ज़िंदगी है फिर भी कम है – स्नेह ज्योति : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : मोहन नाम से लगता है कि इनकी ज़िंदगी कितनी रंगीन होगी । लेकिन असल ज़िंदगी में इनकी ना तो कोई राधा हैं , ना ही रुक्मणी , ना ही मीरा । अपनी पत्नी के जाने के बाद उन्होंने कई बार सोचा पर अपने बच्चों के कारण कभी दूसरी शादी नहीं की । आज उनके बच्चे अपने-अपने जीवन में व्यस्त है । कितनी मुद्दत हो गयी , ना तो साथ में बैठ खाना खाया है , ना ही कहीं बाहर गए है ।

सुबह सुबह की भोर होते ही मोहन उठ जाता और एक कप चाय की बना , बाग़ीचे में अपनी प्यारी कुर्सी पे बैठ अख़बार पढ़तें हुए चाय की चुस्की का आनंद लेते । लेकिन आज तो कमाल हों गया । उनका बेटा जो एक प्राइवट कम्पनी में असिस्टेंट मैनेजर हैं उनके पास आकार बैठा ।

क्या हुआ बेटा ! आज ऑफ़िस नहीं जाना ??

नहीं पापा ! आज मैंने छुट्टी ली है ।

छुट्टी ! तबियत तो ठीक है ??

ठीक है पापा , बस आज मैं जा नहीं रहा ।

बहुत पूछा तो बोला कि “पापा मैं अपनी नौकरी से ज़्यादा खुश नहीं हूँ “।

क्यों क्या हुआ ?? बस मेरा इतना पूछना हुआ और उसका शिकायत का पिटारा खुल गया ।

पापा मेरे जो बॉस है वो खुद तो कुछ करते नही है और मैं जो आइडिया देता हूँ । तो वो अपने नाम से मेरा आइडिया अपने बॉस के सामने प्रस्तुत कर सारा क्रेडिट खुद ले जातें है ।

कोई बात नहीं बेटा ! तुम अपना काम करो सफलता जरूर मिलेंगी ।

आप रहने दो पापा ! आप के जमाने में इतनी तकलीफ़ थोड़ी होती होगी । जितनी आज के युग में हमारी पीढ़ी को उठानी पड़ती है ।

ऐसा नही है बेटा ! हमें भी शिकायत थी अपने काम से , परिवार से लेकिन हम उनकी बातों को ध्यान से सुनते थे और धैर्य से काम लेते थे । लेकिन तुम आज कल की पीढ़ी सुनना तो दूर ,उल्टा हमें ही ग़लत ठहरा देते हो ।

थोड़ी देर बाद सीमा गर्मी में झुलसती हुई आती है और बोलती है पापा अब तो हद हो गयी है ।

क्यों क्या हुआ ??

पहले तो कॉलेज जाने के लिए इतनी भीड़ को पार कर मेट्रो तक पहुँचो फिर बैठने के लिए सीट खोजते रहो । थकान के मारे बुरा हाल हो जाता है और जब कॉलेज जाओ तो पता चलता है कि आज लेक्चर की छुट्टी है क्योंकि हमारी टीचर जी अनुपस्थित है । बताओ ग़ुस्सा नहीं आएगा तो क्या करे । जब टीचर को आना नहीं होता तो पहले ही बता दिया करे । आज सिर्फ़ एक क्लास लेने के लिए इतनी मारा मारी करनी पड़ी ।

तभी समीर बोला तुम ठीक कह रही हो । पता नहीं आज कल हमारे सिस्टम को क्या हो गया है । समय और मेहनत की कोई वैल्यू ही नहीं है ।

सही में किसी को समय और काम की वैल्यू ही नहीं हैं । मोहन का यें जवाब सुनते ही दोनो बहन भाई अपने पापा को देखते हुए बोले अब आपको क्या हुआ ??

मुझे लगता है कि आज हम सब लोग इतने दिनों के बाद इकट्ठे बैठें है , तो मैं भी कुछ अपनी शिकायत रख दूँ ।

आपको ! अब आपको क्या दिक़्क़त है ??

क्यों मुझे कोई दिक्कत नहीं हो सकती क्या ???

तुम दोनों तो सुबह चले जाते हो और शाम को आते हो । मैं अकेला सारें दिन घर के काम करवाता रहता हूँ । खाने में क्या बनेगा क्या सामान आएगा । पूछो मत कितना परेशानी का काम है । तुम लोग भी मेरा हाथ नहीं बटाते , काम वालों के ऊपर तो भरोसा नहीं किया जा सकता ।

समीर बोला तो “अब आप क्या चाहतें “??

मोहन बोला “ मैं चाहता तो बहुत पहले से था पर तुम लोगों की वजह से नही कर पाया “।

पापा आप क्या कहना चाहतें है खुल कर कहें….

मुझे लगता है कि इस घर को अब एक ग्रहिणी की जरूरत है ।

ग्रहिणी क्या पापा ???

मेरा मतलब एक ऐसी औरत जो इस घर को सम्भाले तुम्हारा मेरा हम सबका ध्यान रखें ।

समीर ने बड़ी अचरजता से पूछा और वो औरत कौन होनी चाहिए पापा ?? ……..

निर्मला ! मेरी कॉलेज की दोस्त है । वो भी बेचारी आज अकेली है। हम दोनों को जीवन के इस पड़ाव पे एक साथी की ज़रूरत है । मुझे लगता है जब तुम उनसे मिलोगे तो तुम मेरी बात को समझोगे ।

समीर चिल्ला के बोला “ पापा आप क्या कह रहे है “! इस उम्र में आप शादी करेंगे ! सीमा की उम्र है शादी की या आप की ???

भाई मेरी अभी उम्र नहीं है आप को करनी है तो बोलों ???

मैं….मेरा अभी चार साल तक तो कोई इरादा नहीं है ।

भाई जब आपको नहीं करनी , मुझे नहीं करनी तो पापा को करने दे ।

तुम लोगों को मज़ाक़ लगता है । लोग क्या कहेंगे ……

ऐसा नही होगा बोल समीर उठ कर चला गया । और ये सभा यहीं पर स्थगित हो गयी । अब सुनवाई या परिणाम कौन सी सभा में होगा कुछ नही पता ।

लेकिन आज बरसों बाद शिकायतों का पिटारा खुला और अनगिनत बातों पे से पर्दा उठ गया । कहाँ तो एक साथ बैठते ही नहीं थे और आज जब बैठें तो सवालों के जवाब ही नही मिलें । ऐसा हर परिवार में होता है कभी भी किसी का एक मत नहीं होता । सबकी अपनी सोच अपना नज़रिया अपना तजुर्बा होता हैं । जिस कारण वश कई बार अपनो से की गयीं शिकायतें या मन की बात अधूरी सी बिना परिणाम के रह जाती हैं । लेकिन हमें अपनो से कभी अलगाव नहीं रखना चाहिए । समय ले आपस की हर शिकायत को बात कर सुलझा लेना चाहिए ।

दोस्तों ऐसा ही कुछ इस कहानी में भी हुआ बहुत बहस कुछ तल्खियाँ भी हुई , पर एक समय के बाद सब ठीक हो गया । आज समीर , सीमा , मोहन और उनकी निर्मला सब साथ है । शायद आज भी एक दूसरे से कोई शिकायत हो पर हल हर बात का होता है । एक शिकायत पूरी होती है तभी तो दूसरी जन्म लेती है । ज़िंदगी के इस सफर में सब पाकर भी कमी सी रहती है ।

#शिकायत

स्वरचित रचना

स्नेह ज्योति

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