सच्ची जीत – संगीता अग्रवाल   : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :  विद्यालय मे दौड़ प्रतियोगिता शुरु हो गई थी । सभी बच्चे अपना जोर लगा रहे थे प्रथम आने के लिए और उनके माता पिता भी तो उनका उत्साह बढ़ा रहे थे । वही विद्यालय के बाकी बच्चे एक तरफ बैठे नायरा नायरा चिल्ला रहे थे क्योकि नायरा हर बार प्रतियोगिता जीतती आई है तो सबको उम्मीद थी इस बार भी नायरा जीतेगी पर ये क्या वो तो जीत के करीब आती आती हार गई क्योकि अचानक से गिर पड़ी वो और इस बार शीना प्रथम आई उसने मुड़ कर एक बार नायरा की तरफ देखा फिर अजीब सी मुस्कान के साथ आगे बढ़ गई। उसकी इस मुस्कान का मतलब कोई और समझा हो या नही पर दर्शकों मे बैठी उसकी माँ मयूरी समझ गई।

” मम्मा देखो मै जीत गई मैने नायरा को हरा दिया !” ट्रॉफी के साथ शीना खुश होते हुए मयूरी से लिपट गई।

” बेटा तुमने नायरा को हराया जरूर है पर तुम जीती हो क्या तुम ऐसा मानती हो ?” मयूरी बेटी से बोली।

” बिल्कुल मम्मा जब मैने नायरा को हराया है तो जाहिर है मैं ही जीती हूँ !” शीना दुविधा मे पड़ी हुई बोली। उसे मम्मा की बात अजीब लग रही थी क्योकि उसकी नज़र मे तो वही जीती थी। 

” अच्छा इधर बैठो जरा और मुझे ये बताओ अगर नायरा तुम्हारी हरकत के बारे मे सबके सामने बता देती तो क्या होता ?” नायरा को एक बेंच पर बैठाती हुई मयूरी ने मुस्कुरा कर पूछा।

” कैसी हरकत मम्मा आप ऐसा क्यो बोल रही हो आप अपनी बेटी के जीतने पर खुश नही हो ?” माँ से नजर चुराती शीना बोली।

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” बेटा बिल्कुल खुश होती अगर तुमने फेयर गेम खेला होता पर मैने देखा था तुमने नायरा को गिराया था अपना पैर अडा कर पर क्या ये सही था एक मामूली सी रेस जीतने के लिए !” मयूरी ने जैसे ही ये बोला शीना हैरान रह गई क्योकि उसे तो लगा था उसे ऐसा करते किसी ने नही देखा होगा पर ….!

” वो मम्मा …नायरा हर बार जीतती है टीचर उसे पसंद करती है सभी बच्चे उससे दोस्ती करना चाहते है बस यही देख मुझे उससे जलन होती थी बस इसलिए मैने वो …मुझे माफ़ कर दो मम्मा !” शीना शर्मिंदा होते हुए बोली।

” बेटा वो जीतती है क्योकि उसमे काबिलियत है किसी की काबिलियत पर जलने से अच्छा तुम खुद् को इस लायक़ बनाओ कि तुम उससे आगे निकल सको पर ईमानदारी से यूँ उसे गिराकर नही । सोचो अगर उसने शिकायत कर दी होती तो तुम ना केवल शर्मिंदा होती बल्कि तुम्हे स्कूल से निकाला भी जा सकता था ! इसलिए मैने कहा तुमने नायरा को हराया भले है पर तुम जीती नही हो क्योकि जीतता तो वो है जो फेयर गेम खेलता है ।” मयूरी बोली।

” सच कहा मम्मा आपने नायरा ने मेरी शिकायत नही की क्योकि मैं उसकी दोस्त हूँ पर मैंने उसके साथ दोस्ती नही निभाई बल्कि जलन के कारण उसे गिरा दिया मैं बहुत गंदी हूँ !” शीना को अपनी गलती का एहसास हो गया था ।

” नही बेटा तुम गंदी नही हो बस जलन के कारण तुमने ऐसा किया !” मयूरी ने बेटी को समझाया । शीना माँ से कुछ बोलने की जगह ट्रॉफी को देखने लगी और फिर वहाँ से उठकर जाने लगी मयूरी ने उसे आवाज़ भी दी पर उसने जवाब नही दिया और सीधा खेल की अध्यापिका के पास पहुंची और उनसे कुछ कहा। मयूरी ने देखा उसकी अध्यापिका के चेहरे पर थोड़ा गुस्सा था और वो शीना को ले मुख्य अध्यापिका की तरफ बढ़ी जो एक तरफ बैठी थी। मयूरी भी उनके पीछे वहाँ पहुंची। 

” बेटा ये तुमने गलत किया ऐसे नायरा को गिराया !” मुख्याधियापिका शीना से बोली।

” मुझे माफ़ कीजिये मेम मैं ये ट्रॉफी भी लौटा रही हूँ क्योकि मैने इसे जीता नही है !” शीना सिर नीचे किये हुए बोली।

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” बेटा तुमने रेस भले नही जीती पर खुद से अपनी गलती मान और ये ट्रॉफी लौटा तुमने हमारा दिल जीत लिया वरना किसमे इतनी हिम्मत होती है जो जीतने के बाद अपनी हार स्वीकार कर ले । अब जब तुमने सबका दिल जीत लिया तो ट्रॉफी तो बनती है ना तो ये तुम्हारी है  !” मुख्याध्यापिका बोली ।

” नही मेम इसपर नायरा का हक है क्योकि मैं उसे ना गिराती तो वही जीतती !” शीना अभी भी शर्मिंदा थी।

” बेटा हम उसे भी ट्रॉफी दे देंगे पर इसपर तुम्हारा ही हक है क्योकि इसे तुमने जीता है नायरा को हरा कर भले नही जीता पर अपने अंदर की जलन को मिटा सच बोल जीता है !” अध्यापिका प्यार से बोली। तभी वहाँ नायरा भी आ गई सब बात जान उसने शीना को गले लगा लिया । 

थोड़ी देर बाद मुख्याध्यापिका ने दुबारा माइक संभाला और नायरा को भी विजेता घोषित कर दिया क्योकि वो बिल्कुल पॉइंट पर आकर गिरी थी। 

” शाबाश बेटा अब सही मायने मे तुमने बस हराया नही तुम जीती भी हो !” मयूरी शीना को गले लगा बोली।

मुख्याध्यापिका ने शीना के सच बोलने पर उसे सजा देने की जगह पुरस्कार इसीलिए दिया क्योकि वो नही चाहती थी भविष्य मे शीना सच बोलने से हिचकिचाये साथ ही उन्होंने ना तो सबके सामने शीना की गलती बता उसे शर्मिंदा किया ना नायरा के साथ नाइंसाफी होने दे। उन्होंने ऐसा निर्णय लिया जिससे शीना के मन से जलन और ईर्षा खत्म हो गई। मयूरी भी खुश थी कि उसने बेटी को सही समय पर सही सीख दी । इधर शीना को भी जीत का असली मतलब समझ आ गया था।

दोस्तों किसी से जलन रख , उसका अहित कर हम कुछ हांसिल भी कर ले तो क्या वो हमें सच्ची खुशी देता है नही ना क्योकि उसे हमने हांसिल नही किया होता धोखे से छीना होता है। बिना ईर्षा , द्वेष और जलन के भले हम हार जाये पर हम खुद की नजर मे गिरने से बच जाते है। 

आपकी दोस्त 

संगीता अग्रवाल

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