Moral Stories in Hindi : मां! “आज आप मेरी निगाहों से गिर गईं ।एक औरत हो कर आपने सरे आम इतने सारे रिश्तेदारों के बीच काव्या के घर वालों का मजाक बनने दिया। आपने जरा सा नहीं सोचा कि उसके दिल पर क्या गुजर रहा होगा जब उसकी गरीबी का मजाक बन रहा था और उसके माता-पिता का उपहास उड़ाया जा रहा था।”
इंसान की पहचान सिर्फ दौलत से करना कहां तक उचित है। उसकी शिक्षा और तहजीब कोई भी मायने नहीं रखती है। सुधा अपनी भाभी को इस तरह अपमानित होते हुए नहीं देख पाई तो उसने गिरजा जी को अंदर बुलाया और कहा कि,” कल आपकी बेटी के साथ उसके ससुराल में भी ऐसा व्यवहार होता है तो आपको कैसा लगेगा?”
” मेरी बेटी के साथ ऐसा क्यूं होगा? मैंने तो इतना धन दौलत दिया है कि कोई मुंह भी नहीं खोल पाएगा।चार रिश्तेदारों में शान है हमारी ” गिरजा जी की बोली में घमंड का जहर घुला हुआ था।उनको अभी भी एहसास नहीं था कि जिस लड़की का वो अपमान कर रहीं हैं वो उनके ही घर की लक्ष्मी है। अब वो उनकी बहू है उनके घर का अहम हिस्सा है।
काव्या सब कुछ चुपचाप सुनने के बाद बोली कि,” मम्मी जी! ” धन -दौलत से भी ज्यादा इंसान के संस्कार और जगत में व्यवहार मायने रखते हैं।मेरे पापा ने ईमानदारी से नौकरी की है।आज भी उनका नाम सम्मान से लिया जाता है। उन्होंने हम सभी को संस्कार रूपी गहने से सजाया है।मेरे ख्याल से इससे बड़ी दौलत शायद कुछ भी नहीं है। मैं पढ़ी -लिखी हूं जिंदगी में बहुत धन -दौलत कमा लूंगी।मेरे माता-पिता ने इस काबिल बनाया है मुझे। आपसे इतना ही उम्मीद करती हूं कि उनके सम्मान पर कभी भी आंच नहीं आने दीजिएगा क्यों कि वो मेरे लिए ईश्वर तुल्य हैं। उनके ही दिए हुए संस्कार हैं कि मैं आपको अपनी मां समझ कर विनती कर रही हूं।”
गिरजा जी के पास कोई जबाब नहीं था क्योंकि उन्होंने गलत व्यवहार किया था जो बात उनकी बेटी सुधा को भी अच्छी नहीं लगी थी।
बेटी किसी की भी हो उसके घरवालों का अपमान करने का हक किसी को नहीं है।
प्रतिमा श्रीवास्तव
राजस्थान कोटा