रानी – संध्या त्रिपाठी   : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : आइए ना सासू माँ ….आप भी हमारे बीच बैठिए , हम सब देवरानी जेठानी और दीदी मिलकर खूब मजे ले रहे हैं अपने अपने पतियों की …स्वर्णा ने अपनी सासू माँ से कहा ..

अरे तुम लोगों के बीच मैं क्या बैठूंगी , तुम सब आपस में गप्पे मारो सुभद्रा जी ने संकोच करते हुए कहा । आ न माँ बैठ …यहां हम लोगों की बातें सुनकर तू भी हंसते-हंसते लोटपोट हो जाएगी , बेटी गिरिजा ने भी कहा ।

चार बेटे बहू नाती पोती से भरा पूरा परिवार था सुभद्रा जी का , चारों भाइयों की इकलौती बहन थी गिरिजा …. सबकी प्यारी सबकी लाडली ।

कुछ ही समय पहले विश्वनाथ जी (सुभद्रा जी के पति ) का निधन हो गया था , पति के निधन के बाद से ही सुभद्रा जी खोई खोई सी रहने लगी थीं… बेटे बहू का साथ व प्यार मिलने के बाद भी पति की कमी ने उन्हें अंदर से कमजोर बना दिया था

वो खुद ही कहती… इनके जाने के बाद मैं खुद को ठगी सी महसूस करती हूं ….न जाने क्यों उनकी मौत से मैं खुद को लज्जित महसूस करती हूं… पता नहीं क्यों मुझे धोखा देकर अकेला छोड़ गए । बच्चे समझाते भी… दुनिया का यही दस्तूर है माँ …पर सुभद्रा जी तो जैसे विश्वनाथ जी के बिना खुश रहने और खुश होने का हक ही खोती जा रही थीं ।

विश्वनाथ जी के जाने के बाद सुभद्रा जी में एक और बदलाव आया था छोटी-छोटी सी बात में उन्हें बहुत ज्यादा दुख लगने लगा था विश्वनाथ जी के रहने पर वही बातें बहुओं द्वारा बोली जाती थी जिसे वो बिल्कुल भी ध्यान नहीं देती थी पर अब वही छोटी मोटी बातें उन्हें तिरस्कृत महसूस कराती थीं ।

गिरिजा के आने से घर का माहौल खुशनुमा हो जाया करता था बच्चों के जबरदस्ती बुलाने के आग्रह को सुभद्रा जी टाल ना सकीं और पास जाकर बैठ गई ।

हां तो दीदी बताइए ना जीजा जी प्यार से आपको क्या बोलते हैं , हां हां दीदी बताइए ना सभी देवरानी जेठानी मिलकर ननंद को छेड़ने लगीं..

अरे भाभी ये ना बड़े चालाक हैं कुछ काम करवाना हो तो …प्लीज मैडम ये कर दीजिए ना… या कभी-कभी तो स्वीटी , परी …शरमाते शरमाते गिरिजा ने कहा , और तो और दूसरों के सामने “गिरिजा जी ” कहकर संबोधित करते हैं तभी तो आप लोग कहते हैं ना नंदोई जी आपका कितना इज्जत करते हैं …और सब ठहाके मार मार कर हंसने लगे ।

आज सुभद्रा जी के चेहरे पर भी हल्की मुस्कान थी ..स्वर्णा ने सासू माँ का चेहरा देखते ही कहा , प्लीज सासू माँ बताइए ना …ससुर जी आपको प्यार से क्या कहते थे ? हां माँ बता ना पापा तुझे प्यार से क्या बोलते थे ? गिरिजा ने भी स्वर्णा का समर्थन किया और वहां बैठी सभी बहूओं ने भी आग्रह किया.. बताइए ना सासू माँ.. बताइए ना..

एक मिनट के लिए सुभद्रा जी के दोनों गालों पर लालिमा छा गई ..चेहरे पर शर्म और झेंप के मिश्रित भाव के साथ-साथ खुशी भी झलक रही थी ।

” रानी “……. रानी कहते थे मुझे.. कहकर अपने दोनों हाथों से चेहरे को शरमा कर ढक लिया …सच में आज कितने दिनों के बाद सुभद्रा जी के चेहरे पर वह रोमांच भरी खुशी , अतीत के सुखद पल याद कर मुस्कुराना गजब का सुकून दे रहा था , और यह सुकून सिर्फ सुभद्रा जी को ही नहीं पूरे परिवार की महिलाओं को मिल रहा था । अब से हमारी टोली में सासू माँ भी शामिल । हां हां भाई अब तो हमारी सासू माँ , सासू माँ के साथ-साथ दोस्त भी बन गई।

सासू माँ अब ये भी बता ही दीजिए.. जब ससुर जी भी इतने रोमांटिक थे तो ये किसके ऊपर गए हैं कभी भी प्यार से कोई नाम दिया ही नहीं …केवल ” ए जी “… ” ओ जी ” के अलावा ! धत पगली ….तू भी ना…. कह कर सुभद्रा जी और अन्य सभी हंसने लगे ।

सच में साथियों , कभी-कभी सभी रिश्तों के मर्यादाओं को ध्यान में रखते हुए एक दोस्ताना व्यवहार भी रखना जरूरी होता है.. ताकि किसी भी अवस्था में हम घर में सबके साथ होते हुए भी कभी अकेला ना अनुभव कर सके ।

( स्वरचित , अप्रकाशित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित रचना )

श्रीमती संध्या त्रिपाठी

VM

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