एक बार फिर (भाग 2 ) – रचना कंडवाल : Moral stories in hindi

प्रिया अपनी फ्रैंड कविता से मिलने जाती है। रास्ते में एक जगह गाड़ी खड़ी करके जंगली गुलाब की झाड़ी को देखने लगती है। तभी पीछे से कोई आवाज देता है अब आगे-

ऐ मैडम! बीच रास्ते में गाड़ी क्यों रोक दी। वैसे ही इतना संकरा रास्ता है। लगता है कि आप किसी की जान लेकर मांनेगी।

आवाज सुनकर वह हड़बड़ा कर पीछे पलटी। उसने नजरें उठा कर इधर-उधर नहीं देखा सीधे अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ने लगी। तभी टोकने वाला शख्स अपनी गाड़ी से नीचे उतर कर उसके आगे खड़ा हो गया।

उसके कदम रूक ग‌ए। उसने सिर उठा कर उसकी तरफ देखा।

रोकने वाले बंदे की पर्सनालिटी भी गजब थी। लगभग सिक्स हाईट व्हाइट टी शर्ट,बल्लू जींस, गेहुंआ रंग, घुंघराले बाल दांएं हाथ पर टैटू काफी बड़ा सा जो उसकी टी-शर्ट की छोटी बाजू से आधा बाहर दिख रहा था। गले में रूद्राक्ष की माला उसे ध्यान से देख कर उसने आंखें नीची कर ली।

वो मैं मैं…. उसके मुंह से निकला।

नहीं मैं ये चैक कर रहा था कि आप गूंगी तो नहीं हैं ऐसा कह कर वो जोर से हंस दिया।

प्रिया हंसी नहीं उसने चुपचाप गाड़ी में बैठ कर गाड़ी स्टार्ट कर दी।

वो चल दी मोबाइल उठा कर टाइम चैक किया सवा बारह बज चुके थे।

आगे जाने पर साइड मिरर में देखा तो वो शख्स भी

अपनी गाड़ी में उसके पीछे आ रहा था।

अजीब इंसान है उसने मन ही मन सोचा।

फालतू की बेतकल्लुफी दिखा रहा था।

कविता के घर पहुंच कर उसने चैन की सांस ली। कविता के हसबैंड का अपना बिजनेस था। काफी अच्छी रिच फैमिली थी। कविता ने उसका बहुत वार्म वेलकम किया।

बहुत खुश थी उसके आने से और क्यों न होती दस सालों बाद मुलाकात हो रही थी दोनों की।

आज लंच पर मेरे हसबैंड की मौसी भी आ रही हैं अपनी फैमिली के साथ। कहीं बाहर से आ रहे हैं ??? नहीं यहीं पड़ोस में जो कोठी है उन्हीं की है।

वाधवा ग्रुप्स का नाम सुना है तुमने वाधवा इंडस्ट्रीज के मालिक हैं।

काफी बड़े लोगों से ताल्लुक रखती हो तुम प्रिया मुस्कराई।

पंद्रह बीस मिनट बाद वो लोग आ गए।

आपस में इंट्रोड्यूज करवाया गया। मौसी मौसा जी बहुत ही सौम्य स्वभाव के थे। उन्हें देख कर लगा ही नहीं कि इतने बड़े बिजनेस घराने से हैं।

मौसी शेखर कहां है??? अरे बेटा किसी का फोन आ गया था आ रहा होगा।

तभी आने वाले शख्स ने उसे चौंका दिया।

इससे मिलो ये है

द शेखर बाधवा ये कह कर वह जोर से हंसी।

पर प्रिया तो शाक्ड थी

ये वही था जो उसे सड़क में मिला था।

वो उसे देखकर हंस रहा था।

उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या कहे??

तभी कविता ने ही उसका परिचय दे दिया। अच्छा ही हुआ उसे कुछ बोलना नहीं पड़ा।

खाने की टेबल पर भी कविता की मौसी सास उसे कहने लगी अरे बेटा खाओ न तुम तो कुछ नहीं ले रही हो।

खाने के बाद जब सब बैठे तो कविता ने कहा अरे शेखर कोई अच्छा सा गाना सुनाओ ये जनाब गाने का शौक भी रखते हैं।

हां और दूसरे का मजाक उड़ाने का भी प्रिया ने मन ही मन सोचा।

“ख्वाब हो तुम या कोई हकीकत कौन हो तुम समझाओ”

सच में आवाज बहुत अच्छी थी। वो सुरों में डूब कर कब खिड़की के पास जाकर खड़ी हो गई उसे पता ही नहीं चला।

तभी किसी ने पीछे से उसे धीरे से कहा खूबसूरती का इतना भी गुरूर अच्छा नहीं है कि मैडम सामने वाले को नेगलेक्ट कर दिया जाए। वो मुड़ी तो पीछे शेखर खड़ा था।

अगर मेरी आवाज की जरा सी तारीफ कर दोगी तो‌ तुम्हारे शब्दों का खजाना खाली तो नहीं हो जाएगा।

प्रिया का चेहरा लाल हो उठा।

वो तेज से कदमों से आ कर सबके साथ खड़ी हो गई।

कविता कहने लगी तुम्हें कैसा लगा गाना???

अच्छा था। सामने से शेखर ने अपने दिल पर हाथ रख कर शरारत से कहा शुक्रिया

अच्छा मैं चलती हूं काफी देर हो गई है।

आप कहें भाभी तो मैं छोड़ देता हूं काफी देर हो गई है गाड़ी कल हमारा ड्राइवर ले आएगा।

वैसे भी मुझे कल मार्निंग में वहां काम है।

नहीं मैं चली जाऊंगी आप लोग परेशान न हों।

अरे प्रिया पहुंचते हुए रात हो जाएगी।

ये रास्ता बीच में सुनसान हो जाता है।

कविता के आगे प्रिया की एक नहीं चली उसने शेखर को उसके साथ भेज दिया।

वो गाड़ी में अगली सीट पर नहीं बैठी पीछे बैठ गई।

सोचने लगी अब वो कविता के यहां बिल्कुल नहीं आएगी।

बल्कि कविता को अपने यहां बुलाएगी।

ये चिपकू इंसान वहां रहता है। वहां जाना ठीक नहीं है।

अब आगे अगली किश्त पढ़ें कैसा था??? उनका डेढ़ घंटे का सफर

एक बार फिर (भाग 3 ) – रचना कंडवाल : Moral stories in hindi

© रचना कंडवाल

 

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