Moral stories in hindi : जीवन की सांध्य बेला में एकाकी जीवन व्यतीत कर रही, मालती का मानस आज विचलित हो रहा था, आज बरबस अतीत की यादों से उसका मन बोझिल हो रहा था, सुबह का समय वह समाचार पत्र की राह देख रही थी।मन बैचेन था, वह सोच रही थी, क्या पाया उसने जीवन में? बचपन में ही माँ का साया सिर पर से उठ गया।
वह बड़ी बेटी थी, चार छोटे भाई बहिन का काम करती। साथ ही पढ़ाई भी करती। पढ़ने में होशियार थी, बी. ए. की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की।मगर किस्मत देखो पिता भी उसे छोड़कर चले गए। अब परिवार वालों के भरण पोषण की जिम्मेदारी भी उस पर आ गई
, उसने एक शिक्षिका की नौकरी की और अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई,दोनों बहनों की शादी कर दी।वे अपने परिवार में मस्त हो गई। दोनों भाइयों की गृहस्थी बस गई और वे दोनों भी किनारा कर गए।
वह अकेली रह गई।उम्र ४५ पार कर गई थी, अकेलापन काटने को दौड़ता। घबराकर उसने अपने सहकर्मी शिक्षक सोमेश जिनकी पत्नी शांत हो गई थी, से शादी कर ली। यहाँ भी पति ने उसे दिल से नहीं अपनाया। सास-ससुर बेटे की दूसरी शादी के खिलाफ थे, उन्होंने भी मालती को कभी अपना माना ही नहीं।उसने दिल से, पूरी सेवा की अपने सास-ससुर की मगर उन दोनों का देहांत हो गया।
सोमेश और मालती का जीवन नीरस सा चलता रहा। अभी पिछले वर्ष उसके पति का भी निधन हो गया।वह सोच रही थी कि कौन है ऐसा जिसे वह अपना कह सके।।
उसका ध्यान टूटा जब पेपर वाले ने आवाज लगाकर पेपर लान में डाल दिया। पेपर में एक लेख को पढ़ कर वह चौंक गई, उसके चेहरे पर मुस्कान तैर गई थी।वह पूरा आलेख एक सांस मैं पढ़ गई…… ।
“उन्हें क्या नाम दूं वे मेरी माँ थी, बड़ी दीदी थी, मेरी सखा थी, शिक्षक थी या कोई मसीहा थी जिन्होंने मुझे जिल्लत की जिन्दगी से उबार कर स्वाभिमान से सिर उठाकर जीना सिखाया, सोचता हूँ, अगर वे नहीं होती तो मैं कहाँ होता, सौतेली माँ और शराबी बाप की चाकरी करता, उस नर्क में बिलबिलाता, जीवन में घिसटता रहता। उन्होंने मेरे दर्द को समझा, कक्षा में जहाँ सारे छात्र मेरी उपेक्षा करते, उलाहना देते वहाँ उन्होंने मुझे सहारा दिया।
स्कूल में दाखिला मेरी माँ ने कराया था, मैं तीसरी कक्षा में था, तब मेरे पिता की प्रतारणा को झेलते-झेलते उन्होंने दम तोड़ दिया। बाप की मंशा नहीं थी कि मैं पढ़ाई करूँ, वे पढ़ाई पर खर्च करना नहीं चाहते थे,मगर माँ ने बहुत मुश्किल से स्कूल में भर्ती करवाया था, वे कहती पढ़ लिखकर कुछ बन जाओगे तो जीवन सुधर जाएगा। माँ के मरने के बाद स्कूल छोड़ने की नौबत आ गई थी,उस समय एक दिन मैं उदास था,
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बच्चे अक्सर मेरी गरीबी का मजाक बनाते थे।कक्षा समाप्त होने के बाद मालती मेम ने मुझे कक्षा में रूकाया, मैं डर रहा था, मगर उन्होंने अपना हाथ मेरे सिर पर रखा,उस स्नेहिल स्पर्श को मैं आज तक नहीं भूला हूँ।क्या था उस स्पर्श में मेरी आँखों में आँसू आ गए। उन्होंने प्यार से मेरे हाथों को थामा और पूछा -‘ तुम हमेशा उदास दिखते हो,
बताओ क्या परेशानी है? उनकी आवाज में कुछ ऐसा था,कि मैंने अपनी सारी परेशानी उन्हें बता दी। उन्होंने कहा चिंता मत करो, तुम बस मन लगाकर पढाई करना। तुम्हारी किताब और फीस की व्यवस्था मैं करूंगी। उन्होंने मेरी फीस माफ करवा दी थी। और विद्यालय में जो पुस्तकें आती थी, उससे मेरी किताबों की व्यवस्था भी कर दी। उन्हें पता था कि मैं टिफिन लेकर नहीं आता हूँ। वे स्वयं मेरे लिए टिफिन लेकर आती। उन्होंने मेरी सारी समस्या का समाधान कर दिया,
मैं मन लगाकर पढाई करता, वे हमेशा मेरी मदद करती और मुझे प्रोत्साहित करती। ११वी कक्षा में मेरा नाम प्राविण्यसूचि में आया फिर मुझे छात्र वृत्ति मिलने लगी और आगे की पढ़ाई का रास्ता खुल गया,मगर मालती दीदी पता नहीं कहाँ चली गई आज मेरी बैंक में नौकरी लग गई है।यह सब उनकी बदौलत है, है ईश्वर मुझे एक बार उनसे मिलवा दे ….
मैं उनके पावन चरणों का स्पर्श करना चाहता हूँ, फिर उनके उस स्नेहिल स्पर्श को अपने सिर पर महसूस करना चाहता हूँ जिसने मेरे जीवन को सही दिशा दी।उस पवित्र रिश्ते को मैंने अपने दिल की अतल गहराई में छिपा रखा है। मैं अपनी सारी पवित्र भावनाऐं उनके चरणों में अर्पित करना चाहता हूँ।”
आलेख के नीचे नाम और पता दोनों लिखा था। मालती ने उस नाम के उपर अपना हाथ बहुत स्नेह से फिराया, उसकी आँखों के आगे छोटे मासूम किशन की सूरत घूम रही थी, उसका चेहरा प्रसन्नता से खिल उठा था। अब वह मन ही मन में बड़बड़ा रही थी, कि मैं अकेलीं नहीं हूँ, है ना किशन जिसे मैं अपना कह सकूँ।उसने अपना बेग तैयार किया और चल पड़ी किशन से मिलने।इसे कहते हैं पवित्र रिश्ता जो दिल से दिल तक जाता है।
#पराये _रिश्ते _अपना _सा _लगे
प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक