गोविन्द और रेखा दोनों जुड़वां भाई -बहन थे।उनके पिता कर्नल विनोद फौजी थे,जबकि उनके जन्म के बाद ही मां गुंजा की मृत्यु हो गयी थी। कर्नल विनोद ने दोनों की परवरिश की। दोनों भाई बहन बचपन से ही होशियार और कुशाग्र बुद्धि होने के कारण अब अपनी मंजिल के करीब पहुंच चुके थे।
रेखा का सपना चिकित्सक बनने की और गोविन्द कम्प्यूटर इंजीनियर बनना चाहता था,पर इन्सान सोचता कुछ ओर है और होता कुछ है। आतंकवादियो से मुठभेड़ मे कर्नल विनोद की मृत्यु हो गई। दोनों पर मुसीबतों का पहाड़ टूट गया रेखा तो चिकित्सक बन गई पर गोविन्द की अभिलाषा पूरी नही हुई।
रेखा की पोस्टिंग रायपुर से दिल्ली में हो गई।वह आज हड्डियों की विशेषज्ञ थी जबकि गोविन्द एक कपड़े के शोरूम का क्लर्क।
वह बड़ा मेहनती नवयुवक था, शोरूम के मैनेजर ने अपनी इकलौती पुत्री गीता का विवाह उससे कर दिया पर वह दहेज लेने और देने के खिलाफ था।
किसी तरह गृहस्थी की गाड़ी चल रही थी,एक साल बाद गीता ने पुत्र को जन्म दिया।कुछ दिनों से गोविन्द की तबीयत नासाजथी वह काम पर भी नही जा रहा था।इसी बीच रेखा ने गीता को बताया कि वह अपने सहयोगी रीतेश से शादी कर रही है पर आप दोनों के बिना शादी नहीं हो सकती क्योंकि आप दोनों को ही कन्यादान करना पड़ेगा
रेखा ने ये भी बताया कि रीतेश ने विवाह का इंतजाम फाइव स्टार होटल मे किया है।अब गीता सोच रही थी शादी में पहनने लायक तो उनके पास परिधान नहीं है। इतने में उसे रेखा की आवाज सुनाई पड़ी,जैसे ही गीता ने दरवाजा खोला उसने देखा उसके हाथों में कई पैकेट थे उसने वे अपनी भाभी को देते हुए बोली-आप सब ये परिधान पहनकर आना और वह गोविन्द से मिलने चली गई। गोविन्द से मिलने के बाद उसने गीता को ५०हजार रूपए भी दिए।इस प्रकार नन्द रानी की समझदारी ने सब ठीक कर दिया। कि बाकी सारा इंतजाम कर सके अपनी भाभी को पैकेटों के साथ ५०हजार
स्वरचित मौलिक
कान्ता नागी