बिगाड़ सकती थी क्योंकि रुचिका से बात करने के पश्चात सोनाली खुद को बेचारी और ससुरालपक्ष द्वारा सतायी हुयी समझ बैठी थी। खैर ये हुई कि अपनी माँ द्वारा समझाने पर उसकी समझ में बात आ गयी थी और धीरे धीरे अपनी कमियाँ भी उसे साफ साफ नजर आने लगी थीं। उसने वापस ससुराल जाने से पूर्व निर्मला से वादा किया कि वह अपनी गृहस्थी में बेवजह छोटी छोटी बातों को तूल नहीं देगी और परिवार को यथासंभव जोड़कर रखेगी।

सालभर बाद सोनाली का अपने प्रथम प्रसव के लिये फिर से मायके आना हुआ। अब तक ससुराल के माहौल में वह ठीक प्रकार से स्वयं को ढाल चुकी थी और बहुत खुश थी। गर्भावस्था के दौरान सासुमाँ ने उसका सगी माँ की तरह ध्यान रखा था। गर्भावस्था के कारण सोनाली रुचिका के विवाह में भी नहीं आ सकी थी। यहाँ आकर पता चला कि उसकी सहेली विवाह के पाँच महीने बाद ही सदा के लिये ससुराल से मायके लौट आयी है। उसने मोहित पर घर से अलग होने का दबाव बनाया था जिसे मोहित ने किसी सूरत में स्वीकार नहीं किया। तब वह धमकी देकर इस आस में मायके लौट आयी थी कि मोहित उसे मनाने उसके पीछे पीछे दौड़ा आयेगा लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ, उलटा उसने तलाक के कागजात भिजवा दिये थे। बहुत बड़ा धक्का लगा था रुचिका के अहंकार को और उसने स्वयं को घर में कैद कर लिया था। अपने अति आत्मविश्वास पर वह शर्मिंदा थी और किसी से मिलना जुलना तक नहीं चाहती थी।

सोनाली ने निर्मला के दोनों हाथ थामकर उसे धन्यवाद देते हुए कहा-

“थैंक्यू माँ, आपने मुझे सही राह दिखाकर कोई गलत कदम उठाने से रोक दिया नहीं तो शायद मेरा घर अगर नहीं भी टूटता लेकिन रिश्तों में कड़वाहट जरूर भर सकती थी, और रिश्तों की कड़वाहट से उपजी घुटन में न तो मैं खुलकर साँस ले पाती और न ही मेरे नीलेश और घर के बाकी सदस्य। फिर कहीं न कहीं उस दमघोंटू वातावरण की संड़ाध मेरे मायके तक भी पहुँच ही जाती। उसवक्त लगा भी था कि मेरी माँ होकर आप मेरे दोष गिना रही हैं और मेरी सास को सही ठहरा रही हैं लेकिन आपने समझदारी से मेरे रिश्तों में जो ऑक्सीजन उस समय भरी थी उसने मुझे हमेशा के लिए शर्मिंदा होने से बचा लिया। अब रुचिका को समझाने का मैं भी पूरा प्रयास करूँगी, अभी उसका तलाक हुआ नहीं है, शायद मेरी छोटी सी कोशिश से उसके टूटते रिश्ते भी सँभल पायें।”

निर्मला ने सोनाली के सिर पर ममता भरा हाथ फेरकर उसे गले से लगा लिया।

सच ही तो है, एक माँ की थोड़ी सी समझदारी जहाँ रिश्तों में ऑक्सीजन देकर ताजगी भर देती है वहीं एक गलत सीख बेटी का घर बरबाद करने में कोई कसर भी नहीं छोड़ती।

             अर्चना सक्सेना

              गाजियाबाद

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