अब और कितने पश्चाताप…! – सीमा प्रियदर्शिनी सहाय : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :

 रेलवे स्टेशन में अंधेरा पसर चुका था। बहुत रात हो चुकी थी। ट्रेन अपनी समय से एक घंटे देर  थी।

 जब तक मैं स्टेशन पहुंचा तब तक वहां सन्नाटा व्याप्त हो चुका था।

 ठंडी की मौसम शुरू हो चुकी थी। कोहरे की पतली  चादर वातावरण में विराजमान थी।

 हाथ पैरों  में ठ़ंढ की सिहरन कांटों जैसी चुभ रही थी।

 ट्रेन जैसे ही आकर रुकी वैसे ही मैं डिब्बे पर चढ़ा। अधिकांश यात्री सोए हुए थे।

लेकिन मेरे सामने वाली सीट पर एक महिला बैठी हुई थी। मैंने ऊपर से ही देखकर उन्हें हंस कर हेलो कहा और अपने सामान रखने लगा।

 वह मुझे एकदम घूर कर देखी जा रही थी।

 मैं सामान रखने के बाद अपने बैग से न्यूजपेपर निकालकर अपने गोद में रख लिया।

 कुछ देर तक उसे देखने के बाद मुझे अचानक याद आया मैंने इसे कहीं देखा है …!

“आप विमल है ना!”

” जी ,आप मुझे जानती हैं?”

वह मुस्कुराई 

“मेरा नाम वर्षा है ..वर्षा ठाकुर!”

 “अरे वर्षा तुम, इतने सालों बाद…! वह भी इस ट्रेन में… इस यात्रा के दौरान!”मैं आश्चर्य चकित हो गया।

” मैं हिमाचल जा रही हूं।”

” मैं भी हिमाचल ही जा रहा हूं !”

“अरे वाह !,वह हंसी, चलो अच्छा है बरसों बाद मुलाकात तो हो गई ।”

“हां ,मैं उसे देखता रहा।

 दूध में सने हुए बाल चेहरे  से मैच कर रहे थे।

 उम्र तो इतनी ज्यादा नहीं थी लेकिन उससे ही ज्यादा चेहरे पर तनाव, खोया खोया सा चेहरा ।

ना बिंदी ना सिंदूर, हाथों में मोटे-मोटे दो कड़े बस ।

एक सिंपल सलवार सूट और मोटे से शॉल से  कवर कर खुद को बैठी हुई थी।

मैं थोड़ा घबरा गया। मैंने उससे पूछा

” अभिनव कैसे हैं ?”

“नहीं रहे!”

” मतलब कब…कैसे..!”

” लंबी कहानी  है विमल!,तुम बताओ तुम्हारा सफर कैसा गुजरा!

 तुम्हारी शादी, बच्चे!”

” ना शादी ,ना बच्चे !,मैंने ठंडी सी सांस ली।

” मैंने प्यार तुमसे किया था तो फिर कोई और कैसे मेरी जिंदगी में आता?”

” मैं ना जाने कैसे उस कह दिया।उसने इसका कोई जवाब दिया नहीं। वह चुपचाप रही, पर तुम्हारे साथ क्या हुआ कुछ बताओगी भी?”

 

 

“विमल, मैं और तुम, हम दोनों ने ही एकदूसरे से प्यार किया था। हम दोनों में कमी थी।

 हम दोनों के प्यार में कमी थी ।अब किसी को दोष देकर कोई फायदा नहीं। जो हो गया वह तो बीती बात हो गई ।

उन बातों को दोहरा कर क्या फायदा?”

” मतलब??” मैं आश्चर्य चकित होकर उसे देखता रहा।

 उसने कहा

” बहुत रात हो गई है। अब सो जाते हैं। कल पूरा दिन ट्रेन में ही बिताना है। सारी बातें कल बताऊंगी।”

” ठीक है।” मेरे पास कोई और चारा भी नहीं था।

 मैं अपनी बर्थ पर आकर लेट गया।

 ट्रेन आगे भाग रही थी और मेरे विचार पीछे…।

 मैं और वर्षा दोनों एक ही कॉलेज में पढ़ते थे। ना जाने कब एक दूसरे से प्यार हो गया, हमें भी समझ में नहीं आया।

जब मेरे घर वालों को पता चला तो मुझे अच्छी खासी डांट पड़ी। धमकी भी मिली।

 मां ने कहा था

” यह कोई प्यार नहीं होता है ।यह मात्र शारीरिक आकर्षण है जो 2-4 सालों में खत्म हो जाएगा।

 जिंदगी जीने के लिए एक अच्छी जिंदगी होनी चाहिए। मां-बाप की तय की हुई लड़की ही अच्छी होती है ।

यह सब प्यार मोहब्बत की बातें बेकार  हैं।”

जब तक हम लोग बीए पास किए थे, वर्षा की शादी फाइनल हो चुकी थी।

 उसने उस रात मुझसे आकर बहुत ही ज्यादा रिक्वेस्ट किया था।

” विमल, मेरे पापा ने मेरी शादी ठीक कर दी है। दो महीने बाद मेरी शादी है, प्लीज कुछ करो!”

” पर मैं क्या कर सकता हूं वर्षा मैं एक सूखी हुई रेत की तरह था जो कभी भी भरभरा कर गिर सकता था।

 

 जब तक मेरे पास अच्छी नौकरी नहीं होगी, मैं वर्षा का हाथ नहीं थाम नहीं सकता था और बिना नौकरी वाले को कौन लड़की देगा?

 उसका होने वाला पति एक अच्छा डॉक्टर था। मैं एक सिंपल ग्रेजुएट!

 पता नहीं किसी प्रतियोगिता परीक्षा में मैं कुछ निकाल पाऊंगा  या नहीं?

उसे कोई अच्छी जिंदगी दे पाऊंगा या नहीं!

 मैं ने अपने कदम पीछे हटा लिया था और वर्षा रोती हुई वहां से चली गई थी।

 उसके बाद मेरे  और वर्षा की मुलाकात कभी भी नहीं हो पाई।

बाकी दोस्तों ने वर्षा और उसके पति की तस्वीर भी दिखाई पर मेरा दिल टूट गया था।

 मैंने वह शहर ही छोड़ दिया। दिल्ली जाकर मैंने अपनी जी जान लगा दिया और प्रतियोगी परीक्षा निकाल लिया।

 उसके बाद मैं लगातार पछतावे की आग में जलता रहा।

मुझे लगता था कहीं से कोई वर्षा की खबर मिल जाए !

इतना ढूंढा लेकिन इतना बड़ा शहर,इतना बड़ा देश इसमें कोई एक आदमी एक बूंद की तरह होता है…!

 आज देखो, वर्षा मुझे किस हाल में मिली।

 लेकिन उसके अंदर कोई और तूफान है पता नहीं क्या?”

 मैंने अपने चेहरे पर हाथ फिराया। वह भीगी-भीगी सी लगी।

 ना जाने कब से मेरी आंखें बह रही थी।

 अब मां इस दुनिया में नहीं है। मैं मां को बताना चाहता था 

“मां, यह मात्र शारीरिक आकर्षण नहीं था, यह दिल से निकली हुई आवाज़ थी.

 मैंने उससे प्यार किया था पाप नहीं!!”

~~

” विमल बाबू चाहिए उठ जाइए!” वर्षा की आवाज पर मेरी नींद टूटी।

 उसकी चिर परिचित मुस्कुराहट देखकर मेरी नींद टूटी ।

“ओ सॉरी!, मैं उठते हुए बोला

 रात में काफी देर से नींद आई थी।”

” वह मुझे पता है।”वर्षा ने कहा ।

उसने अपने लंच बॉक्स से पूरी और आलू की सब्जी निकाल कर देते हुए कहा

“लो यह खाओ ।”

“हां, पहले मैं फ्रेश हो लेता हूं।”

  जब तक मैं फ्रेश होकर आया, उसने दो कप चाय भी ले लिया था।

” वर्षा अपने बारे में कुछ तो बताओ?”मैं खाते हुए पूछ बैठा।

” विमल, उस हमारी आखिरी मुलाकात के बाद मैं अभिनव की पत्नी बनकर उसके साथ उसके घर चली आई।

 अभिनव भी अपने माता-पिता के दबाव में ही शादी किया था।

 उसने पहली रात ही अपने बारे में  मुझे सब कुछ बता दिया।

 जब उसने मुझे बता दिया तो मैं भी उसे अपने बारे में सब कुछ बता दिया लेकिन फिर उसने अपना रंग बदल लिया और मेरे ऊपर लांछन लगाना शुरू कर दिया।

आखिकार उसने मुझे तलाक दे ही  दिया।

 उसके बाद मेरी एक दूसरी यात्रा शुरू हुई ।घर आने के बाद मेरे मम्मी पापा और परिवार वालों ने मुझे आड़े हाथों ले लिया।

 मैंने तुम्हें बहुत ढूंढा।मैं तुम्हारे घर भी गई थी लेकिन तुम्हारे परिवार वालों ने नहीं बताया कि तुम कहां हो।

 उसके बाद मैंने अपनी पढ़ाई जारी रखी और फिर नेट निकाल कर एक कॉलेज में पढ़ाने लगी ।

बस यही मेरी जिंदगी है ।”वह खामोश हो गई।

 

 

“तो तुमने यह क्यों कहा कि अभिनव अब नहीं है ?”

पिछले वर्ष ही उनकी मृत्यु हो गई ।”

” सो सैड!, मेरी आंखें भर आई।

.. वर्षा हम दोनों एक दूसरे के लिए बने थे। देखो, नियति ने हमें आखिरकार मिला दिया।

 तुम्हारे परिवार में अब कौन हैं?”

” मेरे भाई भाभी , मेरी बहनें है।सब अपने ससुराल में।

 मैं अकेली रहती हूं सच कहूं … तुम्हें खोने के बाद में और कुछ चाहत भी नहीं हुई। मुझे ऐसा लगता था तुम कभी ना कभी तो मिलोगे !देखो मेरी चाहत पूरी हो गई।”

” हां बिल्कुल मैं भी यही सोचता था।  पर.. एक बात बताओ आखिर तुम हिमाचल जाकर करोगी क्या?”

” वहां एक बहुत बड़ा मेडिटेशन सेंटर है ।मैं वही जा रही हूं ।25 दिनों का कोर्स है ।हर साल दो बार मैं जरूर वहां जाती हूं। मेरे मन को बहुत ज्यादा ही रिलीफ मिलता है।”

“अरे वाह, मैं भी तो वही जा रहा हूं।” मुझे अचानक ही हंसी आ गई ।

“क्या मजाक कर रहे हो विमल?”

” नहीं मजाक नहीं कर रहा हूँ। मैं सच बोल रहा हूं। मैं वही जा रहा हूं ।मेरे लिए भी तो मन की शांति बहुत जरुरी है।”

 

 

ये पच्चीस दिन कैसे बीते , पता ही नहीं चला ।अपने मन को ,अपनी सांसों को ,अपने आप को अपने वश में करते हुए मैंने अपने मन को मजबूत कर लिया और अपनी इरादों को भी।

 वहां से निकलते हुए मैंने वर्षा का हाथ थाम लिया।

 “प्यार तो प्यार ही होता है वर्षा।सूर्योदय ना सही सूर्यास्त के समय ही ।

आ जाओ वर्षा इस  सूखे रेत में बादल बनाकर बरस जाओ।

 और कब तक हम एक दूसरे गलती के पछतावे की अग्नि में जलते रहें।

एक दूसरे को भस्म करते रहने से अच्छा है   एक दूसरे को माफ कर दे और एक दूसरे के बुढ़ापे का साथी बन जाएं ।”

वर्षा भी तैयार थी ।उसने भी मुस्कुरा कर मेरे हाथों को अपने दूसरे हाथ से पकड़ लिया ।

उसके सूखे, बेजान से चेहरे पर गुलाबी रंग बिखर गई थी।

मैं ने उसे गले से लगा लिया।

*

प्रेषिका–सीमा प्रियदर्शिनी सहाय

#पश्चाताप

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