Moral Stories in Hindi : आज कोचिंग सेंटर में “आत्महत्या से बचाव”विषय पर कार्यशाला आयोजित हो रही थी। अपने -अपने घरों से दूर बच्चे प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने आए थे।एक प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक का व्याख्यान होने वाला था कार्यक्रम में।सभागृह को सजाया जा रहा था।रात के खाने की व्यवस्था भी की गई थी।मंजू,जो कि हमारे कॉलोनी में लोगों के घरों में खाना पकाती थी,को खाने का ऑर्डर मिला था।वह अपने बेटे और पति के साथ ऐसे कार्यक्रमों में खाना बनाती थी।
एक पास उसे मिला था।आज सुबह ही काम पर आते ही बोली”मैडम जी,आप भी तो कितने सालों से पढ़ा रहीं हैं बच्चों को।हमेशा अच्छी बातें बताती रहतीं हैं।मेरे पास एक्शटरा पास है।आप ले लीजिए,जरूर आइये।मेरे हांथ का खाना भी खाइयेगा।”मैं असमंजस में पड़ गई कि मुझे जाना चाहिए या नहीं।मुझे अतिथि के रूप में तो बुलाया नहीं गया।
क्या सोचेंगे कोचिंग सेंटर वाले? वहां पढ़ने वाले अधिकांश बच्चे आते हैं मेरे पास,सोशल पढ़ने कभी-कभी।जाऊं या नहीं यही सोचते-सोचते शाम हो गई।आठ बजे का समय निर्धारित था ।कुछ नया सीखने को मिलेगा यही सोचकर पहुंच गई वहां।मुझे देखकर मंजू पल्लू में हांथ पोंछते दौड़ी आई।
उसकी खुशी देखकर लग रहा था मानो उसके घर के कार्यक्रम में पहुंची हूं।किसी से पूछने की जरूरत ना समझते हुए सामने की कुर्सी पर बिठाकर ही दम लिया उसने। कार्यक्रम में नामी गिरामी हस्तियां उपस्थित थीं।शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभाने वाले विशेषज्ञ मुख्य अतिथि के साथ बैठे थे।
विद्वानों ने बहुत ही प्रेरक भाषण दिया। मनोवैज्ञानिक महोदया का संबोधन शुरू हुआ।मैं किंकर्तव्यविमूढ़ होकर सुन रही थी और शून्य हो रही थी।अपने अनुभवों को अपने व्याख्यान में इतने अच्छे से संयोजित किया था उन्होंने कि मेरी पलकें भी नहीं झपकी।तालियों की गड़गड़ाहट से ज्ञात हुआ कि उनका व्याख्यान समाप्त हो चुका है।
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अब आगे कुछ नृत्य और नाटक जो छात्रों ने तैयार किए थे,वही बचे थे।मैंने भी अब उठने की सोची तभी मंजू कोने से अभी और रुकने की विनती कर रही थी।ये मंजू भी ना पागल है। बेइज्जती करवा के ही छोड़ेगी।तभी माइक में एक छात्र बोला “मैम,बस कुछ देर और रुक जाइये प्लीज़।”अरे यह तो शेखर है।बीच में बहुत बीमार पड़ गया था नई जगह आकर।अक्सर घर आकर सोशल के डाउट क्लियर कर लेता था।
शेखर ने माइक छोड़ा नहीं था अभी तक।अपने दो चार दोस्तों के साथ गीत गाया उसने।”ज़िंदगी प्यार का गीत है,इसे हर दिल को गाना पड़ेगा।जो लाइन मुझे बहुत पसंद थीं “जिसका जितना हो आंचल यहां पर,उसको सौगात उतनी मिलेगी,,,।वह गाते-गाते अचानक बोला “अब आपके सामने हम सुधा मैम को बुलायें हैं,अगली लाइंस गाने के लिए।
“मैं तो पहाड़ से गिरी।इतनी भारी आवाज में गाना।मैंने कहा शेखर से,”मैं बिल्कुल भी अच्छा नहीं गाती बेटा।”उसने बिना मेरी बात सुने माइक पकड़ा दिया और साथ में गाने लगा।डर के मारे मेरे पैर कांप रहे थे।किसी तरह गाना खत्म होते ही जैसे मंच से उतरने को हुई, शेखर ने बोला”मैम,थोड़ी देर खड़े रहिए ना मेरे साथ।मुझे आज आपकी जरूरत है।”
मैं फिर असमंजस में थी,मेरी जरूरत!!
शेखर को बेस्ट स्टूडेंट का अवार्ड मिल रहा था।उसने तब कहा”यह अवार्ड में अपनी मां के हाथों में देना चाहता हूं।”सारे जजों की निगाहें मंच से नीचे ढूंढ़ रही थी शेखर की मां को।शेखर मुझे हांथ पकड़ कर अपने पास खड़ा किया और बोला”मैम,मैं कभी आपको बता नहीं पाया।मेरी मां अब इस दुनिया में नहीं हैं।यहां आकर पढ़ाई का दवाब में सह नहीं पा रहा था।ग़लत संगत में पड़ गया था।एक दिन आपके पास बैठकर समझा कि संगत का कितना असर पड़ता है।
मैं सिगरेट भी पीने लगा था और वह भी आपकी डांट ने छुड़ाई। रात-रात जागकर मोबाइल खंगालता रहता था।एक दिन आप मंजू आंटी के बेटे को समझा रहीं थीं कि देर रात तक जागने से यूरिक एसिड बढ़ जाता है,जो किडनी फेल की वजह बन जाती है।मेरा एक लड़की से ब्रेक अप हुआ तो मैं जीना नहीं चाहता था।
जिस दिन अपने कमरे में पंखएं में रस्सी डाली,आपके घर से आपकी आवाज़ में यही गाना सुनाई दिया”जिसका जितना है आंचल यहां पर,उसको सौगात उतनी मिलेगी।”मैंने आत्महत्या का विचार मन से पोंछ दिया और पढ़ाई पर ध्यान दिया।मेरा पुरस्कार आपके स्नेह का आशीर्वाद है।क्या मैं आपको मां बोल सकता हूं?”
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उस जगह उपस्थित सभी की आंखें भींगी हुई थीं।मेरी चेतना शून्य हो गई थी।यह क्या मांग लिया बच्चा।इतना बड़ा विश्वास मांग लिया मुझसे।मैंने उसे मेडल पहनाया,तो वह पैरों में झुककर प्रणाम करने लगा।उसकी गर्म आंसुओ की बूंदें मैंने महसूस की अपने पैरों में।मैं बस इतना ही बोली”शेखर मैंने कुछ नहीं किया ,ये तुम्हारा समर्पण है जो तुम बेस्ट स्टूडेंट बने।”
शेखर अब मेरा हांथ पकड़ कर रोते हुए बोला”आपने अनजाने में ही सहज तरीके से हमें ज़िंदगी का मतलब सिखाया।एक मां की तरह शरीर की देखभाल करना सिखाया।अपने गानों से आपने पता नहीं मेरे जैसे कितने छात्रों को रोक चुकी होंगीं आत्महत्या करने से।”आप हमारे लिए मोटिवेशनल गुरु मां हैं। मैं इतना ही बोलना चाहूंगा आप सभी गुरुजनों से , पैरेंट्स से और छात्रों से कि जब कभी आपको किसी दूसरे की आंखों में तकलीफ़ दिखे तो, प्लीज़ पूछ लिया कीजिए।
पता नहीं कौन फ्रस्ट्रेशन में है,किसी के पास शायद पैसे खत्म हो गएं,किसी लड़के या लड़की को उसके दोस्त ने ठुकरा दिया है,या घर से दूर कोई मां को मिस कर रहा होगा।आपकी एक सवालिया नजर उसे बचा सकती है।आपकी प्यार से दी गई डांट शायद उसे बचा ले।आपका स्नेहिल स्पर्श शायद उसे मां की गंध दिला दे,और वह फिर ने सिरे से तैयारी कर सके।”पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा।
कोचिंग सेंटर के मालिक ने मुझसे कुछ शब्द बच्चों को कहने के लिए बोला तो मैं रोक न सकी ख़ुद को ,बोली”बच्चों तुम अपने मां-बाप के लिए सबसे खूबसूरत,सबसे विद्वान और सबसे सफल हो।तुम्हें यहां दूसरे शहर भेजा गया है ख़ुद को निखारने के लिए,तो बिखरना मत।तुम्हें यहां नई -नई चीजें एक्सप्लोर करने भेजा गया है , एग्जिबिशन में नहीं।तुम परीक्षा में सफल होंगे या नहीं यह प्रमाणित बाद में होगा ।
तुम्हारे माता-पिता के संस्कारों और उम्मीदों से तो तुम सब दीक्षित होकर ही आए हो। डिप्रेशन शब्द का इस्तेमाल करके अगर मां -पिता को बेवकूफ ही बनाना है,तो छोड़कर चले जाने में देरी मत करना।उनसे दूर होकर तुम उनकी कमी महसूस करते हो ना ,ठीक वैसे ही वो भी तुम्हें मिस करतें हैं।
एक अच्छा इंसान बनने पर पहले फोकस करो।अरे परीक्षा में नहीं पास हुए तो रहोगे अपने माता-पिता के साथ और कर लोगे जीने के लिए कुछ ना कुछ कमाई।आस हो गए तो चले जाओगे अच्छे पैकेज पर कहीं और।तब पैसे भेजोगे उन्हें।यदि तुम रहे ही नहीं दुनिया में तो दो इंसान जीते जी लाश बन कर जिएंगे तुम्हारे बिना।”मैं ही क्या हर आदमी जो वहां उपस्थित था रो रहा था ,अपने बच्चों को याद कर,और हर बच्चा रो रहा था अपने माता-पिता को याद कर।
आज मुझे यह दैवीय दर्शन की अनुभूति हुई।जो बच्चा माता-पिता के लिए रोएगा ना ,वो कभी आत्महत्या नहीं करेगा। नागरिक होने के नाते क्या यह हम सभी का दायित्व नहीं होना चाहिए कि किसी जाने वाले को रोक लें??
शुभ्रा बैनर्जी