ईर्ष्या की पाठशाला- आरती झा : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : “मालिनी..मालिनी.. मालिनी, बचपन से लेकर आज तक हर किसी की जबान पर यही इक नाम सुन सुन कर मैं थक गई हूॅं।” मालिनी की जुड़वां बहन शालिनी छात्रावास के कमरे में बड़बड़ाती हुई टेबल पर रखे सारे सामान को बिखरा देती है। गुस्सा आने पर शालिनी वीभस्त रुप धारण कर लेती थी, जिससे सभी उससे बचने की कोशिश करते थे।

स्नातक अंतिम वर्ष की छात्रा शालिनी और मालिनी एक सा रंग, एक से नैन नक्श वाली जुड़वां बहनें। यहाॅं तक की दोनों के गुण भी लगभग एक से थे। दोनों को चित्रकारी पसंद थी, दोनों ही पढ़ाई और खेल कूद में अव्वल आती थी। विद्यालय से ही एक दूसरे की प्रतिद्वंदी ये दोनों ही थी। कभी शालिनी का डंका बजता तो कभी मालिनी का और दोनों खुशी खुशी इस स्वीकार करती थी।

लेकिन दोनों में एक बहुत बड़ा अंतर था, गुस्सा। जहाॅं मालिनी को यदा कदा ही गुस्सा आता था, वही शालिनी के नाक पर गुस्सा रहता था। गुस्से में समान तोड़ फोड़ करना, अनाप शनाप बोलना उसकी फितरत थी। बड़े छोटे का भेद तो भूल ही जाती थी। इस कारण से सभी मालिनी को ज्यादा मान देते थे और सारे गुण होते हुए भी शालिनी से सभी कटे कटे रहते थे। इस वजह को न समझते हुए शालिनी हमेशा मालिनी से खार खाए रहती थी।

शालिनी के अनुसार आज तो हद्द ही हो गई। आज जब महाविद्यालय के वर्षिकोत्सव में महाविद्यालय की सबसे चहेती छात्रा के रुप में मुख्य अतिथि से मालिनी को मिलवाया गया तो शालिनी की जलन कुढ़न दबी नहीं रह सकी। आज उसकी ईर्ष्या का पैमाना आसमान पर था।

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“जो भी हो इस बार उसे परीक्षा में असफल होना ही होगा। अव बहुत हो गया। आखिर मैं उससे किस चीज में कम हूॅं।” कमरे के सामानों को तितर बितर करती शालिनी नागिन की तरह फुफकार रही थी।

“मेरे सारे नोट्स कहाॅं गए।” कभी आलमीरा खोलती, कभी बिस्तर के नीचे झाॅंक कर देखती मालिनी परेशान सी हो गई थी।

“क्या हुआ मालिनी।” शालिनी कमरे में आती है तो परेशान मालिनी से पूछती है।

“एक महीने बाद से परीक्षा प्रारंभ होने वाला है और मेरे नोट्स नहीं मिल रहे हैं।” मालिनी रुआंसी होकर कहती है।

“कहाॅं रखे थे तुमने।” शालिनी अनजान बनी पूछती है।

“सब यही टेबल पर ही थे, बस कुछ देर के लिए नीचे गई थी और अब हैं ही नहीं।” मालिनी रोने लगी थी।

“क्या पता तुम्हें भ्रम हो रहा ही, तुमने कहीं और रख दिया हो और तुम्हें याद नहीं आ रहा हो या कॉलेज में ही छोड़ आई हो। ये लो पानी पियो, कल कॉलेज में देखना, मिल जाएंगे।” 

हाॅं…शालिनी के हाथ से गिलास लेकर पानी पीकर बिना खाए ही शालिनी सो गई।

हाहाहा…मजा आ गया। छत पर कागज जलाती शालिनी हॅंसे जा रही थी और मालिनी जो कमरे में शालिनी को न देख खोजती हुई छत पर आ रही थी और सीढ़ियों से शालिनी को कागज़ जलाते देख बुत सी बन गई थी।

तंद्रा तो उसकी तब टूटी जब उसने सुना शालिनी कह रही थी,” अब देखती हूॅं मालिनी कैसे इस बार अच्छे नंबर का पाती है।”

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मालिनी समझ गई थी कि वो जो कागज़ शालिनी जला कर उड़ा रही थी, वो सारे उसके नोट्स थे। इस घटना से आहत होकर धड़कते हृदय से कमरे में आकर लेट गई और उसके नैनों ने गंगा यमुना बहाना शुरू कर दिया।

मालिनी जो की बिना नोट्स के बिल्कुल खाली हाथ सा अनुभव कर रही थी, प्रातः का सूरज उगने से पहले ही स्वयं को वचन दे चुकी थी कि वो हर नहीं मानेगी, वो जीतने के लिए लड़ेंगी।

मालिनी बिना वक्त गंवाए अपने वचन को अंजाम देने में लग गई। उसने अपने शिक्षकों से मदद मांगी और अपनी पढ़ाई को नए सिरे से शुरू किया। वह हर दिन निरंतर मेहनत करती गई और नई तरीकों से सीखने का प्रयास करती रही।

“मालिनी पेपर कैसे हुए।” शालिनी जिसने मालिनी के मेहनत को कम आंका था, प्रत्येक पेपर के बाद जरूर पूछती और मालिनी मुस्कुरा कर रह जाती।

“चलो अब पेपर खत्म हो गए, कुछ पार्टी–शार्टी की जाए।” दोनों की सहेली दिव्या कहती है।

“हाॅं पार्टी तो करेंगे ही। लेकिन इस बार तो मालिनी बेचारी किसी तरह पास भर हो पाएगी। चलो हम दोनों ही पार्टी करती हैं।” शालिनी अपने चेहरे पर दुःख का सागर लहराती हुई मालिनी की ओर देखकर बोली।

“हाॅं, तुमलोग जाओ। मैं आराम करूॅंगी।” मालिनी के ऐसा कहने पर शालिनी और दिव्या बाहर चली गई।

“शालिनी इतनी जल्दी तैयार हो गई। आज कॉलेज में कुछ है क्या?” मालिनी ने समय से पहले तैयार हुई शालिनी को देखकर पूछा।

“आज परिणाम आने वाला है। मेधावी की सूची में पहला नाम तो मेरा ही होगा। तुम्हारे लिए बुरा भी लग रहा है।” शालिनी कहती है।

कॉलेज में परिणाम देखने की होड़ लगी थी। मालिनी और शालिनी को देखते ही सभी परिणाम छोड़कर मालिनी को प्रत्येक विषय में अव्वल आने की बधाई देने लगे और उसे बताया कि अब आगे पढ़ने के लिए उसे कॉलेज की तरफ से छात्रवृत्ति मिलेगी। 

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“पर पर ऐसा कैसे हो सकता है।” शालिनी के तो काटो तो खून वाली स्थिति थी क्योंकि कभी प्रथम कभी द्वितीय आने वाली शालिनी इस बार किसी तरह नीचे से टॉप टेन में स्थान बना सकी थी।

उसका सारा गुरूर टूट चुका था इसीलिए आज वो कुछ भी तोड़ फोड़ नहीं रही थी।

“शालिनी कोई बात नहीं, तुम्हें सिविलस की तैयारी करनी है ना, देखना अब उसमें तुम अव्वल आओगी।” शालिनी की पीठ सहलाती मालिनी कहती है।

“ईर्ष्या की पाठशाला ने मुझे अच्छी तरह समझा दिया कि किसी भी चीज़ को हासिल करने के लिए मेहनत और संघर्ष करना जरूरी होता है। ईर्ष्या करने के बजाय अपनी मेहनत और प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।” शालिनी के चेहरे पर फिर से मेहनत की ज्योति जल चुकी थी।

“तो ये थी मेरी कहानी, आपने पूछा कि मुझ सर्वश्रेष्ठ होने की 

प्रेरणा कहाॅं से मिली तो वो ईर्ष्या की पाठशाला थी। अगर इसे भी हम सही मार्ग पर चला दें तो मंजिल तक पहुॅंचा देती है। इसलिए मैं अपने युवा साथियों से कहूॅंगी कि ईर्ष्या तो हमारा स्वाभाविक गुण है लेकिन उसे सकारात्मक मोड़ दें तो वो भी बिना आपको हानि पहुॅंचाए एक सकारात्मक राह हाथ में थमा देगी।” आईपीएस शालिनी शर्मा जिसने पूरे देश में प्रथम स्थान प्राप्त किया था, उसके लिए तालियों की गड़गड़ाहट आसमान छू रही थी।

#जलन

स्वरचित 

आरती झा

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