Moral stories in hindi: खुशहाल और हरप्रीत कौर के दो बेटे थे अमनदीप और खुशदीप। अमनदीप बड़ा ही भला और भोला इंसान था। अमनदीप की खासियत थी उसकी मुस्कान। ऐसी मुस्कान की जो देखे निहाल हो जाए।
खुशदीप भी नेक बंदा था। उनकी कपड़ों की दुकान थी। काम धंधा बढ़िया चल रहा था। पूरा परिवार खुश और सुखी परिवार था। अब तो अमनदीप ने घर पर भी एक कमरे में ऑनलाइन काम शुरू कर दिया था। वह गांधीनगर से रेडीमेड कुर्तियां लाता था और ऑनलाइन बेचता था। यह काम भी खूब बढ़िया चल रहा था।
अब अमनदीप के माता-पिता उसका विवाह करना चाहते थे। कहते हैं कि दुख के बाद जीवन में अगर सुख आए तो बहुत अच्छा लगता है लेकिन अगर सुख के बाद दुख आए तो सहन करना मुश्किल हो जाता है और सच तो यह है कि इनका आना जाना जीवन में लगा ही रहता है। सुख दुख के रंग ही निराले होते हैं।
सुबह ही अमनदीप गांधीनगर चला गया था। वह दोपहर के बाद ही वापस आता था। आज तो शाम हो चली थी। उसकी मां हरप्रीत कौर को चिंता सताने लगी थी। उन्होंने फोन लगाया तो अमन दीप का फोन लगा ही नहीं। उन्होंने अपने पति खुशहाल को फोन करके बताया। उन्होंने अमन दीप को फोन लगाया उधर से आवाज सुनाई दी- हेलो’
खुशहाल-“हेलो, पुत्तर तू कित्थे है, बड़ी देर कर दित्ती है।”
उधर से आवाज आई-“देखिए अंकल जी मैं आपको अभी फोन करने ही वाला था। मैं आपका बेटा नहीं, मैं एक राहगीर हूं। आपके बेटे का एक्सीडेंट हो गया है और वह सड़क पर बेहोश पड़ा था। मैं उसे अस्पताल ले आया, आप तुरंत यहां आ जाइए।”
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खुशहाल जी दौड़े दौड़े दुकान से घर आए और अपनी पत्नी और बेटे को लेकर तुरंत अस्पताल पहुंचे। वहां उस अजनबी को बहुत-बहुत धन्यवाद दिया। उसने बताया-“डॉक्टर साहब अभी आपके बेटे का एक्स-रे वगैरा लेने की बात कर रहे थे। आप उनसे बात कर लीजिए ,मैं चलता हूं।”
खुशहाल-“आपका बहुत-बहुत धन्यवाद बेटा जी”
खुशहाल जी ने डॉक्टर से बात की। डॉक्टर ने बताया-“अगर वह अजनबी समय पर अमनदीप को अस्पताल नहीं लाता तो ज्यादा खून बहने की वजह से मुश्किल हो सकती थी। अब हालात कंट्रोल में है लेकिन उसके सीधी टांग में पत्ती डालकर ऑपरेशन करना पड़ेगा क्योंकि उसकी टांग में दो जगह फ्रैक्चर हुआ है। ”
खुशहाल जी ने पैसे जमा करवा दिए। अगले दिन ऑपरेशन हो गया। वे लोग भगवान का शुक्रिया अदा कर रहे थे कि बच्चे की जान बच गई। चोट तो आज नहीं तो चल ठीक हो ही जाएगी। अमनदीप पूरे 4 महीने बाद अच्छी तरह से चल फिर सका। हरप्रीत कौर ने घर में बाबा जी का पाठ रखवाया था।
सब कुछ ठीक हो गया था। एक दिन अमनजीत तैयार हो रहा था और उसकी मां उसके पास खड़ी थी। तभी उनकी नजर अमनदीप की गर्दन पर गई। कान की सीध में नीचे की तरफ कुछ था। उन्होंने हाथ लगाया तो अमनदीप ने कहा-“मम्मी, मत छुओ, दर्द हो रहा है। लगता है शायद किसी ततैये या मच्छर ने काट लिया है।”
मां-“गोले का तेल या कोई दवाई लगा देती हूं।”
अमनदीप-“अभी नहीं, मुझे देर हो रही है।”
2 दिन बाद मां की नजर फिर से गर्दन पर जाती है। मां कहती है-“अमनदीप यह दाना तो और बढ़ गया है तूने कुछ लगाया कि नहीं, रुक मैं लगाती हूं, तू बहुत लापरवाह है।”
अमनदीप-“मम्मी तेल से कुछ नहीं होगा इसमें बहुत दर्द है।”
मां -“चल फिर डॉक्टर को दिखा देते हैं।”
अमनदीप बात को घुमा फिराकर टाल देता है। 2 दिन बाद उसे तेज बुखार आ जाता है। उसकी मां उसे डॉक्टर के पास ले जाती है और फिर उसका दान भी दिखाती है।
डॉक्टर कहता है-“बुखार उतर जाने के बाद इसकी जांच करवा लेना क्योंकि यह दाना नहीं गिल्टी लग रही है। घबराने वाली बात नहीं मामूली सी जांच है।”
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जांच करवाने पर पता लगा कि कैंसर है।
यह सुनकर पूरे परिवार पर मानो बिजली गिर पड़ी। पूरा परिवार सदमे में आ गया। डॉक्टर ने समझाया-“घबराइए मत, इसका इलाज हो सकता है। ऑपरेशन करके गिल्टी निकाल दी जाएगी। उसके बाद कुछ दिन दवाइयां खाकर अमनदीप बिल्कुल ठीक हो जाएगा।”
मन ही मन अपने बच्चे की सलामती की प्रार्थना ईश्वर से करते हुए उसका ऑपरेशन करवाया गया। गिल्टी निकाल दी गई। इन्हीं सब चक्करों में पूरा एक महीना बीत चुका था। इस 1 महीने में क्या हालत हो गई है मेरे बच्चे की, मां यह देखकर तड़प उठती।
गिल्टी निकल जाने के बाद भी न जाने क्यों अमनदीप पूरी तरह ठीक नहीं हो पा रहा था। शायद दवाइयों का साइड इफेक्ट था। डॉक्टर ने कुछ दिन के बाद दोबारा जांच की और खुशहाल जी को अकेले में बुलाकर बताया कि उसी जगह कैंसर फिर से पनप रहा है और अब की बार अमनदीप को बचाना मुश्किल होगा।”
दूसरा महीना समाप्त होते होते अमनदीप सबको छोड़कर चला गया। उसकी शांति के लिए घर में पाठ रखवाया गया। उसकी मां उसकी फोटो के सामने रो कर कहने लगी-“मैंने तो पाठ तेरी शादी की खुशी में रखवाना था, ऐसे पाठ रखवाना पड़ेगा कभी सोचा नहीं था। तू कहां चला गया मेरे बच्चे। 2 महीने के अंदर अंदर सब कुछ खत्म हो गया।”
कहते हैं कि किसी के चले जाने से दुनिया नहीं रुकती। एक बेटे को खोने का गम तो कभी दूर नहीं हो सकता पर दूसरे बेटे के बारे में भी तो सोचा ही पड़ेगा। 1 साल के बाद खुशदीप का विवाह किया गया। इस 1 साल में हरप्रीत अमनदीप को याद करके न जाने कितनी बार अचानक रो पड़ती थी। कभी उसके मनपसंद कपड़े, कभी मनपसंद खाना, कभी उसकी कोई जिद, कभी उसका लाड प्यार और कभी उसकी मनमोहक मुस्कान। एकदम से दहाड़ मार कर जमीन पर बैठकर रोने लगती थी। उसे देखकर परिवार वाले तो क्या, पड़ोसियों की भी आंखें भर आती थी।
लेकिन आज खुशदीप के विवाह के 6 महीने बाद वह बहुत खुश नजर आ रही थी। सुबह उठते ही उसने खुशहाल जी से कहा-“सुनो जी, मैंने सुबह-सुबह सपना देखा, मेरा पुत्र अमनदीप वापस आ रहा है। उसने खुद मुझसे कहा, मम्मी मैं आ रहा हूं। देखना वह जरूर आएगा।”
खुशहाल जी-“पागलों वाली गलां ना कर।”
हरप्रीत-“नहीं, मैं सच कह रही आं।”
तभी उनका बेटा खुशदीप आकर बताता है कि आप लोग दादा-दादी बनने वाले हो। नीतू प्रेग्नेंट है। डॉक्टर ने कंफर्म कर दिया है।”
हरप्रीत-“देखा, मैंने कहा था ना, आएगा मेरा अमनदीप।”
समय व्यतीत होने पर नीतू एक पुत्र को जन्म देती है। खुशहाल जी भी यह देखकर खुश थे कि बच्चा हूबहू अमनदीप लग रहा था, बचपन वाला अमनदीप। और उसकी मां की खुशी तो पूछो ही मत। सबसे कह रही थी-“देखो इसकी मुस्कान, है ना बिल्कुल अमनदीप।”
बच्चा उनकी गोद में मुस्कुरा रहा था
“हां मां , मैं आ गया तेरे पास। अब हमेशा तेरे साथ रहूंगा।”
स्वरचित अप्रकाशित
गीता वाधवानी दिल्ली
#सुख दुख