Moral stories in hindi : वह किसी की परवाह नहीं करती। खूबसूरत, अल्हड़, हरफनमौला, मस्त मौला……. बेपरवाह……। लड़की होने का कोई गुण नहीं था उसमें। मां ने अभिलाषा नाम रखा था उसका! इस नाम से भी घर के लोगों को चिढ़ थी। दो लड़कियों के बाद उसका जन्म हुआ था। घर के सारे लोग नाक-भौंह सिकोड़े हुए थे।
मातम मना रहे थे उसके होने का। मां को ताना दिए जा रहे थे। क्या गलती थी, मां की या मेरी?? सारी बातें उसे बड़े होने पर पता चला। अभिलाषा की चाची को दो-दो लड़के थे। चाचा- चाचा बेटों के होने से अपने आपको बहुत खुशनसीब समझते थे और उन्हें घमंड भी हो चला था। बेटियों के होने से उसकी मां तो घर में उपेक्षित थी ही, उनकी बेटियां भी उपेक्षित थीं। पापा निहायत सीधे थे, वे उन लोगों की बातों को चुपचाप सुन लेते थे।
चाचा -चाची के बेटों को दादा- दादी का भी प्यार और सामान मिलता था, उन्हें नहीं। बचपन में अभिलाषा का बाल मन समझ नहीं पाता था लेकिन जैसे-जैसे वह बड़ी होती गई ,उसके मन में तरह-तरह के प्रश्न उपजते थे कि दादा-दादी हमारे साथ ऐसा व्यवहार क्यों करते हैं। धीरे-धीरे उसे समझ आ गया कि क्यों ऐसा होता है हमारे साथ क्योंकि हम लड़की हैं। अभिलाषा की दोनों बहनें दब्बू हो गईं थीं लेकिन वह उनके बिल्कुल विपरीत। किसी से नहीं डरती थी वह! अगर कोई कुछ कहता तो उसी के हिसाब से वह जवाब भी पाता था। वह क्यूं डरे भला! लड़की है इसलिए?
जब भी मां उसे समझाती तो कहती,”मां मेरा लड़की होना गुनाह है? मैं किसी मायने में चाचा के लड़कों से कम हूं? बताओ मुझे। पढ़ाई में भी उन लोगों से आगे हूं। अपंग भी नहीं हूं, तो क्यों मैं अपने आप को कमजोर समझूं?? बहुत हो गया मां!! यदि कोई मुझे, मेरी बहनों को या तुम्हें कुछ उल्टा -सीधा बोलता है तो मैं उन्हें छोडूंगी नहीं! अब कोई कुछ कह कर तो देख ले!”
अभिलाषा से घर के लोग संभल कर ही बोलते थे कि कहीं उसके द्वारा उनकी बेज्जती ना हो जाए। मां के समझाने का भी उस पर कोई असर नहीं होता।
वह हमेशा अपनी मां से कहती रहती थी,”मां देखना एक दिन तुम्हारी यह बेटी कुछ ऐसा कर दिखाएगी कि लोगों के दिलो दिमाग से बेटी के लिए जो सोच है वह बदल जाएगी! बेटा से जो अरमान पूरे ना होंगे, वह अरमान तुम्हारी यह बेटी पूरा करेगी।”
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मां के मन- मिजाज को वह हमेशा अपनी बातों से साफ कर दिया करती थी। स्कूल में भी उसका कम दबदबा नहीं था। एक बार एक लड़के ने उसे कुछ फब्तियां कसी। उसने न आव देखा न ताव, लपक कर उसके कॉलर पकड़कर जोरदार तमाचा लगाया। उसकी सहेलियां भी उसके साथ थीं। वह बेचारा अपनी बेज्जती देख जान बचाकर भागा। नहीं तो पता नहीं वह क्या कर बैठती!
जब उसकी सहेली ने उसकी मां से यह बात बताई तो मां की धड़कनें बढ़ गई। मां ने डांटते हुए कहा,”अभिलाषा! तुम मुझे जीने दोगी या नहीं? मैं यह सब क्या सुन रही हूं? नाक कटा दी तुमने मेरी!”
अभिलाषा तमतमा गई। “यह तुम क्या कह रही हो मां! क्या मैं उस लड़के को यूं ही छोड़ देती? जो कुछ भी कहता उसे सुन लेती? इसलिए कि मैं लड़की हूं? तुम दूसरों की बातों में क्यों आ जाती हो मां! तुम्हारी बेटी ने कुछ गलत नहीं किया। तुम्हें तो खुश होना चाहिए , तुम्हारी बेटी अपनी रक्षा खुद कर सकती है।”मां को भी अब एहसास हो गया कि मेरी बेटी ने जो कुछ किया, सही किया। मेरी दोनों बेटियां दब्बू हो गईं जो परिवार के लोगों की देन है।तब मैं कुछ बोल नहीं पाती थी। अभिलाषा मेरी बेटी नहीं, बेटा है। बेटे का अरमान यही पूरा करेगी। मेरी दोनों बेटियां जैसे -तैसे पढ़ाई कर लीं। अब और नहीं….। मैं अभिलाषा के मार्ग में किसी भी बाधा को आड़े नहीं आने दूंगी।”
चाचा- चाचा को बेटा होने का बहुत गुरूर था जो उनके बेटों ने ही धूमिल कर दिया। वे आवारा हो गए थे। घूमना- फिरना तो दूर, जुए की लत भी लग गई थी उन्हें। आए दिन घर में हो -हंगामा होते रहता था। मां-बाप को मुंह दिखाने के काबिल नहीं छोड़ा था बेटों ने।
अभिलाषा के अंदर एक जज्बा था, जुनून था, चाहत थी कुछ कर गुजरने की। वह अपने मां-बाप के अरमानों को पूरा करेगी जो बेटा ना कर पाए। वह जी जान से अपने करियर पर फोकस की थी। अब मां भी उसे”तुम लड़की हो!”की भावना से दूर रखती थी। उसे हर तरह से प्रोत्साहित करती थी। मां -बाप को भी एहसास होने लगा था,”क्या हुआ बेटा नहीं, मेरी बेटी ही सारे अरमानों को पूरा करेगी।”
सब कुछ वैसा ही हो रहा था जो अभिलाषा चाहती थी क्योंकि उसने ठान लिया था, उसे कुछ करना है, कुछ बन के दिखाना है। हर क्लास में वह प्रथम स्थान पाती थी। पढ़ाई के साथ-साथ वह खेल में भी आगे थी। फुटबॉल में उसे ज्यादा दिलचस्पी थी। स्कूल के फुटबॉल टीम में उसे शामिल किया गया था। मां- पापा को खेलना पसंद नहीं था।कहते,”लोग क्या कहेंगे, यही ना कि सर पर चढ़ा रखा है हमने!”अभिलाषा की ज़िद और तर्क के आगे उसके मां-बाप को भी हार माननी पड़ी और उसे खेलने की सहमति दे दी। धीरे-धीरे वह खेल में आगे बढ़ती गई। स्टेट खेला… फिर इंटरनेशनल खेला ।शील्ड जीतकर जब वापस अपने शहर आई ,लोगों ने उसका बहुत सत्कार किया। सबके मुख से बेटी की प्रशंसा सुन अभिलाषा के मां- पापा का सीना चौड़ा हो गया। उन्होंने अभिलाषा को गले लगाते हुए कहा,”मुझे तुम पर नाज है। बेटा ना होने से जो अधूरे अरमान थे वह आज तुमने पूरा कर दिया!”
संगीता श्रीवास्तव
लखनऊ
स्वरचित, अप्रकाशित।
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