शक से हुई शुरूआत- स्नेह ज्योति : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : चलो भाई चलों सामान अच्छें से पैक करो अगर कुछ टूटा तो खैर नहीं । अरे साहब ! आप निश्चिंत रहिए बिना टूटे सब ढंग से पहुँचा देंगे । घोष बाबू कोलकाता के एक प्रतिष्ठित अख़बार में का काम करते थे । उनको शक करने की बहुत बीमारी थी । इसलिए हमेशा शक के आधार पे दूसरो की जासूसी करने लग जाते थे ।

चाहे उनका कोई लेना देना हो या ना । रिटायरमेंट के बाद घोष बाबू का सबसे पसंदीदा काम यही था । वो जासूसी में अपना हाथ आज़माना चाहतें थे , लेकिन क़िस्मत ने साथ नही दिया । आज वो कोलकत्ता को छोड़ दिल्ली जा रहे है । क्योंकि उनकी बेटी को दिल्ली में एक जॉब मिली है । घोष बाबू का तो दिल्ली जाने का मन नहीं था । लेकिन अपने घर वालों के सामने उनकी एक ना चली और दिल्ली का टिकट कट ही गया ।

दिल्ली आकर उनका मन नहीं लग रहा था । इसलिए घर के कामों में ही दखल देते रहते थे । उनकी बेटी ऑफ़िस चली जाती और बेटे का एक कॉलेज में दाख़िला हो गया था । मौनी जी अपने घर को संवारने में लगी रहती थी । सब अपने कामों में व्यस्त हो गये । कुछ काम ना होने के चक्कर में घोष बाबू अपनी काम वाली की हर हरकत पे नज़र रखने लगे । ये सब देख राधा उनकी काम वाली परेशान रहने लगी ।

मैडम साहब को कोई दिक़्क़त है जो हर पल मुझे एक अजनबी की तरह देखते रहते है ।

तुझे नहीं पता तेरे साहब व्योमकेश बक्शी है !बस ज़रा सा शक हो जाए किसी पे , बस फिर तो शक दूर करके ही दम लेते है । एक दिन मौनी ने बोला आप पार्क जाना शुरू कर दो । वरना आपके चक्कर में काम वाली भी हाथ से निकल जाएगी । बताओ काम वाली की पड़ी है हमारी कोई चिंता नहीं है बोल वो पार्क के लिए निकल पड़े ।

पार्क आकर घोष बाबू नए लोगों से मिलें और दोस्ती हो गई । लेकिन शक करने की आदत से मजबूर हर रोज़ किसी ना किसी की आफ़त ही आयी रहती थी । घर वाले तो छोड़ो आस पड़ोस के लोग भी अब घोष बाबू से बच के निकलने लगे । एक दिन उन्होंने देखा कि एक युवक रोज गली में इधर से उधर घूमता रहता था ।घोष बाबू ने उसे कई बार शाम के समय मार्केट में भी देखा था । बस फिर क्या उन्होंने अपनी शक की सुई पूरी तरह उस युवक पर ही केन्द्रित कर ली । रोज़ शाम होते ही घर से जल्दी निकल जाते और उस युवक का बस स्टैंड से ही पीछा करने लग जाते । उस युवक की एक एक बात डायरी में नोट करने लगे ।

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वो युवक रोज़ एक पैकेट लेकर बस से उतरता और पास की दुकान के बाहर बैठें युवक को पकड़ा चले जाता ।ये सिल सिला यूँही चलता रहा और घोष बाबू का शक मीनारों को छूने लगा । एक दिन घोष बाबू ने उस युवक को धर दबोचा आज तो तुम से सच उगलवा के रहूँगा । सच बताओ तुम कौन हो और रोज़ क्या सप्लाई करते हो ! कुछ नही सर मैं तो बस अपने दोस्तों को खाना देने आता हूँ ।

तुम हमको बेवक़ूफ़ समझा है क्या ??? रोज़ नए नए तरीक़े से नए लोगों को खाना देते हो । पता बताओ कहाँ से तुम खाना लाता हैं । सर आप कौन होते हैं ! मुझ से इतने सवाल जवाब करने वाले ?? आप बेकार का ही शक कर रहे है । मैं तो आपकी कॉलोनी में ही रहता हूँ ,मैं ऐसा क्यों करूँगा ! वाह ! हमारी कॉलोनी में रहता हैं तो क्या कुछ भी करेगा । हम इस देश का एक सभ्य नागरिक हूँ । हमारे होते कुछ ग़लत कैसे हो सकता है । देखते ही देखते लोगों की भीड़ इकट्ठी होने लगी । अपना पैकेट खोलो और सबको दिखाओ । वरना मैं पुलिस को बुलाता हूँ !

जब घोष बाबू ने पुलिस को बुलाने की धमकी दी , तब जाकर उस युवक ने अपना पैकेट खोल सबको दिखाया तो उसमें खाना ही था । ये सब देख घोष बाबू का मुँह उतर गया । सब लोग घोष बाबू की नादानी पे हँसने लगे । तभी कैमरा लिए वहाँ कुछ लोग आए और घोष बाबू को शुक्रिया करने लगे । वो समझ नही पा रहे थे कि ये सब क्या हो रहा है ?? तभी वो युवक आया और बोला सर हम एक सर्वे के द्वारा ये देख रहे थे कि कितने लोग हैं जो अपने आस-पास हो रही बातों पे ध्यान देते है । कितने लोग हैं जिन्हें दूसरों के होने ना होने से फर्क पड़ता हैं । और सच मानिए सर ऐसे बहुत ही कम लोग हैं जो दूसरों का सोचते हैं ।

आपने मुझे देखा मेरी गतिविधियों पे नज़र रखी और अपना एक निष्कर्ष निकाला । चाहे वो ग़लत था , पर आपने अपने आस पास हो रही गतिविधियों पे ध्यान दिया । वरना आज के समय में किसी के पास अपनो के लिए भी टाइम नही है । हमे अपने आस पास भी ध्यान देना चाहिए ताकि किसी घटना का शिकार ना हो । थैंक्स सर अपना क़ीमती समय देने के लिए । आप सच में इस देश के एक सभ्य नागरिक है ।

इसके बाद तो घोष बाबू अपने मोहहले के जेम्स बांड बन गए और अपनी शक को जासूसी का नाम दे एक नयी मुहिम पे लग गए । अब वो बिजी रहते है , जिस पे शक की सुई जाती बस फिर उसकी आफ़त आती थी ।

#शक

स्वरचित रचना

स्नेह ज्योति

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