स्टार्टअप – संध्या त्रिपाठी : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : क्या ननद रानी ….क्या बोली…..? स्पा कराने गई थी ये क्या होता है….?? मैं सब कुछ भाभी (गांव की) को बता ही रही थी बीच में ही उन्होंने बात काट कर कहा… बाप रे इतना महंगा….. हमारे यहां तो ₹50 में धनेसरी पूरे शरीर का मालिश करती है । इस बार जब आप आएंगी ना तो धनेसरी से आपका मालिश जरूर करवाऊंगी तब बताइएगा आप शहरन की स्पा बढ़िया है या हमारी धनेसरी की मालिश ……हंसते हुए मैंने भी कहा….. हाँ हाँ भाभी जरूर.. इस बार मैं भी धनेसरी के मालिश का आनंद उठाऊंगी ।

बात आई गई खत्म हो गई… इस बीच शायद भाभी ने धनेसरी से मेरे मालिश के विषय में बात की होंगी इसलिए धनेसरी मेरे वहां आने का बेसब्री से इंतजार कर रही थी… भाभी ने उससे कहा था कि धनेसरी तेरे मालिश की बहुत तारीफ की हूँ तो धनेसरी भी अपना हुनर दिखाने के लिए बेताब थी ।

गोलू के दाई ऊते चला ..सरगुजा में मां को दाई कहते हैं (गोलू की मां उधर चलिए ) धनेसरी के इस वाक्य ने मुझे अचंभित कर दिया… अरे ये कैसे जानती है कि मेरे बेटे का नाम गोलू है शायद भाभी ने बताया होगा …मालिश करते करते अपनी आपबीती धनेसरी ने बड़े प्यार और इत्मीनान से सुनाया….. उसकी बातों से मेरा कौतूहल जागा… मैंने पूछा घर में और कौन-कौन है…..? क्या तेरा खर्च मालिश के पैसे से ही चलता है ?

वो थोड़ी देर चुप रही फिर बोली….. मोर दू गो बेटा….. मजदूरी करथें अपने नहीं पूरे तो मोला कहां से पोसीं…… महीं भजिया छान छान के ओमन के पूराथों…… ( मेरे दो बेटे मजदूरी करते हैं खुद के भरण पोषण में मुश्किल होता है तो मेरी क्या देखभाल करेंगे मैं ही भजिया बना उन लोगों की सहायता करती हूं ) ….थोड़ी देर रुक कर कुटिल मुस्कान के साथ आगे कहा…. तेल तो कभो कभो लगवाथें पर पेट तो खाना रोज मांगथे ( तेल तो लोग कभी-कभी लगवाते हैं पर पेट में भूख तो रोज लगती है) …तब मैंने पूछा……फिर……?

एक दिन मोर पास ₹50 रहीस मैं एक पाकिट बेसन और 1 लीटर तेल खरीद लेहेन….. फिर जहां पर बस रूकथे ईंटा कर चुल्हा बनाकर एगोट कड़ाही में तेल डाल भजिया बना बना कर पत्ता के दोना में सब यात्री मन ला देहेन…… बस ओकर बाद अब ड्राइवर रोज उहां पर 5 मिनट गाड़ी ला रोक देथे….. मोर अच्छा बिक्री हो जायेल…..। ( मेरे पास ₹50 थे उससे बेसन और तेल खरीद बस रुकने वाली जगह पर ईंट रखकर भजिया बनाकर यात्रियों को देना शुरू किया ) ।

धनेसरी की बातों ने मुझे उत्साह से भर दिया… धनेसरी की उम्र 50-55 से कम नहीं होगी…. इस उम्र में दिमाग लगाकर इतनी अच्छी शुरुआत करना वाकई काबिले तारीफ है ……. ” वरना हम तो कुछ भी स्टार्टअप के लिए पैसे ही जुगाड़ते रहते हैं ” ।

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खैर …मालिश के उपरांत मैंने ₹100 का नोट दिया… धनेसरी ने कहा मोर पास भान्ज( चेंज ) नहीं है… मैंने कहा… रख ले… मुझे चेंज नहीं चाहिए । भाभी ने ₹50 का नोट देते हुए कहा… अरे मेरे पास है ना… पर मैंने कहा हो गया भाभी मैंने ही उसे ₹100 दिए हैं ……!

लेकिन भाभी का इशारा इस ओर था जैसे मैं ….भाव बिगाड़ रही हूं ।

पर जाते-जाते खुद्दार धनेसरी ने कहा ….कल फिर आहूं (आऊंगी ) ₹50 मोर ऊपर उधारी हवे । धनेसरी के जाने के बाद मैंने भाभी से पूछा ये गोलू का नाम कैसे जानती है…… भाभी ने मुस्कुराकर कहा धनेसरी थोड़ी सरफिरी है…… दिमाग थोड़ा कम चलता है इसका…… ये सभी बच्चों को ऐसे ही कुछ ना कुछ नाम से ही बुलाती है…… मैंने सोचा गजब का इत्तेफाक है……। नही भाभी वो सरफिरी नहीं है और ना ही उसके पास दिमाग कम है….. वो तो बहुत बुद्धिमान… धैर्यवान और सामंजस्यशील महिला के साथ-साथ एक सहृदय माँ भी है …भाभी आश्चर्य से मेरी और देखे जा रही थी ।

साथियों मेरी रचना पर आपके प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा…।

( स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित )

श्रीमती संध्या त्रिपाठी

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