लिफ्ट – जयसिंह भारद्वाज

वर्ष 1992 दिसम्बर की सर्द रात्रि में समय नौ बजे थे। मैं नौबस्ता बाईपास पर रामादेवी चौराहा तक जाने के लिये किसी वाहन की प्रतीक्षा कर रहा था। वस्तुतः आज मुझे अपने दफ्तर में एक टेंडर के कागजात तैयार करने में समय लग गया था। यद्यपि फैक्ट्री मालिक ने कहा भी था

कि वे मुझे कार से घर पहुँचा देते हैं किंतु किसी का एहसान न लेने की मेरी आदत में तत्क्षण उन्हें मना कर दिया और दफ्तर से एक किमी पैदल चलकर नौबस्ता चौराहे पर आकर वाहन की प्रतीक्षा करने लगा।

मुझे आशा यही थी कि बर्रा से आने वाला शायद कोई टेम्पो मुझे भी अपने गंतव्य तक पहुँचा देगा। पहले भी एक दो बार ऐसा हुआ था। उस समय आज दिखने वाली रूमा से भौंती तक लगभग सत्ताईस किलोमीटर लम्बी उपरिगामी सड़क (एलिवेटेड रोड) नहीं बनी थी। सभी वाहन इसी बाइपास रोड से ही निकलते थे।

शाम की हल्की बदली अब घनी हो चुकी थी और सर्द नम हवा ठिठुरने को विवश करने लगी थी।रात के साढ़े दस बज गए और तब तक चौराहे पर बने थाने से निकले गश्ती पुलिस के सिपाहियों ने एक दो बार मुझसे पूछताछ भी कर ली थी क्योंकि मैं बड़ी देर से चौराहे पर एकाकी खड़ा था।

अब बूँदें गिरने लगी तो मैंने उधर से निकलने वाले हर वाहन को रोकने के लिए हाथ देना आरम्भ कर दिया था। डर भी लग रहा था इसलिए गायत्री मंत्र, हनुमान चालीसा और माँ भगवती के कीलक मन्त्र को भी बुदबुदाता जा रहा था। इसी समय उस समय की स्कूटर कम्पनी एलएमएल की दस बजे वाली ड्यूटी

ऑफ करके कर्मचारियों की एक बड़ी खेप बाइक व स्कूटर्स पर निकली। मैं हाथ देता रहा किन्तु कोई नहीं रुका। तेज बारिश होने लगी थी। सुबह से कोई अंदेशा नहीं था इसलिए बचाव के कोई संसाधन नहीं थे मेरे पास। मैं लगातार भीगता ही जा रहा था।

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जैकेट भीग चुका था और मैं अंदर तक पानी से सराबोर हो चुका था। पहली फुहार के साथ ही बिजली जा चुकी थी। घनघोर अंधेरे को इक्कादुका गुजर रहे वाहन की हेडलाइट से कुछ प्रकाश हो जाता अन्यथा फिर से अँधियारा ही अँधियारा।

जब मैं हताश हो गया तब घर तक पहुँचने के पाँच किलोमीटर के रास्ते को पैदल ही पार करने की ठानी और साहस एकत्र करके दुर्गा शप्तशती के चुनिंदा सात श्लोकों को बुदबुदाता हुआ चल पड़ा। कुछ कदम ही चल पाया था कि एक स्कूटर मुझसे पच्चीस तीस कदम आगे जाकर रुक गया।

मैं डर गया कि यह कोई लुटेरा है जो रात के सन्नाटे में मुझे लूट लेगा। कम्पनी की ब्रीफकेस, उसमें जरूरी कागजात और कम्पनी के ही कुछ रुपए थे जिनके जाने का भय था। मन मे विचार आया कि अब निकल पड़ा हूँ तो रुकूँगा नहीं चाहे जो हो जाये। अब उच्च स्वर में श्लोकों को पढ़ते हुए उसके बगल से निकला तो एक आवाज सुनाई दी, “पीछे बैठ जाइए!”



दो कदम पीछे चलकर आया तो देखा कि पूरी तरह भीगे हुए पैंट व जैकेट के ऊपर हेलमेट लगाए वह स्कूटर सवार मुझे पीछे बैठने को कह था। डर पर विश्वास ने बाजी मारी और मैं उसकी कमर में हाथ डालकर बैठ गया। बीच में ब्रीफकेस रख कर अपने दोनों हाथों से उसकी कमर को कसकर पकड़ लिया।

रामादेवी चौराहे पर पेट्रोल पंप पर उसकी पीठ पर इशारा करके रोकने को कहा। अब तक पानी बरसना बन्द हो चुका था। उतरने पर मैं उस स्कूटर सवार के सामने जाकर हाथ जोड़े और कहने लगा, “श्रीमन्त! आपका बहुत बहुत धन्यवाद जो आपने मुझे लिफ्ट ….”

आगे मैं कुछ कह नहीं पाया क्यों कि तब तक उसने अपना हेलमेट उतार दिया था और उसका चेहरा मेरे सामने था। वह बीस बाइस वर्षीया अत्यंत आभायुक्त गोरी चिट्टी परम् लावण्यमयी चित्ताकर्षक लड़की थी। उसके चेहरे से एक तेज प्रस्फुटित हो रहा था। वह मन्द मन्द मुस्कुराते हुए

अपने खुले केश सँवार रही थी। एक पल को मैंने अपनी आँखें बंद की तो वह मुझे माँ जगदम्बा का रूप नज़र आया। मैंने आँख खोलकर उस मुस्कुराती हुई लड़की से हाथ जोड़ते हुए कहा – “हे! देवी, आपको बारम्बार नमस्कार है।”

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एक बार फिर से हेलमेट लगाते हुए देवी ने उसी तरह मुस्कुराते हुए कहा – “आप समय से दफ्तर छोड़ दिया करें। या फिर कोई पुराना वाहन ही ले लीजिए। रात में सुरक्षित नहीं है इस प्रकार पैदल चलना। ठीक है न!”

मैं विस्मित भाव से अवाक उन्हें देखता रहा और कानों में गुंजित हो रही उनकी अमृतमयी वाणी को आत्मसात करता रहा। जबतक मैं होश में आता तबतक वे स्कूटर स्टार्ट करके मेरे सामने से निकल गईं।

घर जाकर मैंने अमृता से यह सब कथा सुनाई। उस रात सपनों में मां भगवती का वही स्वरूप बार बार आता रहा… और यह कई महीनों तक होता रहा.. बाद में दुर्गा सप्तशती का पाठ करते समय मैं उसी छवि को ध्यान में रखता तो मुझे मानसिक सन्तुष्टि और शान्ति का आभास होने लगा।

#बरसात

स्वरचित:©जयसिंह भारद्वाज, फतेहपुर (उ.प्र.)

               ★समाप्त★

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