अपनापन – किरण केशरे : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :  शाम पांच बजे ‌ऑफिस का कार्य पुरा कर सलोनी घर जाने की तैयारी कर ही रही थी की , अचानक ही बॉस ने अतिरिक्त कार्य सौंप दिया, उन फाइलों को निपटाते रात के साढ़े सात बजने को आ गए थे, वह सोच रही थी, नमन भी ऑफिस से छह बजे तक आ जाते हैं ,सास और ससुर जी की चिंता भी अलग होने लगी थी! शाम को सात बजे तक वो दोनों खाना खा लेते है। सासु माँ को घुटनों की समस्या , ब्लड प्रेशर है और ससुर जी को डाइबीटीज  !  ऑफिस से निकल कर , 

 उसने रिक्शा किया और घर के लिए निकल पड़ी!   रास्ते भर यही सोच रही थी,  माँजी और पिताजी ने कुछ खाया होगा या नही  ! नमन भी गुस्सा तो नही हो रहे होंगे  ? हालाँकि ऑफिस से उसने नमन को कॉल कर दिया था , की घर आने में थोड़ी देर हो जाएगी  ! 

लेकिन वह करती भी तो क्या  ? ऑफिस वर्क भी अर्जेंट था। इसी उधेड़बुन में घर आ गया था  । घड़ी आठ बजा रही थी। 

घर आई तो देखा, माँ पिताजी और नमन  टीवी पर मनपसंद हास्य  धारावाहिक देख रहे थे ,और घर का वातावरण सकरात्मक ही लग रहा था ! माँजी सलोनी को देखते ही बोली, आ गई बहु! बहुत देर हो गई आज  ? 

‘हाँ माँजी आज थोड़ा ज्यादा काम आ गया था, ऑफिस में’ ! जल्दी से इतना कहती हुई सलोनी हाथ मुँह धोकर रसोईघर में आ गई  थी ! पर !! 

रसोईघर में आकर उसने जो देखा,वह देखकर उसे सुखद आश्चर्य हुआ , डाइनिंग टेबल पर खाना बना हुआ रखा था। फुलके ,हरी तरकारी, दलिया, सलाद , पापड़..वही सब तो जो वह  शाम को अक्सर बनाती है, हल्का और सुपाच्य भोजन । 

अभी वह देख ही रही थी की, माँजी रसोई में आ गई थी, सलोनी अपराध बोध से बोली, माँजी मैं जल्दी ही आ जाती पर अचानक अतिरिक्त कार्य आ गया इसलिए… 

माँजी ने उसकी तरफ देखा, और फिर स्नेह से बोली, 

‘अरे तो क्या हुआ बहु, तुम तो हमेशा से ही घर और बाहर की जिम्मेदारी कुशलता से निभाती आई हो , ऐसे में कभी कभी ऐसा अवसर आ जाए तो, हमारा भी फर्ज बनता है की, 

तुम्हारी मेहनत और परेशानी को हम सब भी समझें’  ! 

तुम घर परिवार को सुचारु रूप से चलाने के लिए नमन के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल रही हो। हमारी हर सुविधा का ध्यान रखती हो,घर की साफ-सफाई और बर्तन साफ करने के लिए तुमने सहायिका रखी ही है ! 

तब कभी कभी ऐसा अवसर आ जाए तो , तुम्हारा इतना साथ तो दे सकते हैं ना ! माँजी की मुस्कुराहट बहुत भली लग रही थी सलोनी को । 

लेकिन माँजी आपने अकेले ही सब… ? सलोनी को उलझन हो रही थी  ! 

‘अरे नही ,नही ! बहु !! आज तुम्हारे

 ससुर जी ने तरकारी, सलाद की तैयारी की थी ,नमन ने आटा लगाया और दलिया का छोंक  दिया और मैंने गरमा-गरम  फुलके बनाए ; माँजी बड़ी सरलता से उसे बता रही थी की बहुत समय बाद रसोई में जाकर रोटी बनाना उन्हें बहुत अच्छा लगा । तुमने तो इन डेढ़ वर्षों में मेरी आदत ही बिगाड़ दी थी, माँजी ने प्यार से उलाहना दिया ! और सलोनी माँजी का ममत्व देखकर सोच रही थी ,की उसने कुछ  अच्छे पुण्य ही किये होंगे जो उसे इतना समझने वाले और प्रगतिशील सोच रखने वाले सास-ससुर और प्यार करने वाला नमन जैसा पति मिला ; अपनी किस्मत पर वह इठला उठी थी,उसने देखा रसोई के दरवाजे पर खड़े नमन उसकी और बड़े ही प्यार से एकटक देखे जा रहे थे और बनावटी गुस्से से कह रहे थेअब जल्दी खाना लगाओगी भी मेरे पेट में बड़े बड़े चूहें कूद रहे हैं  ! 

 और सलोनी की तन-मन की थकान नमन की शरारत भरी मुस्कुराहट से दूर होती जा रही थी  । 

    किरण केशरे 

#ममता

 

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