किस्मत का लेखा – अनिला द्विवेदी तिवारी : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : रजनी एक सामान्य कद काठी और मध्यम रंगत की एक साधारण सी लड़की थी। बहुत पढ़ी लिखी भी नहीं थी। सिर्फ बारहवीं तक पढ़ाई की थी। लेकिन घर के काम काज में निपुण थी।

रजनी चार बहनें और दो भाई थे। चारों बहनों में रजनी तीसरे नंबर की थी।

पिता जी सरकारी नौकरी में थे लेकिन सामान्य सी सरकारी नौकरी वाला व्यक्ति भी जब छः बच्चों का लालन-पालन करेगा तब हर बच्चे के हिस्से में औसत दर्जे की ही देखरेख आएगी।

रजनी से बड़ी दो बहनों का विवाह हो चुका था। इसलिए अब रजनी के विवाह की चर्चाएं घर पर चालू हो गई थी।

पिता जी कई जगह रिश्ते तलाश  कर रहे थे। फिर एक दिन उन्हें एक जगह घर व वर दोनों ठीक-ठाक लगा तो बात जमाने की कोशिश में लग गए।

अब चूंकि लड़के वाले राजी नहीं थे इस शादी के लिए,  क्योंकि उनका लड़का (धर्मेश) लड़की (रजनी) से ढाई वर्ष छोटा था और दूसरी बात रजनी के चेहरे में दाएँ गाल पर बहुत बड़ा काला सा निशान  था जो उसके आधे गाल को कवर किए हुए था।

लड़के वालों ने यह कहकर टाल दिया था कि अभी इस साल शादी नहीं करेंगे अगले साल देखा जाएगा। चूंकि कोई पुराने रिश्तेदार उनके साथ आए थे इसलिए वे उन्हें डायरेक्ट मना भी नहीं कर पा रहे थे। सिर्फ अप्रत्यक्ष तौर पर ही मना कर सके।

आखिरकार रजनी के पिता जी वापस चले गए। फिर उन्होंने अपनी तलाश अन्य जगहों पर भी यथावत जारी ही रखी।

लेकिन रजनी का विवाह कहीं भी तय नहीं हो पाया। एक वर्ष बीत गया।

अगले साल रजनी के पिता पुनः उसी घर में आ गए,  जहाँ से उन्हें लौटा दिया गया था।

अब इसे संयोग कहें या दुर्भाग्य इस बार धर्मेश और रजनी का विवाह दोनों के पिताओं ने पक्का कर दिया। दो माह बाद दोनों की धूमधाम से शादी हो गई।

इसी बीच (लगभग पच्चीस दिनों के अंदर ही) धर्मेश के पिता जी का भी देहांत  हो गया।

लेकिन वो बीमार रहते थे इसलिए रजनी पर किसी ने कोई उंगली भी नहीं उठाई।

इस तरह कुछ वर्ष बीते थे, शादी के लगभग छः वर्ष कुछ माह ही हुए थे तभी किसी बीमारी के चलते अल्पायु में ही धर्मेश की भी मृत्यु हो गई।

उस छः वर्ष कुछ माह के अंतराल में रजनी और धर्मेश को दो बेटियाँ भी पैदा हो गई थी। जो धर्मेश की देहांत के समय क्रमशः पाँच और तीन वर्ष की थीं।

रजनी भी कुछ अधिक पढ़ी लिखी नहीं थी जो कहीं नौकरी कर लेती इसलिए अब उसकी और बच्चियों की आजीविका का  साधन, धर्मेश की एक टाइपिंग फोटोकॉपी सेंटर के नाम से दुकान थी उससे आती कुछ आमदनी और जमीन का एक बड़ा सा हिस्सा जो धर्मेश के पिता-दादा विरासत में छोड़ गए थे, ही था।

अब रजनी मजदूरों के साथ दिनभर लगकर खेती के कामों में ध्यान देती और अपना एवम दोनों बच्चियों का लालन-पालन करने लगी थी।

रजनी को उसके मायके एवं ससुराल के लोग यही समझाते रहते थे कि इसको कहते हैं,,, “किस्मत” वैधव्य किस्मत में ही बदा  हुआ था इसलिए बार-बार उसी घर पर वापस लौटकर आते रहे।

या यह भी हो सकता था कि जहाँ किसी अन्य जगह भी विवाह होता तो यही हो सकता था।

किस्मत का लिखा कोई टाल नहीं सकता है बेटा, जो नियति ने तय किया है वह हो कर ही रहेगा। इसलिए अपने कर्म करते रहो बाकी अपना सब कुछ किस्मत के हाथों छोड़ दो।

 रजनी ने भी पूरी तरह से परिस्थितियों के अनुरूप अपने आप को ढाल लिया था। उसने अपने बच्चियों के लालन-पालन हेतु दूसरा विवाह भी नहीं किया बल्कि अपनी मेहनत से घर पर ही अपने पूर्वजों की जमीन पर जी तोड़ मेहनत करके फसल उगाती थी। अपनी देखरेख, अपनी बच्चियों की और कुछ मवेशी पालकर रखे थे तो उन्हीं मवेशियों की देखरेख में समय गुजार देती थी।

उसने भी दिल से यह बात मान ली थी कि किस्मत का बदा कोई टाल नहीं  सकता है।

कोई कितनी भी हमदर्दी जता ले या थोड़ी बहुत आर्थिक मदद कर भी दे तो भी बिना अपने संघर्ष किए कुछ हासिल नहीं होता है। यही मुकद्दर है।

बेटियों को अब वह बहुत अच्छे से पढ़ा रही है ताकि आगे चलकर उन्हें कोई परेशानी ना हो!

आज उसे अपने कम पढ़े लिखे होने का भी पछतावा हो रहा है कि काश उसने भी पढ़ाई की होती तो शायद उसे ये श्रमिकों वाले काम नहीं करने पड़ते।

स्वरचित

©अनिला द्विवेदी तिवारी

#किस्मत 

 

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