Moral Stories in Hindi : देखो तो सही माधुरी जीजी तुम्हारी बहुरिया कैसे चूर्मा के ल्ड्डू खुद खा रही हैँ और बच्चे भी खा रहे … तुम्हे तो देखने तक ना दिया… बाहर चबूतरे पर बैठी बगल वाली चाची अनु की सास माधुरीजी से बोली….
वो उसके पीहर से उसका डोकरा (पापा) लाया हैँ…. यहीं करनी हैँ यहीं भरनी … मेरी आत्मा को सताकर ज्यादा दिन सुखी ना रह पायेगी…. अच्छी तरह से जाने हैँ बहू कि मुझे चूर्मा के ल्ड्डू कितने बढ़िया लागे हैँ….माधुरी जी दुखी होते हुए अपने आंसू अपनी धोती से पोंछने लगी….
मम्मी आपने अम्मा को वो चूर्मा का ल्ड्डू क्यूँ नहीं दिया…. जो नानी के यहां से आया था…. माधुरी जी का पोता अपनी माँ अनु से बोला…
तुझे ज्यादा फिकर है अपनी अम्मा की तो तू ही दे देता…. अच्छी तरह से याद हैँ मुझे कैसे तेरी अम्मा ने जब तू मेरे पेट में था… तब तेरे पापा भी इतना ना कमाते थे… न्यारा कर दिया था…. अलग अलग पकवान बनाती तेरी अम्मा. … खुद और तेरी बुआ मिलकर खा लेती .. तेरे पापा बाहर नौकरी करते… अच्छे खाने पीने को तरस ज़ाती मैं …
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एक बार तो हद ही कर दी तेरी अम्मा ने….यहीं चूर्मा के दस किलो ल्ड्डू बनाये… कनस्तर भरकर तेरी बुआ की ससुराल भेज दिये…. एक चखने को भी ना दिया… मैं बहुत रोयी… तब तेरी नानी भी दूर रहती थी नाना के साथ… वो भी ना भेज पायी…. इतना घी मेवा ना था मुझ पर कि बना लूँ… बस रोकर मन हल्का कर लिया…. तेरे होने तक चूर्मा के ल्ड्डू को तरसती रही पर ना मिला… तभी शायद तुझे ये ल्ड्डू इतने पसंद हैँ…
दस साल के छोटू को अपनी माँ की बात समझ न आयी… वो बोला… कितना बोलती हो मम्मी तुम ….. मैं तो जा रहा दादी को ल्ड्डू देने…. इससे पहले कि बहू अनु उसे रोकती वो एक ल्ड्डू हाथ में ले दौड़ता हुआ अपनी अम्मा के पास आया….
ये लो अम्मा ल्ड्डू …. मासूम छोटू बोला….
ये जूठन मुझे क्यूँ देने आया हैँ… जब तुम सबके पेट भर गए
.. तब बचा हुआ टूटा फूटा तेरी माँ ने मेरे लिए भिजवा दिया….
जा ले जा इसे यहां से…. गुस्से में सास माधुरी ने छोटू के हाथ जी कटोरी में हाथ मार दिया…. जिस से ल्ड्डू जमीन पर बिखर गए….
तब तक माधुरी जी का बेटा राकेश ऑफिस का बैग लिए घर आया…
जमीन पर बिखरे ल्ड्डू देख और अपनी माँ माधुरी को सर पर हाथ रख बहू अनु को खरी खोटी सुनाता देख बोला….
अब आज़ क्या हो गया माँ??
मुझसे क्या पूछ रहा हैँ… अपनी मेहरारू से पूछ …. मुझे बचा कुचा झूठा ल्ड्डू दे रही…. सबके सामने बेइज्जत करके…. मैं कोई गयी गुजरी ना हूँ लाला…. कोई कमी ना मेरे पास….मेरा पति मेरे लिए बहुत कुछ छोड़ गया हैँ… वो तो भली मानो इतना कुछ होने के बाद भी अपने घर में रहने दे रही उसे…. किरायेदार होता तो कबका निकाल देती….
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ऐसा क्या हो गया माँ… ठीक हैँ तो आपने अपने बेटे बहू को किरायेदार के बराबर समझा हैँ… ठीक हैँ फिर अपना हिसाब बता दीजिये … बहुत कर लिया बर्दाश्त आपने और हमने… आप भी चैन से रहो और हम भी .. ये रोज रोज थका हुआ ऑफिस से आकर आप दोनों के बीच पिस जाता हूँ… बस ये सोचकर कि आप मेरी माँ हो, वो मेरी पत्नी… पर आज आपने तो पराया ही कर दिया…. तो कल ही हम इस घर से जा रहे हैँ क्युंकि ये सिर्फ आपका घर हैँ ना ….
बिटवा मैने तुझसे थोड़े ना कुछ कहा है …. माधुरी जी बेटे के गुस्से को देखते हुए दुखी होकर बोली…
चाहे आप उसे कहें या मुझे… बात एक ही माँ… वो मेरे लिए अपना घर छोड़कर आयी हैँ…. और आप भी कौन सा अपने घर में रह रही हैँ… बाबा का घर हैँ ये… ऐसे ही आपसे अम्मा कहती तो…. खैर छोड़िये .. अब आराम से रहिये….
अगले दिन बहू बेटा चले गए घर से … छोटी सी बात से हमेशा के लिए बेटे की नजरों में अपने लिए प्यार और सम्मान कम कर दिया माधुरी जी ने….
ऐसा कई माँ बाप आजकल कर रहे हैँ… और गलती सिर्फ बहू बेटे की बतायी ज़ाती हैँ… ये नहीं कह रही कि यहां बहू गलत नहीं हैँ… पर सास तो बड़ी हैँ… उन्हे तो समझदारी से काम लेना चाहिए… ज्यादातर आजकल एकाकीपन का कारण इंसान का खुद का अहम हैँ…सही कहा ना …
मीनाक्षी सिंह की कलम से
आगरा
# बेटियाँ वाक्य कहानी प्रतियोगिता
#रिश्तों के बीच कई बार छोटी छोटी बातें बड़ा रूप ले लेती है।