Moral Stories in Hindi : समीर का मन कहीं नहीं लग रहा था। उसे बहुत दु:ख हो रहा था कि उसके पक्के मित्र मोहन ने उसके साथ धोखा किया। मोहन और समीर दोनों एक ही विद्यालय में बारहवीं कक्षा में पढ़ते थे। मोहन की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, उसके ज्यादा दोस्त भी नहीं थे, समीर हर तरह से उसकी मदद करता था, समीर के माता पिता ने उसे यही सिखाया था, कि बेटा जरूरत मंद की हमेशा मदद करना चाहिए।
समीर उसे पढ़ने के लिए अपनी पुस्तके भी देता था और कोचिंग क्लासेस में जो पढ़ता था,घर आने पर मोहन को भी पढ़ा देता था, ताकि वह भी अच्छे नंबरों से पास हो सके। मोहन की स्थिति इतनी अच्छी नहीं थीप कि, वह कोचिंग क्लासेस की फीस भर सके। समीर उसे अपने भाई की तरह ही मानता था। मगर आज मोहन के व्यवाहर से उसका मन खिन्न हो गया था।
मन मे एक कशमकश चल रही थी, कि वह मोहन के साथ कैसा व्यवहार करे। उसकी गलती प्राचार्य महोदय को बतला कर उसे दण्ड दिलवाये या उसे माफ कर दे। दिमाग में तो यही विचार आ रहा था कि वह मोहन की करतूत प्राचार्य महोदय से कह दे, मगर मन की कोमल भावनाऐं उसे समझा रही थी
कहीं प्राचार्य महोदय ने गुस्से में आकर मोहन को विद्यालय से निकाल दिया, तो उसका भविष्य बिगड़ जाएगा। उसके माता पिता मजदूरी करके बड़ी मुश्किल से उसे पढ़ा रहे हैं। उन पर क्या गुजरेगी ? फिर विचार आता है, तो क्या उसकी इतनी बड़ी गलती, मैं ऐसे ही माफ कर दूं? तरह तरह के विचार उसके मन में आ रहै थे।
हुआ यूँ था कि पिछले सोमवार को उनकी कक्षा में प्राचार्य महोदय आए और उन्होंने बच्चों को हिन्दी में एक विषय दिया और कहा कि ‘इस विषय पर निबन्ध लिखकर लाओ, तुम्हें चार दिन का समय दिया जाता है, गुरूवार तक तुम उसे लिखकर मेरे पास जमा करो, जिसका निबन्ध सबसे अच्छा होगा, उसे मैं १००० रू. का इनाम दूंगा।’ सब बच्चों ने मेहनत करके निबन्ध लिखे। समीर ने भी बहुत अच्छा निबन्ध लिखा।वह मन का बहुत साफ था, कोई छल बन्द मन में नहीं थे ।
उसने वह निबन्ध मोहन को पढ़ने के लिए दिया। बुधवार को समीर को तेज बुखार आ गया और वह तीन दिन स्कूल नहीं जा पाया।उसने मोहन से कहा कि वो उस निबन्ध को प्राचार्य महोदय को जमा करा दे। मोहन के मन में लालच आया और उसने वह निबन्ध स्वयं के नाम से जमा करा दिया। अगले सोमवार को जब वह विद्यालय में गया तो सब मोहन की तारीफ कर रहै थे, उसे बधाई दे रहैं थे। सबने बताया कि मोहन का लिखा निबन्ध पहले नम्बर पर आया है,
समीर को बहुत खुशी हुई उसने उसे बधाई दी, मगर मोहन की नजरें नीची झुकी हुई थी।तभी प्राचार्य महोदय कक्षा में आए और उन्होंने कहा कि मुझे मोहन ने जो निबन्ध लिखा है वह सबसे ज्यादा पसन्द आया। मैं वह निबन्ध तुम सबको पढ़कर सुनाता हूँ।पुरूस्कार की रकम विद्यालय के वार्षिक उत्सव में दी जाएगी। प्राचार्य महोदय ने निबन्ध सुनाया सुनकर समीर को बहुत आश्चर्य हुआ, यह निबन्ध तो उसका लिखा हुआ था, जिसे मोहन ने अपने नाम से जमा करा दिया था।
उसने मोहन की तरफ देखा उसकी गर्दन नीची झुकी हुई थी। एक पल समीर को लगा कि चिल्लाकर सबको सच बता दे। मगर माता- पिता के दिए संस्कार आड़े आ गए। वह वहाँ कुछ नहीं बोला और घर आ गया। उसका मन बहुत बैचेन था। उस बैचेनी में उसे अपनी माँ की बहुत याद आ रही थी जो असमय उसका साथ छोड़कर अनन्त में विलीन हो गई थी।दौपहर का समय था,समीर के पापा ऑफिस गए थे। घर में वह अकेला था, वह माँ की तस्वीर के आगे बैठ गया।
उसे याद आ रहा था कि माँ ने किस तरह पूरे परिवार को एक सूत्र में बांध रखा था। दादी तो वह बहुत छोटा था तभी शांत हो गई थी। दादाजी का गुस्सा बहुत तेज़ था। माँ भुआ और काका दोनों को बहुत प्यार से रखती थी,काका की जुंआ खेलने की बुरी आदत पढ़ गई थी,घर पर किसी को इस बात की खबर नहीं थी। एक बार वे बुरी तरह हार गए,पैसा चुकाने के लिए वे मॉं की रकम चुराकर ले गए।
धीरे-धीरे घर पर यह बात सबको मालूम पढ़ गई। दादाजी को बहुत गुस्सा आया, वे उन्हें मारने के लिए दौड़े, तो काका मॉं के पीछे छिप गये बोले भाभी मुझे माफ करदो, मुझे मार से बचा लो। दादाजी हांफ रहै थे, और कह रहै थे ‘बहू तू आज सामने से हट जा,आज मैं इसे छोड़ूँगा नहीं,इसने मेरे घर की बहू के गहने बेचे हैं।’ माँ बोली ‘बाबूजी आप शांत हो जाओ, ये गहने भैया से ज्यादा कीमती तो नहीं है, कहीं वे लोग हमारे भैया को कुछ कर देते तो।’
तब दादाजी ने मॉं से कहा था-‘माफ करने वाले का दिल बहुत बड़ा होता है’ बेटा तू बहुत बड़े दिल की मालकिन है, हमेशा खुश रहो।’उन्होंने मॉं के सिर पर हाथ रखा। उनकी ऑंखें नम थी। तब काका ने दादाजी, पापा और मॉं से मॉफी मांगी और कसम खाई कि आगे से वे कभी जुआं नहीं खेलेंगे। उस घटना के बाद काका सुधर गए थे। उस समय मैं आठवीं कक्षा में पढ़ता था।
समीर ने सोचा जब माँ काका को माफ करके उनका जीवन बचाकर उसमें सुधार लाने सकती है, तो मैं मोहन को माफ क्यों नहीं कर सकता? मेरी रगो में भी तो उन मॉं का खून दौड़ रहा है। उसकी दुविधा दूर हो गई थी, उसे लग रहा था जैसे माँ ने उसे संदेश दिया हो। उसने मोहन से दोस्ती नहीं तोड़ी, न उसकी शिकायत की। उसके व्यवहार को देखकर मोहन बहुत शर्मिंदा हो रहा था, समीर के सामने उसकी गर्दन ऊपर नहीं उठती थी। जब विद्यालय में वार्षिक उत्सव हुआ,
और मोहन को पुरुस्कार की राशि देने के लिए बुलाया,तो उसने माइक को हाथ में लेकर सबके सामने समीर को मंच पर बुलाया। प्राचार्य महोदय के पैरों में गिरकर उनसे क्षमा मांगी और कहा ‘आप जो चाहे वह सजा मुझे दे, मगर इस पुरुस्कार को समीर को प्रदान करें, वही इसका वास्तविक हकदार है। वह निबन्ध समीर ने लिखा था और मुझे आपको देने के लिए कहा था, मैंने उसे अपने नाम से जमा करा दिया।’
प्राचार्य महोदय आश्चर्य चकित थे, उन्होंने समीर से कहा ‘यह बात तुमने मुझसे क्यों नहीं कही?’ समीर ने कहा -‘सर आप मुझे माफ कर दीजिए, मोहन मेरा प्यारा दोस्त है । मैं घबरा गया था, कि कहीं आप उसे विद्यालय से नहीं निकाल दे। मैं आपसे हाथ जोड़कर अनुरोध कर रहा हूँ कि आप मोहन को भी क्षमा कर दे।
मेरे लिए यही असली पुरूस्कार है ।’प्राचार्य जी ने कहा- ‘मोहन ने अपनी गलती सबके सामने स्वीकार कर बहुत अच्छा काम किया है । और समीर तुमने आज यह साबित कर दिया कि माफ करने वाले का दिल बहुत बड़ा होता है। मैं तुम दोनों से बहुत खुश हूँ।’ फिर वे सभी को सम्बोधित करते हुए बोले – ‘पुरूस्कार की रकम का सही हकदार समीर है और यह राशि मैं उसे प्रदान करता हूँ।’ समीर ने पुरूस्कार की राशि ग्रहण की और मोहन को अपने गले से लगा लिया। हाल में तालियाँ गूंज रही थी।
प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित
#माफ करने वाले का दिल बहुत बड़ा होता है