Moral Stories in Hindi : घर में आज खूब चहल-पहल है ।सौम्या की शादी हो रही है ।आज ही बारात आने वाली है ।घर रिश्ते दारो से भरा हुआ है ।सुना है वर भी हैंडसम और इंजीनियरिंग की पढ़ाई करके जाॅब कर रहा है ।अच्छी कम्पनी में है ।वर के पिता जी भी इन्जीनियर हैं ।माँ गृहिणी ।एक ही बार में उनहोंने सौम्या को पसंद कर लिया ।
वह भी बिना दान दहेज के ।कहाँ सौम्या के पिता एक साधारण स्कूल मास्टर और समधी इन्जीनियर ।सब लड़की का भाग्य है ।उन्होंने तो साफ कह दिया कि हमे दहेज में कुछ नहीं चाहिए ।आपकी बेटी ही सबसे बड़ी दहेज है ।बहुत खुश हो गये थे तब उसके माता-पिता ।रीति रिवाज निभाते शाम हो गई ।दूर से रोशनी और बाजे की आवाज सुनाई दी ।
नीचे बच्चों का शोर मचा ” अरे जल्दी चलो, जल्दी चलो, लगता है बारात आ गई ।दूल्हे की गाड़ी सब से पहले आ गई ।द्वार चार और परछन भी हो गई ।जयमाल पर दूल्हा मुस्कान बिखेर रहा।सहेलियां सौम्या के भाग्य पर जलने लगी थी ।सुबह होते सिन्दूर दान भी हो गई ।” अरे भई, जरा जल्दी विदा करने की कोशिश करें ” वर के पिता ने हांक लगाई ।
सौम्या का रो रो कर बुरा हाल था ।मम्मी पापा को छोड़ ही नहीं रही थी ।लेकिन विदा तो होना ही था।ससुराल में आरती से वधु का स्वागत हुआ ।फिर मुँह दिखाई की रस्म होने लगी तो सामान को टटोला गया ” माना कि हमने कुछ नहीं माँगा तो इसका मतलब हुआ खाली हाथ भेज देंगे ” सासूमा की आवाज सुनाई दी ।
यह क्या हो गया ,सौम्या सोच रही थी इनहोने तो साफ कह दिया कि हमे दहेज में कुछ नहीं चाहिए फिर? ससुराल में भी रिश्ते दारो से भरा हुआ घर धीरे-धीरे खाली हो गया ।रात को पति सौरभ कमरे में पधारे ।” देखो सौम्या, मै अपने परिवार के साथ रहता हूँ तो जैसा घर के लोग चाहें, तुम को वैसे ही रहना होगा ।माँ थोड़ी कड़ी जरूर है पर वह मेरी माँ है तो मै उनके खिलाफ नहीं जा सकता ” सहम गई थी वह ।यह कैसा फरमान जारी कर दिया ।
मै भी कहाँ परिवार को छोड़ रही थी।दूसरे दिन, रात तो नसीहतों और बातों में बीत गयी।जरा सी झपकी लग गई तभी दरवाजे पर दस्तक हुई ” बहू रानी,सुबह के चार बज गए हैं, नहा धोकर तैयार हो जाओ, पूजा पर बैठना है ।और ऐसे भी घर की बहू जल्दी उठकर नहा धो कर तैयार हो जाती है तो अच्छा लगता है ” सौम्या मायके में जल्दी ही उठती थी लेकिन इतनी भी जल्दी नहीं की नींद खराब हो जाए।बाप रे,यहाँ तो बहुत कायदे कानून है ।
उसे अपने आप को बदलने की जरूरत है ।वह वैसे भी बहुत शांत और समझदार थी ।मम्मी ने विदा करते समय काफी कुछ समझाया था ।लेकिन मायके में समझदार बेटी यहाँ सब से बेवकूफ समझा दी गई ।” अरे, इसे तो खाना बनाना नहीं आता है, कुछ भी तो नहीं जानती है ।माँ बाप ने कुछ दिया भी नहीं, खाली हाथ भेज दिया ।
भला ऐसे भी कोई बेटी को भेजता है ” सासूमा रोज एक तीर छोड़ती ।और वह तीर सीधे उसके कलेजे पर लगता ।देखते देखते साल बीत गया ।वह एक बेटे की माँ भी बन गई ।घर में छठी का आयोजन किया गया ।मायके से पूरा सामान आया ।लेकिन शायद माँ बुआ जी का कपड़ा भेजना भूल गयी ।
सौरभ की नजर सामान पर पड़ी और सारे सामान को आँगन में उलट दिया ” यह क्या है सौम्या, मेरी तो एक ही बुआ है तो उनकों कयों छोड़ दिया ” मम्मी, सारे सामान को वापस करो” अभी के अभी ।” भूल हो गई है मम्मी से ।जान बूझ कर नहीं किया है उनहोंने ” सौम्या डर गई ।इतनी बेइज्जती ।यह तो जलील करना हुआ ।अब तो बात बात पर सौरभ चिल्ला उठते ।बच्चा रोता रहता लेकिन सौरभ को ऑफिस जाने के समय मोजा पहनाने की ड्यूटी उसकी रहती ।
खुश रहने का हक तो उनको भी है ना…. – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi
जाने से पहले चाय पीने की आदत थी पति को जल्दी से चाय चढ़ाती ।अगर चाय उबल कर थोड़ी गिर गई तो हजार बात सुना देते ” जरा भी शउर नहीं है तुम को, कि चाय कैसे बनाते हैं ” आखों से आँसू टपकने को होता तो दस बात सुना देते ।अब तो मायके जाना भी लगभग बन्द हो गया ।एकदिन सासूमा ने सुना दिया ” दो नाव पर पैर रखोगी तो गिर जाओगी ” फिर उसने एक ही नाव को अपना किस्मत समझ लिया ।
कभी सोचती ” नहीं रहेगी वह यहाँ, जहां इतना जलील होना पड़े ” एक बार माँ से चर्चा भी किया था तो उन्होंने सीधे समझा दिया ” बेटा छोटी मोटी बात तो हर घर में होता रहता है ।तुम इतना अपने दिल से मत लगाओ ” तब से वह एक दम चुप हो गयी थी ।कभी मन होता खूब सजे संवरे ।
एक तो छोटे बच्चे के चलते समय भी नहीं मिलता ।कभी कोशिश भी किया ढंग से रहने की तो सौरभ का गुस्सा चरम पर होता ” यह क्या बंदरिया जैसी लग रही हो,लिपस्टिक तो मुझे जरा भी पसंद नहीं है ” फिर वह धो पोछ लेती अपना चेहरा ।इतने सुन्दर, इतने शिक्षित पति का ऐसा भी रूप हो सकता है यह तो उसने सोचा ही नहीं था ।
बेटा बड़ा होने लगा था ।उसकी जिम्मेदारी कुछ कम हुई तो उसने एक स्कूल में टीचर की नौकरी कर ली ।हालांकि सौरभ को पसंद नहीं था उसका घर से बाहर जाना, लेकिन हिम्मत तो करनी होगी ।अब वह आत्म निर्भर होना चाहती थी ।नहीं सहेगी जलालत की जिंदगी ।इतनी जलील होना किसे पसंद था।अब तो कभी कभी सौरभ शराब पीकर घर आते और हाथ भी उठा देते ।
उसका शराब के लिए मना करना सौरभ को अच्छा नहीं लगता और फिर हाथ उठ जाता निर्दोष सौम्या पर ।पति के इस रूप की तो कल्पना भी नहीं की थी वह।एक दिन शाम को जब चाय में जरा देर हो गई थी तो सौरभ ने चाय का गिलास पटक दिया था सास ने भी बेटे को सही कहा तो सौम्या चुप न रह सकी ”
अम्मा जी, बहुत सहती रही मै,अब और नहीं— ” पति का हाथ उठा ही था कि सौम्या ने हाथ पकड़ लिया ” बस करो सौरभ, बहुत हो चुका अब मै आज ही घर छोड़ कर जा रही हूँ ” ” हाँ, तो जाओ ना।कौन मना कर रहा है, देखता हूँ कौन सहारा देता है तुम्हे ” उससे उलझनें का मतलब था बात को बढ़ाना।जो कि वह नहीं चाहती थी ।
उस दिन सभी लोग भूखे ही सो गये ।रात वैसे ही बीत गयी।सुबह हुई ।सबलोग जाग गये ।सौरभ अभी तक नहीं उठे।मन में शंका हुई ।उठाने गई तो सौरभ खत्म थे।सिरहाने एक चिठ्ठी मिली।” मेरी सौम्या, मै तुम्हारा गुनहगार हूँ, तुम बहुत अच्छी थी,मै ही तुम्हारा कद्र नहीं कर सका।हो सके तो मुझे माफ कर देना ।
मेरी यही सजा होनी चाहिए थी ।तुम आत्म निर्भर हो संभाल लोगी अपने को ।मै बार बार जलील करता रहा, तुम सहती रही ।” तुम्हारा गुनहगार सौरभ ” रो धो कर उसने अपने आँसू पोंछ लिए ।अब तो बेटे के लिए जीना है ।सबकुछ बिखर गया ।बेटे के गम में सासूमा एक दम चुप हो गयी ।अब वह सौम्या के उपर बहुत ध्यान देती ।समय बीतता गया ।बेटा बड़ा हो गया ।वह भी मैनेजमेंट की पढ़ाई करके काम पर लग गया ।आज बेटे की पसंद को देखने जाना है ।उसकी अंतिम इच्छा है उसका घर बस जाये तो वह निश्चित हो जायेगी ।
उमा वर्मा, नोएडा ।स्वरचित ।मौलिक ।अप्रसारित ।
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